विश्लेषण

क्या राजनीति में खत्म हो गया शरद पवार का ‘पावर’, आखिर अपने ही घर में कैसे मात खा गए मराठा क्षत्रप?

महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन हो चुका है. ‘देवा भाऊ’ के नाम से मशहूर देवेंद्र फडणवीस प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने हैं. ये चुनाव जिस तरह बीजेपी के लिए अप्रत्याशित रहा, ठीक उसी तरह मराठा क्षत्रप के नाम से मशहूर शरद पवार (Sharad Pawar) के लिए बेहद निराशाजनक रहा. बीजेपी ने जहां अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, तो वहीं शरद पवार की पार्टी को अब तक की करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा.

चुनावी नतीजों पर गौर किया जाए, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि राजनीति में शरद पवार का ‘पावर’ खत्म होता दिखाई दे रहा है. शरद पवार अपनी उम्र के जिस पड़ाव पर हैं, उससे ये कहना गलत नहीं होगा कि राजनीति में उनका यह आखिरी चुनाव था, जिसमें उन्होंने पूरा जोर लगाया था. वैसे भी लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव अब 5 साल बाद यानी 2029 में होगा. जाहिर है बीतते समय और बढ़ती उम्र के साथ उनकी सक्रियता कम ही होगी.

एक वक्त था जब महाराष्ट्र में उनकी तूती बोलती थी, मगर आज उनके सिर्फ 10 उम्मीदवार ही चुनाव जीतने में कामयाब हुए. इस प्रदर्शन की उम्मीद तो शायद उन्हें भी नहीं रही होगी. अपनी चुनावी चालों से विरोधियों को मात देने में महारत रखने वाले शरद पवार के हाथों से राजनीतिक गोटियां लगातार फिसलती जा रही हैं.

शरद पवार का सियासी सफर

शरद पवार करीब 60 सालों राजनीति में सक्रिय हैं. महज 27 साल की उम्र में वो विधायक चुने गए. अपने करियर के दौरान वो विधायक, सांसद, महाराष्ट्र के सीएम, केंद्र में मंत्री समेत के कई अहम भूमिका निभा चुके हैं. शरद पवार ने साल 1958 में यूथ कांग्रेस के जरिए राजनीति में एंट्री की. साल 1964 में उन्हें महाराष्ट्र यूथ कांग्रेस का सचिव बनाया गया. साल 1967 में 27 साल की उम्र में बारामती से विधायक चुने गए. इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1990 तक वो कांग्रेस पार्टी से बारामती सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे. 70 के दशक की शुरुआत में उन्हें पहली बार कैबिनेट बर्थ मिला और उन्हें वसंतराव नाइक की सरकार में गृह मंत्री बनाया गया था.

इसके बाद साल 1978 में शरद पवार महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र यानी 38 वर्ष की उम्र में के सीएम बने. इसके बाद साल 1984 में बारामती से पहली बार लोकसभा सांसद चुने गए. साल 1999 में सोनिया गांधी के विदेश मूल के मुद्दे पर वो कांग्रेस से अलग हो गए. इसके बाद जून 1999 में पवार ने NCP का गठन किया. हालांकि बावजूद इसके उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर उनकी पार्टी ने सरकार बनाई, लेकिन वो केंद्र की राजनीति में बने रहे.

क्या बेटी प्रेम पड़ा भारी

बीजेपी को छोड़ शायद ही कोई ऐसी राजनीतिक पार्टी है, जिस पर परिवारवाद हावी ना हो. यहां परिवारवाद का मतलब पार्टी पर किसी खास परिवार के कंट्रोल से है. देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के हाथों में है, तो वहीं जितने भी क्षेत्रीय दल हैं, उन सभी पर एक खास परिवार का ही दबदबा है. महाराष्ट्र में शिवसेना UBT के सर्वेसर्वा उद्धव ठाकरे हैं, तो वहीं एनसीपी शरद गुट भी परिवार संचालित पार्टी है. 10 जून, 2023 को शरद पवार ने बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का नया कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था. प्रफुल्ल पटेल अब अजित पवार के साथ हैं. लेकिन ये बात अजित पवार को हजम नहीं हुई और इसके बाद से ही वो अपना अस्तित्व तलाशने की जुगत में लग गए.

भतीजे ने चाचा के साथ कर दिया ‘खेला’

एक वक्त था, जब देश और प्रदेश की राजनीति उनके इर्द-गिर्द घूमती थी. सब कुछ उनके इशारे पर चलता था. लेकिन इस चुनाव में उनका हर दांव उल्टा पड़ता दिखाई दिया. सबके बड़ा झटका तो उनके भतीजे अजित पवार ने दिया, जिन्हें उन्होंने सियासत का ककहरा सिखाया था. चाचा की उंगली पकड़कर राजनीति सीखने वाले अजित पवार ने जिस तरह अपने चाचा को जोर का झटका धीरे से दिया, उससे खुद शरद पवार भी हैरान थे.

ऐसा भी नहीं है कि अजित पवार ने अचानक ऐसा किया. अपनी ‘पलटीमार’ फिल्म का ट्रेलर अजित ने साल 2019 में ही दिखा दिया था, जब उन्होंने अपने चाचा से ‘विद्रोह’ कर देवेंद्र फडणवीस के साथ राजभवन में सुबह-सुबह शपथ ली थी. हालांकि फडणवीस-अजित पवार की वो सरकार केवल तीन दिन ही चली, क्योंकि अजित पवार एनसीपी के पर्याप्त विधायकों का समर्थन नहीं जुटा पाए और वो सरकार गिर गई. इसके बाद शरद पवार ने तत्कालीन शिवसेना और कांग्रेस के साथ मिलकर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महाअघाड़ी की सरकार बनाई. लेकिन वो अपने भतीजे अजित पवार के इरादे भांप नहीं पाए.

अजित पवार ने न सिर्फ पार्टी तोड़ दी, बल्कि अपने चाचा से पार्टी और पार्टी का चुनाव चिह्न भी हथिया लिया. इन सबके बावजूद लोकसभा चुनाव में शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन पांच महीने बाद ही हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी की लुटिया डूब गई और इस तरह चाचा-भतीजे की सियासी जंग में भतीजे ने बाजी मार ली.

मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र में कमजोर हुई पकड़

गन्ना उत्पादन के लिए मशहूर पश्चिमी महाराष्ट्र शरद पवार और NCP का गढ़ रहा है. यहां के किसानों ने हमेशा शरद पवार का साथ दिया. हालांकि माना जा रहा था कि एनसीपी के दो भागों में टूटने से इलाके के वोट बंटेंगे. चुनाव परिणाम के नतीजों ने इस अंदेशे पर पर मुहर भी लगाई. दिलचस्प बात तो ये है कि इलाके की जनता ने शरद पवार से ज्यादा अजित पवार पर भरोसा दिखाया.

NCP अजित गुट को 11, तो शरद पवार गुट को सिर्फ 7 सीटें मिलीं. मराठा पार्टी नाम से मशहूर शरद पवार के नेतृत्व वाली NCP की पकड़ मराठवाड़ा में भी ढीली हुई है. चुनाव से ठीक पहले मराठा आरक्षण कार्यकर्ता जारंगे पाटिल के उदय ने बीजेपी के लिए शुरुआती मुश्किलें पैदा की. उनके चुनाव लड़ने के एलान से ये अनुमान लगाया जाने लगा कि जरांगे चुनाव परिणामों को प्रभावित करेंगे, लेकिन उन्होंने ऐन वक्त पर खुद को चुनाव से अलग कर लिया.

इमोशनल कार्ड भी नहीं आया काम

विधानसभा चुनाव से ठीक पहले NCP शरद गुट के प्रमुख शरद पवार ने चुनावी राजनीति से संन्यास के संकेत दिए थे. बारामती में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने कहा था कि वो अब चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन पार्टी का काम काज देखते रहेंगे. उन्होंने कहा कि कहीं न कहीं तो रुकना पड़ेगा. मैंने अभी तक 14 चुनाव लड़ा. ऐसे में अब नए लोगों को आगे आना चाहिए. मुझे अब सत्ता नहीं चाहिए.

2026 में उनका राज्यसभा कार्यकाल खत्म हो रहा है, ऐसे में आगे विचार करूंगा कि राज्यसभा जाना है या नहीं. लेकिन उनकी ये इमोशनल कार्ड भी काम नहीं आया. बारामती सीट से NCP प्रमुख अजित पवार ने 1 लाख से ज्यादा वोट से जीत हासिल की. विश्वासघात करने वालों को सबक सिखाने की जनता से शरद पवार की अपील भी बेअसर साबित हुई.

खत्म हो गया शरद पवार का ‘करिश्मा’!

चुनाव से पहले NCP शरद गुट के उम्मीदवार सोच रहे थे कि वो शरद पवार के प्रभाव से विधानसभा पहुंचने में कामयाब हो जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उम्र के इस पड़ाव पर भी शरद पवार ने प्रदेश भर में 60 से ज्यादा रैलियां कीं, यूं कहें कि उन्होंने पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन बावजूद इसके चुनाव में कोई खास सफलता नहीं मिल पाई. ऐसे में सियासी गलियारों में ये सवाल उठना लाजिमी है कि क्या शरद पवार का ‘करिश्मा’ खत्म होने लगा है.

हालांकि शरद पवार की राजनीति को करीब से देखने वालों की मानें तो शरद पवार ने कई बार कमबैक किया है. अपने 60 सालों के सियासी सफर में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं और दमदार वापसी भी की है. लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर वो फिर से कोई ‘करिश्मा’ कर पाते हैं या नहीं, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.


ये भी पढ़ें: विपक्ष के नामांकन बहिष्कार के बीच BJP विधायक राहुल नार्वेकर बने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष


-भारत एक्सप्रेस

दीपक मिश्रा

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