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Year Ender 2024: सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले और 2025 में होने वाले अहम मामलों पर नजर

न्यायपालिका के लिए साल 2024 काफी महत्वपूर्ण रहा. इस साल कई अहम फैसले देखने को मिला. जिन्होंने देश के कानूनी और नीतिगत ढांचे को नया रूप दिया. लेकिन आने वाला साल 2025 भी महत्वपूर्ण रहने वाला है. 2025 में कई महत्वपूर्ण मामलों में सुनवाई होने वाली है. साल 2024 की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना जैसी विवादास्पद नीतियों को रद्द किया वही मदरसा शिक्षा विनिमय को परिभाषित किया.

साल 2024 की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट 15 फरवरी 2024 को 2017 चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया. तत्कालीन सीजेआई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से गुमनाम दान जनता को राजनीतिक फंडिंग में आवश्यक प्रदर्शिता को वंचित करके सहभागी लोकतंत्र को कमजोर करता है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह की अस्पष्टता स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों से समझौता करती है जो व्यक्तिगत अधिकारों पर कॉरपोरेट हितों को तरजीह देती है.

एससी/एसटी कोटे में उप-वर्गीकरण को मंजूरी

4 मार्च 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के कैश फॉर वोट मामले में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव मामले में 1998 में दिए गए अपने फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत विधायकों को विधायी गतिविधियों से जुड़ी रिश्वत के मामले में छूट दी गई थी. वही सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त 2024 को एससी/एसटी कोटे में उप-वर्गीकरण को लेकर अहम फैसला दिया, कोर्ट ने एससी/एसटी कोटे में उप-वर्गीकरण को मंजूरी दे दी.

इस फैसले का मुख्य उद्देश्य ऐतिहासिक रूप से हाशिये पर पड़े इन समुदायों के भीतर असमानताओं को दूर करना है, यह सुनिश्चित करके की सबसे वंचित समूहों को लाभों के उचित हिस्सा मिले. सुप्रीम कोर्ट ने 13 अक्टूबर को जेलों में जातिगत भेदभाव को लेकर अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि जेलों में जातिगत भेदभाव नही हो सकता है. कैदियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार न करना औपनिवेशिक विरासत है. कोर्ट ने कहा कि कैदियों जे जाति पूछने का कॉलम नही होना चाहिए. कोर्ट ने तीन महीने में जेल मैनुअल बदले, मौजूदा समय में संविधान के अनुच्छेद 15, 17, 23 सहित अन्य का उल्लंघन हो रहा है.

बुलडोजर की कार्रवाई से पहले 15 दिन का नोटिस

जबकि 13 नवंबर 2024 को बुलडोजर न्याय को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए दिशा निर्देश जारी किया. कोर्ट ने कहा कि म्युनिसिपल नियम का पालन हो और बुलडोजर की कार्रवाई से 15 दिन का नोटिस दें. कोर्ट ने कहा जवाब सुन कर आदेश पारित करें, नोटिस की जानकारी डीएम को भी भेजें, 3 महीने में पोर्टल में सभी नोटिसों की जानकारी डालने को कहा है.

कोर्ट ने साफ कर दिया कि जो अधिकारी मनमाने तरीके से मकान गिराएंगे, उन्हें व्यक्तिगत हर्जाना देना होगा. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कार्यपालिका जज नही बन सकती. कोर्ट ने कहा कि बिना प्रक्रिया आरोपी का घर तोड़ना असंवैधानिक. यहां तक दोषी पाए जाने पर भी सजा के तौर पर उनकी संपत्ति को नष्ट नही किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि कानून की प्रक्रिया का पालन जरूरी है. सत्ता का दुरुपयोग बर्दास्त नही होगा. कोर्ट ने कहा कि अधिकारी अदालत की तरह काम नही कर सकते हैं. प्रशासन जज नही हो सकता है. किसी की छत छीन लेना उसके मौलिक अधिकारों का हनन है.सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा है कि सिर्फ आरोप के आधार पर किसी के घर को नही तोड़ा जा सकता है.

नागरिकता अधिनियम की धारा

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6A को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A को संवैधानिक ठहराया है. लेकिन जो लोग 25 मार्च 1971 के बाद आये हैं उन्हें ई लीगल माना है. सीजेआई ने सुझाव दिया है कि उनके लिए एक बेंच का गठन होना चाहिए. संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि 6ए उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है जो जुलाई 1949 के बाद प्रवासित हुए, लेकिन नागरिकता के लिए आवेदन नही किया. इसको लेकर कुल 17 याचिकाएं दाखिल की गई थी.

धारा 6 ए को असम समझौते के तहत संविधान के नागरिकता अधिनियम में शामिल लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में शामिल किया गया था.

यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट 2004

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट 2004 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है.  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड  एक्ट 2004 को असंवैधानिक करार दिया है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपने फैसले में कहा कि धार्मिक शिक्षा अभिशाप नही है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार मदरसा शिक्षा को लेकर नियम बना सकती है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी छात्र को धार्मिक शिक्षा के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मदरसा बोर्ड फाजिल, कामिल जैसी उच्च डिग्री नहीं दे सकता.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट साल 2025 में कई अहम मामलों में सुनवाई करने वाला है. जिनका देश पर दूरगामी सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक असर देखने को मिलेगा.

भारत के मुख्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति

सुप्रीम कोर्ट भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर बने नए कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा.  यह याचिका मध्य प्रदेश कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने दायर की है.

याचिका में कहा गया है कि सीईसी राजीव कुमार फरवरी 2025 में सेवानिवृत्त हो रहे है. इसलिए नए कानून पर तत्काल रोक लगाई जाए. अर्जी में नए कानून पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है. जया ठाकुर का कहना है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियां नए कानून के तहत तब भी की जा रही है, जब याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991

सुप्रीम कोर्ट प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, महाराष्ट्र के विधायक जितेंद्र सतीश अव्हाड, मनोज झा सहित अन्य ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के समर्थन में याचिका दायर की है. 2020 से यह मामला कोर्ट में लंबित है. यह याचिका विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी, अश्विनी कुमार उपाध्याय, करुणेश कुमार शुक्ला और अनिल त्रिपाठी ने दायर की है. याचिका में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को रद्द करने की मांग की गई है. वही मुश्लिम पक्ष जमीयत उलेमा ए हिंद की ओर से दायर याचिका में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के स्पोर्ट में दायर की गई है.

दिल्ली में सर्विसेज से जुड़े मामले

दूसरी ओर ज्ञानवापी मस्जिद मैनेजमेंट कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर कर कहा है कि याचिकाकर्ता द्वारा प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने की मांग के परिणाम गंभीर और दूरगामी होंगे.

केंद्र सरकार ने कानून बनाकर दिल्ली में सर्विसेज का कंट्रोल एलजी के हाथ मे दिया था. इस मामले को लेकर दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. साल 2025 में दिल्ली में सर्विसेज से जुड़े केंद्र सरकार के कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा.

मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामले

सुप्रीम कोर्ट ने 19 मई को पांच जजों के संविधान पीठ को ट्रांसफर किया था. साल 2025 में सुप्रीम कोर्ट मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामले में भी अहम सुनवाई करने वाला है. मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के प्रावधानों को चुनौती दी गई है. साथ ही कोर्ट मैरिटल रेप को लेकर दायर याचिका पर भी सुनवाई करेगा. इसके अलावे तीन तलाक के खिलाफ दायर याचिका पर भी सुनवाई करने वाला है. साल 2017 में तीन तलाक की प्रथा को खत्म कर दिया था. सरकार ने तीन तलाक को रोकने के लिए कानून बनाया, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

-भारत एक्सप्रेस

गोपाल कृष्ण

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