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आज भी रहस्य है नेताजी की मौत…जानें क्या है 18 अगस्त के दिन से उनका कनेक्शन, क्यों मांगी थी हिटलर से मदद?

आजादी के बाद भारत सरकार ने उनकी मौत के जांच के लिए 1956 और 1977 में दो बार आयोग नियुक्त किया.

Netaji Subhash Chandra Bose

फोटो-सोशल मीडिया

Netaji Subhash Chandra Bose: भारत से लेकर विदेश तक भला कौन नेताजी सुभाष चंद्र बोस को नहीं जानता होगा? उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रभावशाली और प्रेरणादायक नेताओं में से सबसे पहले लिया जाता है. अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने के लिए उन्होंने आजाद हिंद फौज बनाई और अंग्रेजी हुकूमत की ईंट से ईंट बजा दी थी.

युवाओं में भरा था जोश

यही नहीं उस समय देश के युवाओं में जोश भरने के लिए उन्होंने “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” नारा भी दिया. उनके इसी नारे का कमाल था कि अधिक से अधिक युवा उनकी सेना में शामिल होकर देश को आजाद कराने का सपना देखने लगे थे और देश के लिए अपनी जान की बाजी लगाने में जरा भी संकोच नहीं किया था.

नेता जी की जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था. वह जैसे-जैसे बड़े होते जाते उनके मन में भारत को आजाद कराने की इच्छा प्रबल होती जा रही थी. फिर वो दिन भी आया जब उन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे करने के लिए आजाद हिंद फौज भी बना दी. उनको लेकर ये तक कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस ने यूरोप में भारत की आजादी के लिए हिटलर और मुसोलिनी से भी मदद मांगी थी.

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हालांकि, वहां से उन्हें कोई बड़ी कामयाबी हाथ नहीं लगी थी. उन्होंने 21 अक्टूबर, 1943 को आजाद हिंद सरकार और भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन की घोषणा की. आईएनए में ही झांसी की रानी के नाम पर एक महिला टुकड़ी की भी शुरुआत की गई थी. यही नहीं उन्होंने ‘स्वराज’ अखबार शुरू किया. इस दौरान उन्हें जेल तक जाना पड़ा. 1938 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए, लेकिन मतभेदों के कारण उन्हें एक साल बाद ही इस्तीफा देना पड़ा.

बापू को कहा था राष्ट्रपिता

रुद्रांशु मुखर्जी ने अपनी किताब ‘नेहरू एंड बोस पैरेलल लाइव्स’ में लिखा है कि, “सुभाष चंद्र बोस का मानना ​​था कि वह और जवाहरलाल नेहरू इतिहास बना सकते हैं लेकिन, पंडित नेहरू, महात्मा गांधी के बिना अपने भाग्य को नहीं देख सकते.” बता दें कि 1942 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्त्व में आजाद हिंद रेडियो की शुरुआत की गई थी. इस रेडियो पर बोस ने 6 जुलाई, 1944 को महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में संबोधित किया था. उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया था.

महात्मा गांधी के लिए कही थी ये बात

तो इसी के साथ ही कृष्णा बोस की किताब ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन, राजनीति और संघर्ष’ में उनकी मौत के रहस्यों से पर्दा उठाने की कोशिश की गई है. इसमें बताया गया है कि नेताजी के भतीजे शिशिर बोस की पत्नी लेखिका ने उनकी मौत के रहस्य के बारे में जानने के लिए जापान और ताइपे का दौरा किया था. इसी के साथ ही ये भी लिखा है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के बीच भी मतभेद थे. बोस ने एक बार महात्मा गांधी के बारे में कहा था, “उनका विश्वास जीतने का प्रयास करना सदैव मेरा लक्ष्य और उद्देश्य रहेगा, क्योंकि यह मेरे लिए दुखद बात होगी, अगर मैं अन्य लोगों का विश्वास जीतने में सफल हो जाऊं, लेकिन भारत के महानतम व्यक्ति का विश्वास जीतने में असफल रह जाऊं.”

मरते दम तक भारत की आजादी का देखा सपना

नेताजी की मौत को लेकर कई दावे किए गए हैं लेकिन सच क्या है, इस नतीजे पर कोई नहीं पहुंच सका. बताया जाता है कि वह अपनी मौत के आखिरी लम्हें तक सिर्फ भारत मां की आजादी का सपना देख रहे थे लेकिन वह देश की आजादी को नहीं देख सके. 18 अगस्त यानी आज ही के दिन 1945 में एक विमान हादसे में उनकी मौत होना बताया जाता है. कई किताबों में ये डिटेल मिलती है कि 18 अगस्त 1945 को ताईवान में उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था लेकिन उनका शव कभी नहीं मिल पाया. इसको लेकर कई लोगों का मानना है कि इस हादसे में नेताजी की मौत हुई तो वहीं तमाम लोग ऐसे हैं, जिनका कहना है कि उनकी मौत इस हादसे में हुई ही नहीं, बल्कि यहां तक कहा जाता है कि 1945 में जिस विमान दुर्घटना की बात कही जाती है वो दुर्घटना हुई ही नहीं. कुछ लोगों का मानना है कि वह जीवित थे और गुप्त रूप से कहीं छिपे रहे.

भारत सरकार ने कराई थी मौत की जांच

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आजादी के बाद भारत सरकार ने उनकी मौत के जांच कराई थी और इसके लिए 1956 और 1977 में दो बार आयोग नियुक्त किया. लेकिन, दोनों बार यह नतीजा निकला कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही शहीद हो गए थे. साल 1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया. 2005 में ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बताया कि 1945 में ताइवान की जमीन पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था. भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया था. तो वहीं इस दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में नेताजी को देखने और मिलने का दावा भी किया जाता रहा. फैजाबाद के गुमनामी बाबा से लेकर कई और जगह नेताजी को देखे जाने की बात लोगों द्वारा की गई. छत्तीसगढ़ में तो सुभाष चंद्र बोस के होने का मामला राज्य सरकार तक पहुंचा था लेकिन इस मामले को राज्य सरकार ने बंद कर दिया था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का राजनीतिक करियर हो या फिर उनकी रहस्यमयी मौत; उनके जीवन पर लिखी गई कुछ किताबें तमाम दावों के साथ इस बात से पर्दा उठाने की कोशिश करती हैं.

-भारत एक्सप्रेस



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