राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS ने इसी साल अपनी स्थापना के 99 साल पूरे किए हैं. अगले साल विजयादशमी को यह संगठन 100 वर्ष का हो जाएगा. संघ के लिए 100 साल का सफर आसान नहीं रहा. लोगों के मन में संघ के प्रति विश्वास जगाने के लिए न जाने कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. कई बार तो इस संगठन पर बैन भी लगा, लेकिन हर बार कुंदन की तरह निखर कर सामने आया. साल 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने विजयादशमी के दिन इसकी शुरुआत की थी.
संघ के पहले सरसंघचालक हेडगेवार ने जिन 5 लोगों के साथ RSS के गठन की योजना बनाई, उनमें एलवी परांजपे, गणेश सावरकर (विनायक दामोदर सावरकर के भाई), बीबी थोलकर और डॉ. बीएस मुंजे प्रमुख थे. 17 अप्रैल 1926 को इस संगठन का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS पड़ा. संघ के गठन की योजना बनाने वालों को उस वक्त शायद ही, यह अंदाजा रहा होगा कि एक दिन यह वटवृक्ष बन जाएगा. मौजूदा वक्त में संघ के करोड़ों स्वयंसेवक हैं. इतना ही नहीं देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी मसलन अमेरिका, ब्रिटेन और मॉरीशस समेत करीब 40 देशों में संघ की शाखा लगती है.
नागपुर के एक छोटे से कमरे से शुरू हुआ संघ अपने 100 वर्ष में विराट रूप ले चुका है. करोड़ों स्वंयसेवक ही संघ की सबसे बड़ी ताकत हैं. पहले संघ के सदस्यों को सभासद के नाम से पुकारा जाता था. लेकिन धीरे-धीरे इनकी पहचान स्वयंसेवक के तौर पर होने लगी. शाखा RSS की पहली और अहम ईकाई है. साल 1926 में ही राम नवमी के दिन संघ ने एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया. शुरुआत में हफ्ते में सिर्फ दो दिन लगने वाली शाखा 1926 से नियमित रूप से लगने लगी. स्वयंसेवकों की बढ़ती संख्या के चलते शाखा के लिए किसी बड़ी जगह की तलाश शुरू हुई, जो नागपुर के ‘मोहिते का बाड़ा’ मैदान पर खत्म हुई. आज संघ की करीब 73 शाखाएं हैं, जिनमें करीब 56, 569 दैनिक शाखाएं लगती हैं. वहीं करीब 13,847 साप्ताहिक मंडली और 9 हजार मासिक शाखाएं भी लगती हैं.
खास बात तो ये है कि शहरों के साथ-साथ संघ गावों में भी अपनी जड़ें जमा चुका है. संघ के मुताबिक देश की करीब हर तहसील और 55 हजार गांवों में उसकी शाखा लग रही है. सुबह में लगने वाली शाखा को प्रभात शाखा, शाम की शाखा को सायं शाखा, रात में लगने वाली शाखा को रात्रि शाखा, सप्ताह में एक या दो बार लगने वाली शाखा को मिलन और महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को संघ-मण्डली कहा जाता है. संघ के मुताबिक उसके एक करोड़ से अधिक प्रशिक्षित सदस्य हैं और करीब 50 लाख से ज्यादा स्वयंसेवक नियमित तौर पर शाखाओं में आते हैं. शाखा के लिए हर दिन करीब एक घंटे का वक्त तय होता है. शाखा में व्यायाम, खेल, सूर्य नमस्कार, परेड, गीत और प्रार्थना होती है. भगवा झंडे को प्रणाम कर इसकी शुरुआत होती है, तो संघ प्रार्थना ‘नमस्ते सदा वत्सले’ से खत्म होती है.
शुरुआती दौर में संघ की शाखाओं में स्वयंसेवक खाकी शर्ट, खाकी पैंट, खाकी कैप और बूट में नजर आते थे, जो इसकी शुरुआती यूनिफॉर्म थी. लेकिन बदलते समय के साथ इसमें भी बदलाव आने लगा. साल 1930 में संघ खाकी के बदले काली टोपी का इस्तेमाल करने लगा. तो साल 1939 में संघ ने अपनी शर्ट के रंग में बदलाव करते हुए उसे खाकी से बदलकर सफेद कर दिया. साल 1973 में बूट की जगह साधारण जूते और मोजे ने ले लिए, तो साल 2010 में बेल्ट में भी बदलाव देखने को मिला और स्वयंसेवक चमड़े की जगह कैनवास बेल्ट का प्रयोग करने लगे. इसके बाद साल 2016 में संघ ने खाकी निकर के बदले फुलपैंट को अपने ड्रेस कोड में शामिल कर लिया. संघ में ट्रेनिंग के 5 चरण होते हैं. पहला चरण प्रारंभिक वर्ग का होता है, जो तीन दिन चलता है. जिला स्तर पर होने वाले प्राथमिक शिक्षा वर्ग 7 दिन, क्षेत्रिय स्तर पर होने वाले संघ शिक्षा वर्ग-1 करीब 15 दिन, क्षेत्रिय स्तर पर होने वाले कार्यकर्ता विकास वर्ग-1 करीब 20 दिन ऑल इंडिया लेवल पर कार्यकर्ता विकास वर्ग-2 करीब 25 दिनों तक चलता है. संगठन के हिसाब से संघ ने पूरे देश को 44 प्रांत और 11 क्षेत्रों में बांटा हुआ है.
संघ हर साल 6 त्योहार मनाता है, जिनमें वर्ष प्रतिपदा यानी हिंदू वर्ष, हिंदू साम्राज्य दिवस, गुरु पूर्णिमा, रक्षा बंधन, मकर संक्रांति और विजयादशमी प्रमुख है. वर्किंग स्ट्रक्चर की बात की जाए तो संघ प्रमुख को सरसंघचालक कहा जाता है. इसके बाद सरकार्यवाह होते हैं और फिर सह सरकार्यवाह, जो एक से अधिक हो सकते हैं और फिलहाल इनकी संख्या 6 है. केंद्रीय कार्यकारी मंडल संघ की सर्वोच्च बॉडी होती है. सरसंघचालक इसी केंद्रीय कार्यकारी मंडल की सहमति से अगले चीफ की नियुक्ति करता है. संघ का उद्देश्य हिंदू समाज को उसके धर्म और संस्कृति के आधार पर शक्तिशाली बनाना है.
18 साल का कोई भी युवक संघ का स्वयंसेवक हो सकता है. वहीं 18 साल से कम उम्र वालों को बाल स्वयंसेवक कहा जाता है. अब 6 लोग संघ की कमान संभाल चुके हैं, जिनमें 1925-40 तक डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार, 1940-73 तक माधव सदाशिवराव गोलवलकर, 1973-93 तक मधुकर दत्तात्रय देवरस, 1993-2000 तक प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया, 2000-09 तक कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन और 2009 से अभी तक डॉ. मोहनराव मधुकरराव भागवत प्रमुख हैं.
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय किसान संघ, सहकार भारती, सेवा भारती, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय मजदूर संघ, बजरंग दल, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, हिन्दू जागरण मंच, विद्या भारती, हिन्दू स्वयंसेवक संघ, सरस्वती शिशु मंदिर, वनवासी कल्याण आश्रम और भारतीय जनता पार्टी. संघ के ये संगठन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव रखते हैं, कुछ संगठन संघ की विचारधारा को आधार मानकर देश और सामाज के बीच पूरी तरह सक्रिय हैं, जो राजनैतिक, सामाजिक, शिक्षा, सेवा, धर्म और संस्कृति के साथ-साथ सुरक्षा के क्षेत्र में अपना उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं. विदेशों में हिन्दू स्वयंसेवक संघ के नाम से संघ की शाखा चलाई जाती है. आज केंद्र से लेकर देश के अधिकांश राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. सत्ता में बीजेपी के मजबूत होने से संघ में लोगों के आने की संख्या में भी जबर्दस्त इजाफा देखने को मिल रहा है.
आज संघ की मौजूदगी समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जा सकती है. साल 1962 के भारत-चीन युद्ध में संघ ने अहम भूमिका निभाई और सीमावर्ती इलाकों में रसद पहुंचाने में काफी मदद की थी. संघ की इस भूमिका से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू संघ से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 1963 के गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का न्योता दिया. कहा जाता है कि सिर्फ दो दिनों की पूर्व सूचना पर हजारों स्वयंसेवक वहां उपस्थित हो गये.
इतना ही नहीं 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के दौरान संघ ने दिल्ली में ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने में मदद की थी. इसके अलावा संघ राहत और पुनर्वास के कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता रहा है. वैसे भी राहत और पुर्नवास संघ की पुरानी परंपरा रही है. साल 1971 में ओडिशा में और 1977 में आंध्र प्रदेश में आए चक्रवात के दौरान राहत और में अहम भूमिका निभाई है. आज भी जब भी और जहां भी जरूरत होती है, संघ के स्वयंसेवक पूरे तन-मन से मौजूद रहते हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का 100 वर्षों का सफर चुनौतियों से भरा रहा. इस दौरान संघ को कई बार प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ा. सबसे पहले साल 1932 और 1940 में संघ पर आंशिक प्रतिबंध लगाया गया, जो ज्यादा दिनों तक नहीं चला. इसके बाद साल 1948 में गांधी जी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा गया और फिर से प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके बाद इमरजेंसी के दौरान साल 1975 से 1977 तक संघ पर बैन लगाया गया. चौथी बार साल 1992 के दिसंबर में तब संघ पर 6 महीने के लिए प्रतिबंध लगाया गया, जब 6 दिसंबर को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई थी. हालांकि तमाम झंझावतों के बावजूद संघ पूरी मजबूती से डटकर अपने उद्देश्यों में जुटा है.
-भारत एक्सप्रेस
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