(मूल लेख का हिंदी अनुवाद)
गौतम अडानी ग्रुप की कंपनी अडानी पोर्ट एंड स्पेशल इकनॉमिक जोन ने कराईकल पोर्ट का अधिग्रहण कर लिया है. इस डील के साथ ही अडानी के देश में कुल पोर्ट्स की संख्या 14 पहुंच गई है. इस ग्रुप ने देश के बाहर भी कुछ पोर्ट का अधिग्रहण किया है, जिनमें इजराइल का हाइफा पोर्ट और श्रीलंका का पोर्ट प्रमुख है.
गेटवे बंदरगाहों ने चीन के आर्थिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे देश को 1980 और 2021 के बीच अपने जीडीपी को 25 गुना तक बढ़ाने में मदद मिली. विश्व बैंक की रिपोर्ट ‘चीन के बंदरगाहों का विकास’ के हवाले से बताया गया है कि 1984 में 14 तटीय शहरों ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खोलना शुरू किया, जिसमें गेटवे बंदरगाह तटीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए आधार के रूप में काम कर रहे थे. नतीजन, इन शहरों का आर्थिक विकास तेजी से होने लगा. 2021 तक, दुनिया के शीर्ष दस सबसे व्यस्तम बंदरगाहों में से सात-शंघाई, शेन्ज़ेन, निंबो जुआन, गुआंगजाउ, क़िंगदाओ, टियांजिन, डालियान और ज़ियामेन चीन में ही थे. समुद्र तट और अंतर्देशीय बंदरगाहों पर अन्य छोटे बंदरगाहों के साथ, चीनी बंदरगाह सिस्टम राष्ट्रीय आर्थिक विकास और समृद्धि के लाभों को फैलाने की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण था.
इसी संदर्भ में एक बंदरगाह ग्रुप के रूप में अडानी के विकास को देखना चाहिए. पिछले कुछ सालों में ग्रुप ने इस सेक्टर में काफी निवेश किया है. अडानी ग्रुप ने 1.2 बिलियन डॉलर में हाइफा के रणनीतिक नजरिए से महत्वपूर्ण इजराइली बंदरगाह का अधिग्रहण किया और तेल अवीव में एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लैब खोलने सहित यहूदी राष्ट्र में और अधिक निवेश में दिलचस्पी दिखाई. साथ ही श्रीलंका में $700 मिलियन की टर्मिनल परियोजना का निर्माण हो रहा है, जो पूरा होने के बाद उस देश का सबसे बड़ा बंदरगाह होगा.
भारत में अडानी ग्रुप 7,525 करोड़ रुपये की लागत से विझिंजम, केरल में देश का पहला डीपवाटर पोर्ट बना रहा है. यह कराईकल बंदरगाह के बुनियादी ढांचे को विकसित करने और इसे एक बहुउद्देशीय बंदरगाह बनाने के लिए आने वाले समय में 850 करोड़ रुपये खर्च करेगा. ग्रुप का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में बंदरगाह की क्षमता को दोगुना करना और कराईकल बंदरगाह के ग्राहकों के लिए रसद लागत को कम करना है.
अडानी ने सूरत के पास हजीरा बंदरगाह को उसके वर्तमान आकार से छह गुना बड़ा करने के लिए 19,000 करोड़ रुपये का निवेश करने का भी प्रस्ताव दिया है. एएचपीएल कार्गो हैंडलिंग क्षमता को तिगुना करना चाहता है, भूमि उपयोग क्षमता को वर्तमान में 228 हेक्टेयर से बढ़ाकर 1,494 हेक्टेयर और कार्गो हैंडलिंग क्षमता को 84.1 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (एमएमटीपीए) से बढ़ाकर 234 एमएमटीपी करना चाहता है.
अगर चीन के आर्थिक विकस को बारीकी से अध्ययन करें तो देखेंगे कि 1978-91 के बीच बंदरगाह प्रबंधन के विकेंद्रीकरण ने वैश्विक विश्व व्यापार में चीन के एक्पोनेंसियल ग्रोथ की नींव रखी. 1978 में चीन द्वारा निजी निवेश के लिए अपने बंदरगाहों को खोलने से पहले, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (व्यापारिक आयात और निर्यात) जीडीपी का केवल 14 प्रतिशत था. 2019 तक, चीन में व्यापारिक व्यापार जीडीपी के 31 प्रतिशत तक बढ़ गया था.
चीनी बंदरगाह नीति के चार अलग-अलग चरण हैं. 1978-1991 के पहले चरण में चीन ने कार्गो मालिकों को अपनी सुविधाओं का निर्माण करने की अनुमति दी और कुछ विदेशी कंपनियों को कड़े नियामक ढांचे के तहत कंटेनर टर्मिनल संचालित करने की अनुमति दी. दूसरे चरण में – 1992 से 2001 तक – चीन ने स्थानीय सरकारों को बंदरगाह विकास में निवेश करने की अनुमति दी.
विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके परिणामस्वरूप “प्रमुख बंदरगाहों ने दक्षता के लिए अपनी स्वयं की सूचना प्रणाली विकसित करना शुरू कर दिया. विकास का केंद्र समुद्र तट के साथ उत्तर की ओर शिफ्ट हो गया और सुधारों के साथ शंघाई और आसपास के क्षेत्रों जैसे पुराने औद्योगिक केंद्रों में सुधार देखा गया.” हालांकि, यह पर्याप्त नहीं था. वैश्विक व्यापार में चीन की भूमिका के लिए वैश्विक आर्थिक रुझानों और महत्वाकांक्षाओं को बनाए रखने के लिए जिस गति की जरूरत थी, केंद्रीय सरकार का मानना था कि बंदरगाह उद्योग उस गति से विकसित नहीं हो रहा था.
तीसरे चरण में- 2002 से 2011 तक चीन ने बंदरगाह प्राधिकरणों को विनियामक और वाणिज्यिक संस्थाओं में विभाजित करके, बंदरगाह प्रशासन को विकेन्द्रीकृत और संचालन और प्रबंधन में सरकार का हस्तक्षेप सीमित कर दिया. . इस विभाजन ने बंदरगाहों को उनकी परिचालन दक्षता और प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार करने के लिए एक मजबूती प्रदान की. इसने संयुक्त उद्यम योजनाओं को भी प्रोत्साहित किया, जो पहले सीमित थी. कानूनी सुरक्षा प्रदान करके और घरेलू और विदेशी कंपनियों के लिए प्रवेश की बाधाओं को दूर करके ऐसा करना संभव हो पाया.
व्यापार संपर्क में सुधार और रसद लागत को कम करने के उद्देश्य से चीन का पहला ड्राई पोर्ट 2002 में परिचालन में आया. 2008 तक, 28 शुष्क बंदरगाहों के लिए स्थानों का चयन कर लिया गया था; इन बंदरगाहों को अगले दशक में विकसित किया गया था और अब इनकी संख्या 70 से अधिक हैं. अब सारा फोकस क्षमता के विस्तार से गुणवत्ता, दक्षता और बंदरगाह सेवाओं की स्थिरता पर शिफ्ट हो गया है. रेल और अंतर्देशीय जलमार्गों ने विस्तारित भीतरी इलाके से जुड़ने के विकल्प के तौर पर सड़कों को टक्कर देना शुरू कर दिया.
2011 के बाद से चीन ने प्रमुख “ग्रीन पोर्ट” टेक्नोलॉजी और प्रबंधन उपायों को अपनाया, जिसमें पर्यावरणीय मानकों, नए उत्सर्जन-नियंत्रण क्षेत्रों, तटीय बिजली सुविधाओं के विकास के लिए प्रोत्साहन, और डीजल-आधारित टर्मिनल संचालन से लेकर बिजली से चलने वाले क्रेन और अन्य टर्मिनल उपकरण शामिल हैं.
अडानी पोर्ट्स पहले से ही भारत में सबसे बड़ा कमर्शियल पोर्ट ऑपरेटर है, जो देश में लगभग एक-चौथाई कार्गो मूवमेंट में हिस्सेदारी रखता है. यह गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और ओडिशा के सात समुद्री राज्यों में 14 घरेलू बंदरगाहों में मौजूद है. अडानी पोर्ट्स लेटेस्ट कार्गो-हैंडलिंग इंफ्रास्ट्रक्चर से लैस हैं जो भारतीय तटों पर आने वाले सबसे बड़े जहाजों को संभालने में सक्षम हैं. अडानी पोर्ट्स ड्राई कार्गो, लिक्विड कार्गो, क्रूड से लेकर कंटेनर तक विविध कार्गो को हैंडल करते हैं. 8000 हेक्टेयर में फैला अडानी मुंद्रा SEZ देश का सबसे बड़ा मल्टी-प्रोडक्ट एसईजेड है.
अडानी पोर्ट्स की अभूतपूर्व सफलता भारत की आर्थिक उदारीकरण नीतियों की सफलता का प्रतिबिंब है. भारत में अब 7500 किमी लंबी तटरेखा के साथ 12 प्रमुख और 200+ गैर-प्रमुख बंदरगाह हैं. भारतीय बंदरगाहों पर संचालित कुल कार्गो में से 54% से अधिक देश के 12 प्रमुख बंदरगाहों पर संभाला जाता है जिसमें अडानी का मुंद्रा पोर्ट और सरकार के स्वामित्व वाली जेएनपीटी शामिल हैं. देश का समुद्री क्षेत्र अपने समग्र व्यापार और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जहां देश के व्यापार का 95% समुद्री परिवहन के माध्यम से किया जाता है.
लेकिन जब चीनी बंदरगाह क्षेत्र से तुलना की जाती है तो हम अभी भी बहुत पीछे हैं. पूरे भारत के प्रमुख बंदरगाहों के लिए कुल कंटेनरीकृत कार्गो की मात्रा लगभग 8.5 मिलियन टीईयू (बीस-फुट समतुल्य इकाई) है, जो कि चीन के सबसे बड़े कंटेनर बंदरगाह शंघाई (36.5 मिलियन टीईयू) द्वारा संचालित मात्रा के एक चौथाई से भी कम है. चीन के चार बंदरगाह हैं जो 20 मिलियन से अधिक टीईयू संभालते हैं, वे शंघाई, शेन्ज़ेन, निंबो और जुआन एवं और हांगकांग हैं. यहां तक कि समग्र कार्गो के पैरामीटर पर (कंटेनरीकरण के साथ या उसके बिना), भारत की विभिन्न बंदरगाहों पर विभाजित क्षमता है.
हमारे यहां अभी भी 300 एमटीपीए से अधिक कार्गो हैंडलिंग क्षमता वाला एक भी प्रमुख बंदरगाह नहीं है. तुलनात्मक रूप से, चीन में छह कार्गो बंदरगाह हैं जो प्रति वर्ष 500 मिलियन टन से अधिक कार्गो को संभाल सकते हैं और इसके अन्य आठ बंदरगाह हैं जो 100 से 500 मिलियन टन से अधिक कार्गो को संभालते हैं. शंघाई के बंदरगाह ने 2019 में 514 मिलियन टन का कार्गो टन भार संभाला, उसी वर्ष निंबो-जुआन के बंदरगाह ने 1.12 बिलियन टन का कार्गो टन भार संभाला, गुआंगजाउ के बंदरगाह ने 600 मिलियन टन से अधिक, शेडोंग प्रांत में क़िंगदाओ के बंदरगाह ने 600 मिलियन टन से अधिक का कार्गो संभाला.
विश्व निर्यात बंदरगाहों में 5% हिस्सेदारी हासिल करने के उद्देश्य से भारत के निर्यात को अगले 5 से 10 वर्षों में आक्रामक रूप से बढ़ने की आवश्यकता है और भारतीय बंदरगाहों के लिए समुद्री क्षमताओं को मजबूत करना और व्यापार करने में आसानी में सुधार करना जरूरी है.
2030 के लिए मैरीटाइम इंडिया विजन में बंदरगाहों, शिपिंग और भूमि जलमार्ग कैटेगरी में 3,00,000-3,50,000 करोड़ रुपये के समग्र निवेश का अनुमान जताया गया है. इस रोडमैप से भारतीय बंदरगाहों के लिए 20,000+ करोड़ रुपये का संभावित वार्षिक राजस्व हासिल करने का अनुमान है. इसके अलावा, इससे भारतीय समुद्री क्षेत्र में अतिरिक्त 20,00,000+ नौकरियां (प्रत्यक्ष और गैर-प्रत्यक्ष) सृजित होने की उम्मीद है.
भारत को अपने एमआईवी 2030 को हासिल करने में सक्षम बनाने में अडानी पोर्ट्स की प्रमुख भूमिका होगी. लेकिन चीनी बंदरगाहों की सफलता से जो सबक लिया जाना चाहिए वह यह है कि भारत को अडानी जैसे अधिक निजी पोर्ट ऑपरेटर्स की आवश्यकता है.
(मूल लेख का हिंदी अनुवाद)
-भारत एक्सप्रेस
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