मुद्दे की परख

अडानी मामले पर विपक्ष का दोहरा रवैया

विपक्षी दलों को लग रहा है कि जिस पल का इंतजार उन्हें पिछले 9 साल से था, आखिरकार वो घड़ी आ ही गई. घोटाला, स्कैंडल, विवाद- जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उनकी साफ-सुथरी छवि को धूमिल कर सकते हैं. गुजरात दंगा, सहारा-बिड़ला डायरी, राफेल सौदा सरीखे मुद्दों पर असफल प्रयासों के बाद विपक्ष को लगता है कि अडानी-हिंडनबर्ग मामला उन्हें पुनर्जीवित कर सकता है. इस विश्वास ने कांग्रेस जैसी पार्टियों को उम्मीद की एक किरण दे दी है. हालांकि, इस पूरे प्रकरण में भी एक बड़ी विडंबना है.

यदि अडानी द्वारा हाल ही में लिए गए तमाम प्रोजेक्ट्स और डील को देखेंगे तो आपको विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों – अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, पिनराई विजयन और ममता बनर्जी की तस्वीरें दिखाई देंगी. ये सभी गौतम अडानी के साथ निवेश सौदों पर साइन करते नजर आ रहे हैं. ममता बनर्जी ने 4 जुलाई, 2022 को अपनी सरकार द्वारा आयोजित बिजनेस कॉन्क्लेव में साफ तौर पर कहा, “राजनीति अलग है और उद्योग अलग है. यदि आप आगे बढ़ना चाहते हैं, तो आपको सभी को शामिल करना होगा. आपको फल सभी में बांटने होंगे. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन A है, कौन B है, कौन C है और कौन D.”

अडानी ग्रुप ने एक दशक में पश्चिम बंगाल में पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर, डेटा सेंटर और अंडर-सी केबल, डिजिटल इनोवेशन, फुलफिलमेंट सेंटर, वेयरहाउस और लॉजिस्टिक्स पार्क विकसित करने के लिए 10,000 करोड़ रुपये का निवेश का वादा किया है. पश्चिम बंगाल सरकार ने हाल ही में अडानी एंटरप्राइजेज को कोलकाता के बाहरी इलाके के न्यू टाउन (New Town) क्षेत्र में बंगाल सिलिकॉन वैली स्थित 51 एकड़ भूमि पर एक हाइपर-स्केल डेटा सेंटर स्थापित करने की मंजूरी दी है.

मार्च 2022 में, अडानी पोर्ट्स और SEZ (APSEZ) ने ताजपुर में पश्चिम बंगाल सरकार की ग्रीनफ़ील्ड डीप-सी पोर्ट परियोजना (Greenfield Deep-Sea Port Project) के लिए बोली जीती थी. APSEZ ने राज्य सरकार को सकल राजस्व का 0.25 प्रतिशत हिस्सा देने की पेशकश की है, जिसे ममता बनर्जी की कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. समूह की एक अन्य कंपनी अडानी विल्मर (Adani Wilmar) ने हाल ही में बर्धमान में एक चावल मिल का अधिग्रहण किया है. समूह ने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) के साथ साझेदारी में राज्य में गैस वितरण लाइसेंस भी हासिल कर लिया है.

अडानी समूह क्लीन एनर्जी में 70 बिलियन डॉलर का निवेश कर रहा है. गौतम अडानी का विजन जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता को कम करना और देश को क्लीन एनर्जी का निर्यातक बनाना है. अडानी के अधिकांश ग्रीन एनर्जी इन्वेस्टमेंट विपक्ष शासित राज्यों में हैं.

क्या अडानी के प्रोजेक्ट सिर्फ बीजेपी शासित राज्यों में हैं?

अडानी के राजस्थान में 5 सोलर पावर प्रोजेक्ट्स हैं. दिलचस्प बात यह है कि गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 50,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश वाले इन सभी पांच प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी है. कांग्रेस के रुख में विडंबना यह है कि राजस्थान में उसकी पार्टी की सरकार ने सोलर पार्कों के निर्माण के लिए अडानी समूह को भूमि आवंटित किया.

गहलोत के नेतृत्व में राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने ‘अडानी रिन्यूएबल एनर्जी होल्डिंग फॉर लिमिटेड’ को 1000 मेगावॉट का सोलर पावर प्रोजेक्ट लगाने के लिए 9479.15 बीघा (2397.54 हेक्टेयर) सरकारी जमीन आवंटित की है. ‘इन्वेस्ट राजस्थान’ आउटरीच कार्यक्रम के तहत, राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को गौतम अडानी और मुकेश अंबानी से सबसे बड़ा निवेश का आश्वासन मिला. राजस्थान सरकार के पास उपलब्ध लेटर ऑफ इंटेंट (LoI) और मेमोरंडा ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoU) में दिसंबर 2021 और मार्च 2022 के बीच दोनों A (राहुल गांधी इस फ्रेज के जरिए अडानी और अंबानी का जिक्र करते हैं) ने मिलकर 1.68 ट्रिलियन रुपये से अधिक का वादा किया.

रिलायंस न्यू एनर्जी सोलर लिमिटेड ने 1 ट्रिलियन रुपये, अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड ने 60,000 करोड़ रुपये, इसके बाद अडानी इंफ्रा लिमिटेड, अडानी टोटल गैस लिमिटेड और अडानी विल्मर लिमिटेड ने 5,000 करोड़ रुपये, 3,000 करोड़ रुपये और 246.08 करोड़ रुपये का निवेश किया. इतने इन्वेस्टमेंट को देखने के बाद सवाल उठता है- क्या अडानी की जेब में हैं अशोक गहलोत सरकार? या अडानी की सोलर एनर्जी परियोजना के लिए भूमि का आवंटन पारदर्शी बोली प्रक्रिया के तहत हुआ है?

अडानी समूह ने दावा किया है कि चाहे वह कांग्रेस द्वारा शासित राज्यों में बिजली परियोजनाओं को हासिल करना हो या भाजपा शासित राज्यों में बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े टेंडर हासिल करने हों… अडानी ग्रुप इसलिए टेंडर हासिल कर रहा है, क्योंकि वह सरकारी खजाने के अनुकूल बोली लगा रहा है.

यूपीए ने भी अडानी की परियोजनाओं का समर्थन किया

13 मार्च 2014 को केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने 7,020 करोड़ रुपये की अडानी पावर राजस्थान लिमिटेड परियोजना और 6,560 करोड़ रुपये की अडानी पावर महाराष्ट्र लिमिटेड परियोजना के लिए “अमेंडमेंट टू एनवायरमेंटल क्लियरेंस’ को मंजूरी दी. दो थर्मल पावर प्रोजेक्ट, अडानी का महाराष्ट्र के तिरोडा में 3300MW का प्लांट और राजस्थान के कवई में 1330MW का प्लांट पर्यावरण संबंधी क्लियरेंस के लिए 22 जुलाई, 2013 को MoEF के पास आया था. राजस्थान और महाराष्ट्र में बिजली परियोजनाओं को क्रमश: मई 2011 और अप्रैल 2010 में पर्यावरणीय मंजूरी मिली थी.

परियोजनाओं को मार्च 2014 में तब हरी झंडी मिली जब मोइली के मंत्रालय ने “Amendment to Environment Clearance” जारी किया. अडानी के ज्यादातर कारोबारों की नींव UPA के दौर में रखी गई. जिनमें बंदरगाहों से लेकर बिजली उत्पादन और ट्रांसमिशन, सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन, लॉजिस्टिक्स और साइलो बिजनेस शामिल हैं. आज अडानी के पास एक दर्जन से अधिक भारतीय राज्यों में संपत्ति और उनका संचालन है. उनमें से कुछ पर बीजेपी का और कुछ पर गैर-बीजेपी राजनीतिक दलों का शासन है.

केरल की CPM सरकार अडानी का पूरा समर्थन

विझिंजम पोर्ट को उच्च स्तर पर विकसित करने के लिए भारत सरकार ने कुछ साल पहले एक पारदर्शी टेंडर पास किया था जिसके लिए सिर्फ अडानी ग्रुप ही आगे आया. विझिंजम विशिष्ट रूप से एशिया और यूरोप के बीच शिपिंग मार्गों के करीब स्थित है. भारत को ‘डीप वॉटर पोर्ट’ की सख्त ज़रूरत है. अडानी का विझिंजम पोर्ट उस ज़रूरत को पूरा कर सकता है. यह भारत का सबसे गहरा बंदरगाह और पूरे दक्षिण भारत के लिए ट्रांस-शिपमेंट हब हो सकता है. केरल की वर्तमान कम्युनिस्ट सरकार अडानी समूह को पूरी तरह से समर्थन दे रही है.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और भाजपा के सैकड़ों कार्यकर्ता अडानी समूह के समर्थन में संयुक्त जुलूस निकालते रहे हैं. दो विपरीत विचारधाराओं के लोगों का राष्ट्रहित में एक साथ आना बेवजह नहीं है. केरल से लोकसभा सांसद और अनुभवी कांग्रेस नेता शशि थरूर, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भी शीर्ष पदों पर काम किया है, उन्होंने इस परियोजना का समर्थन किया है. थरूर ने संसद में भी इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया. केरल उच्च न्यायालय ने भी निर्देश दिया है कि विझिंजम बंदरगाह का निर्माण कार्य जारी रहना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक आंदोलन के चलते विकास कार्यों में बाधा नहीं आनी चाहिए.

इस पूरे मामले का निचोड़ यह है कि विपक्ष में रहते हुए कोई भी उद्योग विरोधी हो सकता है. लेकिन जब वही सत्ता में होता है, तो उसे नौकरियों के अवसर पैदा करने और बिजनेस के लिए अनुकूल महौल बनाने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. हर राजनेता को रोजगार पैदा करने और व्यापार के फलने-फूलने के लिए अनुकूल नीतिगत माहौल बनाने की जिम्मेदारी होती है. लिहाजा, इससे साफ है कि क्यों राहुल गांधी, जो कभी भी सरकार में किसी पद पर नहीं रहे, वो आराम से दिन-रात अंबानी और अडानी की आलोचना कर लेते हैं. जबकि दूसरी ओर, दस साल तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने कभी किसी उद्योगपति या कॉरपोरेट समूह के खिलाफ एक भी नकारात्मक बयान नहीं दिया.

कुल मिलाकर भारत के सभी राज्यों में इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में अडानी की भूमिका को देखते हुए, चाहें वो बीजेपी शासित राज्य हों या फिर कांग्रेस शासित, किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट को लेकर विपक्ष का यह विरोध जल्द ही शांत हो जाएगा.

उपेन्द्र राय, सीएमडी / एडिटर-इन-चीफ, भारत एक्सप्रेस

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