मुद्दे की परख

खालिस्तानी अलगाववादियों के लिए पनाहगाह बना कनाडा

कनाडा में एक बड़ी और प्रभावशाली सिख आबादी है, जिसकी संख्या करीब 500,000 है. उनमें से कई अप्रवासियों के वंशज हैं जो 20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश भारत में उत्पीड़न और भेदभाव से पीछा छुड़ाकर कनाडा आए थे. उनमें से कुछ ने खालिस्तान आंदोलन का भी समर्थन किया, जो पंजाब से अलग एक सिख राज्य बनाने की मांग करता रहा है.

खालिस्तान आंदोलन 1970 और 1980 के दशक में उभरा और यह 1984 में अपने चरम पर था, जब इंदिरा गांधी ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से सिख आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए सैन्य ऑपरेशन का आदेश दिया था. ऑपरेशन ‘ब्लू स्टार’ से मंदिर परिसर को नुकसान पहुंचा था. इसके बाद पूरे देश और विदेशों में सिखों की तरफ हिंसक रिएक्शन आए और इसी साल के आखिर में इंदिरा गांधी के सिख बॉडीगार्ड्स ने उनकी हत्या कर दी.

कनाडा में, कई सिखों ने खालिस्तान मुद्दे को लेकर अपना समर्थन जताया और भारत सरकार के एक्शन की आलोचना की. उनमें से कुछ ने हिंसा और आतंकवाद का भी सहारा लिया, जैसे 1985 में एयर इंडिया फ्लाइट 182 को बम से उड़ा देना, जिसमें 329 लोग मारे गए थे. इस धमाके में जान गंवाने वाले ज्यादातर भारतीय मूल के कनाडाई थे. यह ब्लास्ट बब्बर खालसा के आतंकियों ने किया था जिसको कनाडा में कुछ कनाडाई नेताओं का समर्थन हासिल था.

तब से, कनाडा खालिस्तानी अलगाववादियों को पनाह देने और उनका समर्थन करने का दोषी रहा है, जो राजनीतिक और कभी-कभी हिंसक तरीकों से अलग सिख राज्य की मांग करते रहे हैं. भारत ने यह भी आरोप लगाया है कि 1984 के सिख विरोधी दंगों जैसे सिखों से संबंधित मानवाधिकार के मुद्दों को उठाकर कनाडा ने उसके आंतरिक मामलों में दखल दिया है.

कनाडा ने हाल ही में भारत पर एक खालिस्तानी अलगाववादी और कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में हाथ होने का आरोप लगाया है, जिसे 18 जून 2023 को सरे, बी.सी. में एक गुरुद्वारे के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. कनाडा के दावे उसकी कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा इकट्ठा की गई खुफिया रिपोर्ट्स और सबूतों पर आधारित हैं. कनाडा ने निज्जर की हत्या में अपनी कथित भूमिका के लिए भारत से स्पष्टीकरण की मांग की है और कहा है कि वह अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा या संप्रभुता के लिए किसी भी विदेशी हस्तक्षेप या खतरे को बर्दाश्त नहीं करेगा.

वहीं भारत ने कनाडा के आरोपों को बेतुका और निराधार बताते हुए खारिज कर दिया है और कनाडा पर निज्जर की हत्या को रोकने या केस सॉल्व में अपनी नाकामी से ध्यान हटाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. साथ ही भारत ने खालिस्तानी अलगाववादियों को कनाडा के समर्थन पर भी कड़ा ऐतराज जताया है और कनाडा में अपने राजनयिक मिशनों के सामने आने वाले सुरक्षा के खतरों के मद्देनजर कनाडाई नागरिकों के लिए वीजा सेवाओं को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है.

निज्जर की हत्या और खालिस्तान मुद्दे पर कनाडा और भारत के बीच राजनयिक विवाद इस हद तक बढ़ गया है कि 1980 के दशक के बाद से ऐसा कभी नहीं देखा गया. इस मामले ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को भी तनावपूर्ण बना दिया है, जो लोकतंत्र, व्यापार, शिक्षा और काउंटर-टेररिज्म जैसे समान विचार और हितों को साझा करते हैं. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में कनाडा अपनी धरती पर कुछ सिख अलगाववादियों द्वारा की जाने वाली हिंसा और उग्रवाद के खिलाफ कार्रवाई करने में बुरी तरह नाकाम रहा है. कनाडा की विफलता का सबसे क्रूर अनुस्मारक कनिष्क बम ब्लास्ट है.

बब्बर खालसा द्वारा प्लेन ब्लास्ट के पीड़ितों को न्याय दिलाने में विफल रहा कनाडा

कनिष्क बम विस्फोट इतिहास में विमानन आतंकवाद के सबसे भयावह कृत्यों में से एक था, जिसमें 23 जून 1985 को एयर इंडिया फ्लाइट 182 में सवार 329 लोगों की मौत हो गई थी. फ्लाइट मॉन्ट्रियल से लंदन जा रही थी, जिसका अंतिम गंतव्य दिल्ली और बॉम्बे था. इस प्लेन में बब्बर खालसा के आतंकियों ने बम रखा था. यह ब्लास्ट एक बड़ी आतंकवादी साजिश का हिस्सा था जिसमें एक अन्य बम भी शामिल था जो टोक्यो के नारिता हवाई अड्डे पर ब्लास्ट हुआ था, जिसमें दो बैगेज हैंडलर्स वाले मारे गए थे.

कनिष्क बम विस्फोट मामले की जांच और अभियोजन लगभग 20 वर्षों तक चला और कनाडाई सरकार पर लगभग 130 मिलियन कनाडाई डॉलर का खर्च आया. यह कनाडा के इतिहास का सबसे महंगा ट्रायल था. हालांकि, इससे पीड़ितों और उनके परिवारों को न्याय नहीं मिल सका, इस मामले में केवल एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया और मुख्य साजिशकर्ता बच निकले.

इस मामले में दोषी ठहराया गया एकमात्र शख्स इंदरजीत सिंह रेयात था, जो एक ब्रिटिश-कनाडाई नागरिक था और जिसे बम बनाने और फिर बम को सामान में रखकर दो विमानों में प्लांट करने का दोषी ठहराया गया था. उसे 15 साल जेल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन दो-तिहाई सजा काटने के बाद 2016 में रेयात को रिहा कर दिया गया था.

अन्य दो आरोपियों रिपुदमन सिंह मलिक और अजायब सिंह बागरी को 2005 में सुप्रीम कोर्ट बी.सी. द्वारा सबूतों की कमी और प्रमुख गवाहों की विश्वसनीयता के कारण कारण बरी कर दिया गया था. गवाहों पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने दोनों प्रतिवादियों को बम विस्फोट की साजिश में शामिल होने की बात कबूल करते हुए सुना था, लेकिन जज ने इसे पक्षपातपूर्ण और अविश्वसनीय माना. जज ने महत्वपूर्ण सबूतों को संभालकर न रखने या फिर नष्ट कर देने और एक-दूसरे के साथ सहयोग करने में नाकाम रहने के लिए पुलिस और कनाडाई सुरक्षा खुफिया सेवा (सीएसआईएस) को भी कड़ी फटकार लगाई थी.

मलिक और बागरी को बरी किए जाने से पीड़ित परिवारों और कनाडाई जनता में आक्रोश के साथ-साथ निराशा भी थी और उनको लगा कि उन्हें न्याय नहीं मिला है. कनाडाई सरकार ने अपनी विफलता के लिए माफ़ी मांगी और परिवारों को मुआवजे की पेशकश की. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जॉन मेजर के नेतृत्व में मामले की सार्वजनिक जांच भी शुरू की. इसके बाद 2010 में जारी जांच रिपोर्ट में कनाडा की आतंकवाद विरोधी नीतियों में सुधार के लिए कई सिफारिशें की गईं.

हालांकि, इनमें से कोई भी तरीका पीड़ितों और उनके प्रियजनों की तकलीफों और नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता था. कनिष्क बम विस्फोट कनाडा के इतिहास और प्रतिष्ठा पर हमेशा के लिए काला धब्बा बन गया है.

कनाडा एक ऐसा देश है जो अपनी विविधता और सहिष्णुता पर गर्व करता है, विभिन्न पृष्ठभूमि, संस्कृतियों और धर्मों के लोगों का स्वागत करता है. यहां के नागरिकों में लाखों की संख्या में सिख हैं, जो एकेश्वरवादी आस्था का पालन करते हैं और जो भारत के पंजाब राज्य से ताल्लुक रखते हैं. हालांकि, सभी सिख भारत या उसकी सरकार के प्रति वफादार नहीं हैं. उनमें से कुछ खालिस्तान आंदोलन का समर्थन करते हैं, जो पंजाब में भारतीय शासन से मुक्त एक अलग सिख राज्य की मांग करता है. ये खालिस्तानी अलगाववादी भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं.

दूसरी ओर कनाडा का कहना है वह भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करता है, लेकिन अपने नागरिकों की अभिव्यक्ति और शांतिपूर्ण विरोध की स्वतंत्रता को भी बरकरार रखता है, चाहे उनकी धार्मिक या जातीय पृष्ठभूमि कुछ भी हो.

लेकिन संवैधानिक स्वतंत्रता के पर्दे के पीछे अपनी धरती पर या अपने सहयोगियों के खिलाफ सिख अलगाववादियों द्वारा किए गए आतंकवाद और हिंसा के कृत्यों को रोकने या उनके खिलाफ एक्शन लेने में कनाडा की नाकामी की एक कहानी छिपी है. कनाडा सिख अलगाववादियों को अपनी अलगाववादी विचारधारा का प्रचार करने और इसमें नए लोगों को शामिल करने के लिए एक सुरक्षित आश्रय और मंच प्रदान कर रहा है. कनाडा एक हिंसक और विभाजनकारी आंदोलन का समर्थन करके एक शांतिपूर्ण और बहुसांस्कृतिक देश के रूप में अपनी विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा को कम कर रहा है.

(मूल लेख का हिंदी अनुवाद)

-भारत एक्सप्रेस

उपेन्द्र राय, सीएमडी / एडिटर-इन-चीफ, भारत एक्सप्रेस

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