Rakshabandhan Special: आज पूरा देश रक्षाबंधन का त्योहार मना रहा है. सुबह से ही हिंदू समाज के इस महत्वपूर्ण पर्व की रौनक दिखाई देने लगी है. तो वहीं उत्तर प्रदेश के संभल जिले के गांव बेनीपुर चक में आज भी रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता है.
मान्यता है कि अगर कोई बहन यहां पर अपने भाई को राखी बांधती है तो फिर उसे घर-गांव छोड़ना पड़ता है. इसको लेकर यहां पर एक प्रचलित मान्यता है, जिसको लोग सदियों से मानते आ रहे हैं.
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यह गांव शहर से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. कई बार गांव में इस मान्यता के खिलाफ आवाज भी उठी लेकिन पुराने लोग इस मान्यता को खत्म नहीं कर रहे हैं और यही वजह है कि आज भी यहां पर रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है. वैसे तो कोई त्योहार और परांपरा हमारी संस्कृति का ही हिस्सा होता है लेकिन ये कई मान्यताओं से बंधा भी होता है. इसी मान्यता की वजह से बेनीपुर चक में भाई की कलाई रक्षाबंधन के दिन सूनी ही रहती है.
यह गांव शहर से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. कई बार गांव में इस मान्यता के खिलाफ आवाज भी उठी लेकिन पुराने लोग इस मान्यता को खत्म नहीं कर रहे हैं और यही वजह है कि आज भी यहां पर रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है. वैसे तो कोई त्योहार और परांपरा हमारी संस्कृति का ही हिस्सा होता है लेकिन ये कई मान्यताओं से बंधा भी होता है. इसी मान्यता की वजह से बेनीपुर चक में भाई की कलाई रक्षाबंधन के दिन सूनी ही रहती है.
गांव के बुजुर्ग यहां पर चली आ रही मान्यता के बारे में बताते हैं और कहते हैं कि वे पहले अलीगढ़ की अतरौली तहसील के गांव सेमराई में रहते थे. ये गांव यादव और ठाकुर बहुल था लेकिन जमींदारी यादव परिवार की थी. दोनों वर्गों में खूब मित्रता थी. यहां के लोग बताते हैं कि कई पीढ़ियों तक ठाकुर परिवार में कोई बेटा नहीं जन्मा. इसलिए ठाकुर परिवार की एक बेटी ने यादवों के बेटों को राखी बांध दी और फिर ये परंपरा शूरू हो गई.
कहा जाता है कि एक बार एक बार ठाकुर की बेटी ने जमींदार के बेटे को राखी बांधी और उपहार में जमींदारी मांग ली. इस पर जमींदार ने उसी दिन गांव छोड़ने का निर्णय लिया. मान्यता है कि बाद में ठाकुर की बेटी और गांव वालों ने जमींदार को बहुत समझाया लेकिन वे नहीं माने. इसी के बाद जमींदार अपने कुनबे के साथ संभल के गांव बेनीपुर चक में आकर बस गए और सभी से यहीं पर रह रहे हैं. इस घटना के बाद ही ये फैसला लिया कि अब राखी नहीं बंधवाएंगे.
गांव निवासी एक यादव परिवार बताता है कि इस गांव में यादव परिवार मेहर और बकिया गौत्र के हैं और इसी गौत्र के यादव रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाते हैं. मेहर गौत्र के लोग आसपास के गांव कटौनी, चुहरपुर, महोरा लखुपुरा, बड़वाली मढ़ैया में भी रहते हैं, वे परिवार भी रक्षाबंधन नहीं मनाते हैं. वे दशकों से इस मान्यता को मानते चले आ रहे हैं. हालांकि नई पीढ़ी ने कई बार इस परम्परा को तोड़कर त्योहार मनाने की जिद की लेकिन मान्यता को देखते हुए किसी ने भी इस त्योहार को नहीं मनाया.
-भारत एक्सप्रेस
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