नज़रिया

नई संसद, नई पहचान: आत्मनिर्भरता को नया आयाम

आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को आधुनिक पहचान मिलने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का नेतृत्व करेंगे। इसके पहले चरण में पारंपरिक सनातन रीति-रिवाजों के अनुसार हवन-पूजन का कार्यक्रम रखा गया है जिसमें प्रधानमंत्री के साथ ही लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के उपसभापति एवं केंद्रीय कैबिनेट के मंत्रीगण शामिल रहेंगे। इसी दौरान पारंपरिक अनुष्ठान के साथ लोकसभा कक्ष में अध्यक्ष के आसन के समीप पवित्र सेंगोल को स्थापित किया जाएगा। समारोह का दूसरा चरण दोपहर में पीएम मोदी सहित गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में लोकसभा कक्ष में राष्ट्रगान के साथ शुरू होगा और इसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के संदेश वाचन के साथ ही संसद के संरक्षक के तौर पर स्पीकर गणमान्य अतिथियों को संबोधित करेंगे। वैसे तो समारोह में राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे के भाषण के लिए भी समय रखा गया है लेकिन विपक्ष के बहिष्कार के कारण समारोह में उनके शामिल होने की उम्मीद कम है। कांग्रेस 20 दलों के उस समूह की अगुवाई कर रही है जिसने प्रधानमंत्री के बजाय राष्ट्रपति के हाथों नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह की मांग पूरी न होने के कारण समारोह का बायकॉट किया है।

बेशक गुण-दोष के आधार पर विपक्ष का तर्क विचारणीय हो सकता है लेकिन फिर भी मेरी नजर में बहिष्कार अतिवादी प्रतिक्रिया है। विशेषकर उस ऐतिहासिक अवसर के संदर्भ में जिसमें पूरे देश के जश्न में चुने हुए जनप्रतिनिधि भी साथ आते तो देश की एक एकजुट तस्वीर दुनिया के सामने जाती। तीन देशों का दौरा कर भारत लौटने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पालम एयरपोर्ट पर अपने संबोधन में सिडनी में भारतीय समुदाय के कार्यक्रम में वहां के  मौजूदा एवं पूर्व प्रधानमंत्री और सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष के सभी नेताओं की उपस्थिति का हवाला इसी भाव से दिया था। यकीनन इससे मिला यश अकेले देश के प्रधानमंत्री का तो नहीं है। ये यश हिन्दुस्तान के सामर्थ्य और 140 करोड़ हिन्दुस्तानियों के जज्बे का है।

अपने पिछले नौ साल के कार्यकाल में मोदी सरकार ने इसी सामर्थ्य, इसी जज्बे को नया आयाम, नई पहचान देने की भरपूर कोशिश की है। आज जिस तरह भारत के आदर्श, संकल्प और लक्ष्य उसके अपने हैं, उसी तरह अब हमारे प्रतीक भी गुलामी की मानसिकता से मुक्त होकर हमारे अपने हैं। प्रधानमंत्री के शब्दों में कहें तो यह मन ओर मानस की आजादी का लक्ष्य हासिल करने तक निरंतर चलने वाली संकल्प यात्रा है। नया संसद भवन इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। 1927 में जब तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने संसद का उद्घाटन किया था तो वो भारत की जमीन पर उपनिवेशी शक्ति द्वारा बनाया गया एक भवन मात्र था। उसका उद्घाटन भी यूरोपीय परंपरा के तहत ही हुआ था जिसका भारत से कोई ज्यादा लेना-देना नहीं था। कहने का मतलब यह कि उस समूचे अवसर पर औपनिवेशिक मानसिकता का एक दाग था जो अब पूरी तरह से भारतीय छाप वाले नए संसद भवन के निर्माण से दूर हो रहा है।

संसद का नया भवन गुलामी की मानसिकता के परित्याग का कोई पहला उदाहरण भी नहीं है। मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में ऐसे कई कदम उठाए हैं जिससे देश बहुत तेजी से इस मानसिकता से छुटकारा पाने की दिशा में रफ्तार भर रहा है। किंग्स-वे यानी राजाओं के आने-जाने के रास्ते के हिंदी अनुवाद से बना राजपथ अब कर्तव्य पथ बन चुका है, देश के प्रधानमंत्री के निवास वाला रेस कोर्स रोड भी लोक कल्याण मार्ग के रूप में नई पहचान बना रहा है। इंडिया गेट पर 1968 तक स्थापित रही किंग जॉर्ज पंचम की मूर्ति की जगह अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा ने ले ली है। नौसेना का नया ध्वज भी अब भारतीय स्वरूप ले चुका है। पिछले नौ साल में ब्रिटिश साम्राज्य के दौर से चले आ रहे 1,500 से ज्यादा पुराने और बेतुके कानूनों को बदला गया है। वहीं, गणतंत्र दिवस के बाद होने वाली बीटिंग द रिट्रीट समारोह के आखिर में बजाए जाने वाली अबाईड विद मी ट्यून भी इतिहास का हिस्सा बन चुकी है। सेना के बैंड से बजने वाले गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ और विदेशी की जगह भारतीय वाद्य यंत्रों सितार, संतूर, तबला के उपयोग से पूरा का पूरा बीटिंग द रिट्रीट समारोह अब भारतीय रंग में रंग चुका है। आम बजट की तारीख और रेल बजट को भी उसके साथ मिलाकर पेश कर रहा भारत अंग्रेजों की डाली परंपरा से अलग नई राह पर बढ़ चुका है।

नया संसद भवन इस लिहाज से भी बेहद खास हो जाता है कि अब हम भी उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गए हैं, जिसके पास गुलामी से मिली आजादी के बाद खुद का बनाया हुआ संसद भवन होगा। ये एक तरह से पूरे देश के लिए गर्व का विषय भी है। बीते 75 वर्षों से संसद वह स्थान रही है जहां देश की नियति को आकार दिया गया है। कई ऐतिहासिक बिलों के माध्यम से देश को मजबूती और आत्मविश्वास मिला है। जाहिर है इसके पीछे एक बेहद बड़े मानव संसाधन की मौजूदगी भी रही है। पिछले कुछ वर्षों में संसदीय गतिविधियों और दोनों सदनों में काम करने वाले लोगों की संख्या में और वृद्धि हुई है। इसके कारण करीब 100 वर्ष पुरानी तकनीक पर बना मौजूदा संसद भवन उपलब्ध जगह और सुविधाओं के संदर्भ में वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहा था। मुझे याद आता है कि जब 2009 से 2014 के कालखंड में मीरा कुमार लोकसभा अध्यक्ष थीं, तब कांग्रेस की ओर से ही नए संसद भवन की आवश्यकता का समर्थन किया गया था। जिन लोगों का वर्तमान संसद भवन में विभिन्न कारणों से लगातार आना-जाना होता है, वो आसानी से बता सकते हैं कि किस तरह यहां जगह की भारी कमी है। कर्मचारियों के बैठने से लेकर राजनीतिक दलों के लिए अपने कार्यालयों तक के लिए जगह की मारामारी है। साथ में दीवारों और छतों में गहरी दरारें, छतों से टपकता पानी, वक्त-बेवक्त खराब होते एयर कंडीशनर, दशकों पुराने साउंड सिस्टम की परेशानी अलग थी। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां सांसदों के लिए जगह कम पड़ने वाली थी। पुराने भवन में केवल 543 लोकसभा सांसदों के बैठने की जगह थी।  2026 में जब लोकसभा सीटों का परिसीमन होगा तो 800 से ज्यादा सांसदों के लिए बैठने की जरूरत होगी। पुराने भवन में इसका इंतजाम असंभव होता। इसलिए भी नया संसद भवन जरूरी हो गया था। हालांकि यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था, लेकिन देर आए दुरुस्त आए। इस बात का भी बड़ा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है कि नया भवन केवल 30 महीने के रिकॉर्ड समय के भीतर पूरा हो गया। नया भवन राष्ट्रीय प्रतीकों पर आधारित और आधुनिक संचार तकनीकों से लैस है और इसमें अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा है। राष्ट्रीय पक्षी ‘मोर’ की थीम पर आधारित लोकसभा 888 सीटों के साथ तीन गुना बड़ी होगी। हमारे राष्ट्रीय फूल ‘कमल’ की थीम पर आधारित पुनर्निर्मित राज्यसभा हॉल में 384 लोगों के बैठने की क्षमता होगी। ऐसा अनुमान है कि यह नया भवन अगले 100 साल तक संसद से जुड़ी भौतिक जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होगा। साथ ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए यह अपनी विरासत पर गर्व का एक और अवसर होगा। प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई है कि जिस तरह पुराने संसद भवन ने स्वतंत्रता के बाद के भारत को दिशा दी, उसी तर्ज पर नया भवन आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का गवाह बनेगा। मैं समझता हूं कि देश का प्रत्येक नागरिक प्रधानमंत्री की इस लक्ष्य सिद्धि के फलीभूत होने का आकांक्षी होगा।

-भारत एक्सप्रेस

उपेन्द्र राय, सीएमडी / एडिटर-इन-चीफ, भारत एक्सप्रेस

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