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Goa Unique Custom Celebrate Diwali: गोवा की अनोखी दिवाली, नरकासुर का पुतला जलाकर लोग मनाते हैं त्योहार

Diwali In Goa:  आज दुनिया भर में लोग दिवाली मना रहे हैं. इस दिन लोग दिवाली के त्योहार पर दिये जलाते हैं, पटाखे फोड़ते हैं और एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशी को बांटते हैं, लेकिन गोवा में दिवाली की मनाने का एक अलग ही अंदाज है. हालांकि, गोवा में, रोशनी के त्योहार पर लोग बुराई और अंधकार के प्रतीक राक्षस नरकासुर का पुतला जलाते हैं. दशकों पुरानी यह परंपरा सिर्फ आतिशबाजी का तमाशा नहीं है, बल्कि बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी है.  सबसे खास बात ये की गोवा में लोग दिवाली को अनूठे रिवाज के साथ मनाते हैं. प्रदेश में दिवाली के दिन जगह-जगह राक्षसराज नरकासुर के पुतले को जलाया जाता है.

बनाया जाता है डरावना और भयंकर नरकासुर

दिवाली से पहले ही गोवा में युवा डरावना नरकासुर का पुतला बनाने में जुट जाते हैं. जगह-जगह पुतला दहन होता है. पुतले 20 मीटर तक ऊंचे होते हैं. ज्यादातर प्रतियोगिताएं दक्षिण गोवा के मारगांव और उत्तरी गोवा के पोरवोरिम में होती हैं. यहां कई परिवार ऐसे हैं जो कई पीढ़ियों से नरकासुर का पुतला बनाने की परंपरा से जुड़े हैं. गोवा के लोगों का कहना है कि बिना नरकासुर का पुतला दहन किए दिवाली के आनंद की कल्पना नहीं कर सकते.

नरकासुर शब्द दो शब्दों नरक और असुर से मिलकर बना है. यह न केवल गोवा में एक सांस्कृतिक परंपरा है, बल्कि अगली पीढ़ियों के लिए एक आध्यात्मिक सबक भी है. राक्षस का पुतला जलाना सभी को अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने और सत्य और धार्मिकता के मूल्यों को बनाए रखने के महत्व की याद दिलाता है. यह उत्सव देश की संस्कृति की विविधता और एकता को भी प्रदर्शित करता है.

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कौन था नरकासुर?

भूमि देवी यानी धरती माता का नरक नाम का एक पुत्र था. यद्यपि नरक एक देवपुत्र था, फिर भी उसका स्वभाव राक्षस जैसा था. नरक शक्तिशाली था और उसे तीनों लोकों के निवासियों को आतंकित करने में आनंद आता था. नरकासुर ने एक बार सोचा कि क्यों न तीनों लोकों पर आक्रमण किया जाए. फिर उसने उत्पात मचाना शुरू कर दिया. वह महिलाओं को भी नहीं छोड़ता था और अपने निजी हरम के लिए उनका अपहरण कर लेता था. नरकासुर ने सुना कि देवों के राजा इंद्र की सेना में हजारों दिव्य हाथी हैं. अब नरकासुर, लालची होकर, हर चीज़ पर कब्ज़ा करना चाहता था, इसलिए उसने स्वर्ग पर हमला कर दिया. इंद्र असहाय हो गए. नरका ने स्वयं देवताओं का पीछा करना शुरू कर दिया. देवताओं का पीछा करते समय, दूर से एक चमकती हुई वस्तु पर उसकी नजर पड़ी. निरीक्षण करने पर, उन्हें एहसास हुआ कि वह चमकती वस्तु मां अदिति की बालियां थीं. उसने मां अदिति के साथ मारपीट की और उनकी बालियां छीन लीं. अब इंद्र, अपमानित महसूस कर रहे थे और इससे भी बदतर यह था कि उनकी मां पर हमला किया गया था. वह बदला लेना चाहते थे और वह जानते थे कि केवल एक ही व्यक्ति था जो नरक का मुकाबला कर सकता था. यह कृष्णा थे.

इंद्र कृष्ण के महल में पहुंचे जब कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ अच्छा समय बिता रहे थे. उन्होंने कृष्ण को घटनाओं के बारे में बताया और उनसे मदद की भीख मांगी. कृष्ण इस बात से क्रोधित थे कि नरक कहीं माता अदिति पर हाथ न डाल दे और उन्होंने कहा कि नरक को अपनी धृष्टता के लिए मरना होगा. इसके बाद कृष्ण और नरकासुर में भीषण युद्ध हुआ. भगवान कृष्ण अपनी पत्नी के साथ युद्ध करने पहुंचे. इस दौरान कृष्ण अचेत हो गए. इसके बाद नरकासुर और सत्यभामा के बीच युद्ध हुआ. सत्यभामा ने नरक का अंत कर दिया, इसके बाद से गोवा के लोग इस दिन नरकासुर का पुतला जलाते हैं.

-भारत एक्सप्रेस

 

 

Rakesh Kumar

Sr. Sub-Editor

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