पेरिस ओलंपिक में सहयोगी स्टाफ मौज-मस्ती के लिए नहीं होगा. पहले भारत के ओलंपिक दल के साथ आने वाले सहायकों की संख्या को लेकर सवाल उठना जायज था. इस बार 140 सहयोगी स्टाफ में से ज्यादातर कोच और अन्य विशेषज्ञ हैं जिनकी हमारे एथलीटों को जरूरत है.
हमें सनसनी फैलाना और विवाद करना पसंद है. और, ईमानदारी से कहें तो विवाद बिकता है. एक हेडलाइन जिसमें कहा गया है कि भारत 117 एथलीट और 140 सहायक कर्मचारी भेज रहा है, विवाद के लिए ही बनी है.
तत्कालिक समझ यह है कि अधिकारी और बाबू सरकारी खर्च पर यात्रा कर रहे हैं और पेरिस में मौज-मस्ती करेंगे. अतीत में ऐसी चीजें अक्सर होती रही हैं, इसलिए मीडिया को भी दोष नहीं दिया जा सकता.
हालांकि, इस बार चीजें अलग हैं. 140 नामों में से प्रत्येक की विस्तृत जांच से पता चलता है कि 85 प्रतिशत से अधिक सहायक कर्मचारी कोच, खेल वैज्ञानिक, मेडिकल टीम और फिजियोथेरेपिस्ट हैं, एथलीटों के लिए मानसिक कंडीशनिंग कोच को तो भूल ही जाइए. एथलीटों के लिए 1:1 अनुपात पाने का प्रयास किया गया है ताकि हर कोई सहज और अच्छी तरह से तैयार हो.
मैं कुछ उदाहरणों से समझाता हूं. मनु भाकर ने जसपाल राणा के साथ ट्रेनिंग की है. अब अगर जसपाल को यात्रा करने की अनुमति नहीं दी गई, तो कुछ खास नहीं कहा जा सकता, लेकिन जसपाल के साथ मनु निश्चित रूप से अपने आराम क्षेत्र में होगी. ऐसी चीजें मायने रखती हैं और अंत में असली अंतर पैदा करती हैं. बैडमिंटन में प्रकाश पादुकोण और विमल कुमार के बारे में भी यही कहा जा सकता है.
पुलेला गोपीचंद पहले से ही मुख्य कोच के रूप में मौजूद हैं, इसलिए हमेशा इस बात पर बहस होती थी कि पेरिस में हमें दो अतिरिक्त कोच की क्या जरूरत थी, लेकिन फिर यह गोपीचंद और पीवी सिंधु के साथ अन्याय होगा.
उन्होंने हाल के दिनों में एक-दूसरे के साथ प्रशिक्षण नहीं लिया है और सिंधु ने सोशल मीडिया पर बार-बार कहा है कि पादुकोण ने कितना अंतर पैदा किया है. उनके साथ होने से सिंधु के पास वह सब कुछ होगा जिसकी उसे चीनी खिलाड़ियों के खिलाफ जरूरत है.
मैं आपको रियो 2016 में वापस ले चलता हूं, ताकि इस बात को समझा सकूं. विनेश फोगाट क्वार्टर फाइनल में चीनी खिलाड़ी के खिलाफ 1-0 से आगे चल रही थीं, तभी उन्हें चोट लग गई. जब उन्हें स्ट्रेचर पर ले जाया जा रहा था, तो हममें से हर कोई उनकी पीड़ा सुन सकता था. भारत के पास उचित चिकित्सा दल मौजूद नहीं था और यह एथलीट के लिए एक दर्दनाक अनुभव था. ऐसी चीजें एक छाप छोड़ती हैं और प्रतिभागियों के लिए चीजों को बहुत मुश्किल बना देती हैं.
कपड़ों का क्षेत्र भी एक ऐसा क्षेत्र है, जहां भारत को अतीत में कमी का सामना करना पड़ा है. मुझे अभी भी याद है कि 4×400 मीटर दौड़ में भाग लेने वाली लड़कियों की चौकड़ी ने हमसे कहा था कि उनकी जर्सी सिर्फ एक बार धोने के बाद भी पहनने लायक नहीं है. JSW के कपड़ों और PUMA के फुटवियर के पार्टनर के रूप में आगे आने के बाद ऐसे मुद्दे अब अतीत की बात हो गए हैं.
खेल वैज्ञानिकों की बात करें तो हम जानते हैं कि वे कितने महत्वपूर्ण हो सकते हैं. हां, यह सच है कि आप किसी खेल वैज्ञानिक को पिछले कुछ महीनों से किसी एथलीट के साथ जोड़कर चमत्कार की उम्मीद नहीं कर सकते, लेकिन देर आए दुरुस्त आए. सच तो यह है कि बाबू लोग नहीं जा रहे हैं.
सच तो यह है कि अधिकारी मौज-मस्ती करने के लिए बहुत ज्यादा नहीं जा रहे हैं. करीब 120 सहायक कर्मचारी सीधे तौर पर एथलीटों की जरूरतों से जुड़े हैं और उन्हें भारत को बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करनी चाहिए. जहां श्रेय दिया जाना चाहिए, वहां दिया जाना चाहिए.
अगर भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) और भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) ऐसा करने में कामयाब रहे हैं, तो मीडिया का काम इसे उजागर करना है, न कि केवल 117 एथलीट और 140 सहायक कर्मचारी कहना. प्रशंसकों को वास्तविकता जानने की जरूरत है और उन्हें विकृत तस्वीर नहीं दी जानी चाहिए.
कोई नहीं जानता कि पेरिस में क्या होगा, जबकि हम में से हर कोई अपने सर्वश्रेष्ठ खेलों की उम्मीद करता है, यह भी सच है कि ओलंपिक में कोई भी भविष्यवाणी काम नहीं कर सकती.
हालांकि एक बात पक्की है, भारत सबसे अच्छी तरह से तैयार और सुसज्जित है, क्योंकि हम अंतिम उल्टी गिनती शुरू कर रहे हैं. केवल समय ही बताएगा कि टीम के लिए किए गए प्रयास वांछित परिणाम देते हैं या नहीं. तैयारी के अंतिम सात दिनों के लिए उन्हें शुभकामनाएं.
(Boria Majumdar की फेसबुक पोस्ट से साभार)
-भारत एक्सप्रेस
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