सभी राष्ट्रीय राजमार्गों (National Highways) और एक्सप्रेसवे पर दोपहिया वाहनों को चलने की अनुमति देने की मांग को लेकर दो याचिकाओं पर सुनवाई से दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने इनकार कर दिया है. यह याचिका गौतम कुमार लाहा द्वारा दायर की गई थी. जनहित याचिका में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) द्वारा जारी 2018 की अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई थी, जो दोपहिया वाहनों को एक्सेस-नियंत्रित एक्सप्रेसवे (Access Controlled Expressways) में प्रवेश करने से रोकती है. याचिका में गलती करने वाले मोटरसाइकिल चालकों पर 20,000 के जुर्माने को भी चुनौती दी गई थी.
दूसरी याचिका सिद्धांत मलैया नाम के शख्स ने दायर की थी, जिसमें 2018 की अधिसूचना को रद्द करने के अलावा सभी राजमार्गों और एक्सप्रेसवे पर दोपहिया वाहनों को चलने की अनुमति देने के लिए निर्देश देने की भी मांग की गई थी. इसने राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे पर दोपहिया वाहनों के उपयोग के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए भी निर्देश देने की मांग की.
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने युवराज फ्रांसिस बनाम भारत संघ और अन्य में पिछले फैसले का हवाला देते हुए याचिकाओं को खारिज कर दिया. अदालत ने कहा याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों के अनुसार कि एक्सप्रेसवे पर चलने वाले वाहनों के प्रकारों को प्रतिबंधित करने में कोई तर्क या संबंध नहीं है, युवराज फ्रांसिस से संबंधित उक्त फैसले में पर्याप्त कारण दिए गए हैं. युवराज फ्रांसिस मामले में उच्च न्यायालय ने कहा था कि दोपहिया वाहनों के लिए एक्सप्रेसवे का उपयोग करना सुरक्षित नहीं है, जहां तेज गति वाले वाहन चलते हैं.
न्यायालय ने उस निर्णय में कहा था धीमी गति से चलने वाले वाहनों विशेष रूप से दोपहिया, तिपहिया, ट्रैक्टर और इसी तरह के वाहनों की अंतर्निहित कमजोरी. जब तेज गति वाले वाहनों के साथ इन वाहनों की तुलना की जाती है, तो यह जोखिम और भी बढ़ जाता है. विभिन्न श्रेणियों के वाहनों के लिए गति रेटिंग में असमानता ड्राइवरों की दूरी को सटीक रूप से मापने की क्षमता को जटिल बनाती है, जो एक अतिरिक्त खतरा पेश करती है. चूंकि वह निर्णय भी एक खंडपीठ द्वारा दिया गया था, इसलिए न्यायालय ने वर्तमान मामले में एक्सप्रेसवे पर दोपहिया वाहनों को अनुमति देने के संबंध में निर्णय में छेड़छाड़ न करना उचित समझा.
हालांकि, 20,000 रुपये के जुर्माने के संबंध में न्यायालय ने जनहित याचिका याचिकाकर्ता गौतम कुमार लाहा को इस संबंध में एनएचएआई को एक अभ्यावेदन प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता दी. न्यायालय ने एनएचएआई को चार सप्ताह के भीतर इस अभ्यावेदन पर निर्णय लेने का भी निर्देश दिया.
-भारत एक्सप्रेस
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