विश्लेषण

बिना बिहारी जी कैसे बनेगा कॉरिडोर?

असम की राजधानी गोहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर की सेवा पूजा वंशानुगत सेवायत करते आ रहे थे. लेकिन असम सरकार ने धर्मार्थ बोर्ड बना कर उन्हें उनके अधिकार से वंचित कर दिया था. लेकिन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद में फैसला देते हुए सेवायतों (बोरदुरी समाज) के वंशानुगत अधिकार को बहाल कर दिया. ये बात मैंने वृंदावन के श्री बाँके बिहारी मंदिर के सेवायतों को तभी बताई थी. गत कुछ महीनों से बिहारी जी मंदिर और उसके आस-पास रहने वाले गोस्वामी परिवार, अन्य ब्रजवासी व दुकानदार बहुत आंदोलित हैं. क्योंकि सरकार ने यहाँ भी काशी की तरह ‘बाँके बिहारी कॉरिडोर’ बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. जिसके विरुद्ध वृंदावन में जन-आंदोलन छिड़ा हुआ है. रोज़ाना प्रदर्शन और धरने हो रहे हैं. इस मामले में अब अचानक एक नया मोड़ आ गया है. आंदोलनकारी गोस्वामियों ने घोषणा की है कि वे ठाकुर बाँके बिहारी के विग्रह को यहाँ से उठा कर ले जाएँगे और चूँकि मंदिर समिति के कोष में 150 करोड़ से ज्यादा रुपया जमा है इसलिए वे 10 एकड़ जमीन खरीद कर वृंदावन में दूसरी जगह बाँके बिहारी का भव्य मंदिर बना लेंगे.

उनकी इस घोषणा से योगी सरकार में हड़कंप मच गया है. क्योंकि अगर ठाकुर जी ही वहाँ नहीं रहेंगे तो सरकार ‘कॉरिडोर’ किसके नाम पर बनाएगी? कामख्या देवी के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार बाँके बिहारी जी के विग्रह पर वंशानुगत सेवायत गोस्वामियों का ही अधिकार है. दरअसल, आधुनिकता के नाम पर अयोध्या, काशी और मथुरा को जिस तरह ‘पर्यटन केंद्र’ के रूप में विकसित किया जा रहा है उससे सनातन धर्मी समाज की आस्था को गहरा आघात लगा है. सदियों से पूजित प्राण प्रतिष्ठित विग्रहों को और मंदिरों को जिस बेदर्दी से, बुलडोजरों से, अयोध्या और काशी में तोड़ा गया उससे संतों, भक्तों, अयोध्यावासियों और काशीवासियों को भारी पीड़ा पहुँची है.

वृंदावन में ‘बिहारी जी कॉरिडोर’ को लेकर जहां एक ओर सरकार ये तर्क देती है कि इससे व्यवस्था में सुधार होगा. वहीं दूसरी ओर वृंदावन में धरने पर बैठे गोस्वामी और ब्रजवासी ये सवाल पूछते हैं कि योगी महाराज की अध्यक्षता में बने ‘उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद’ ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पिछले पाँच सालों में हजारों करोड़ रुपये खर्च कर दिये उससे तीर्थ का क्या विकास हुआ? क्या यमुना महारानी साफ हो गईं? क्या वृंदावन मथुरा की गन्दगी साफ हो गई? क्या इन तीर्थस्थलों में आने वाले लाखों तीर्थ यात्रियों की सुविधाएँ बढ़ीं या परेशानियाँ बढ़ीं? क्या गौशालाओं और आश्रमों पर फर्जी दस्तावेज बना कर कब्जा करने वालों पर कोई जाँच या कानूनी कार्यवाही हुई? क्या बंदरों की समस्या से निजात मिला? क्या परिक्रमा जन उपयोगी बन पाई? क्या वृंदावन की ट्रैफिक समस्या दुरुस्त हुई? क्या वृंदावन में यमुना के तट पर बने अवैध आश्रमों और कॉलोनियों को एनजीटी के आदेशानुसार हटाया गया? क्या वृंदावन में रात-दिन हो रहे अवैध निर्माणों पर कोई रोक लगी? इन सभी प्रश्नों का उत्तर सरकार के पास नहीं है.

दूसरी तरफ ब्रजवासियों को यह चिंता है कि वृंदावन में तीर्थ विकास के नाम पर सरकार हजारों करोड़ रुपये की जिन योजनाओं की घोषणाएँ कर रही है उनका संतों, भक्तों, तीर्थयात्रियों व ब्रजवासियों को कोई लाभ नहीं मिलेगा. ये सब परियोजनाएँ तो बाहर से आनेवाले निवेशकों, भू-माफ़ियाओं और कॉलोनाईजर्स के फायदे के लिए बनाई जा रही है. आंदोलनकारी कहते हैं कि, “कॉरिडोर के नाम पर छटीकरा, सुनरख से लेकर बेगमपुर, जहांगीरपुर, कब्जा की गई गौशालाओं तक सभी जमीनों के रेट कई गुना बढ़ चुके हैं. वृन्दावन अब छोटा पड़ गया है. अधिकतर आश्रमों की भूमि, गौशालाएं, तालाब, पार्क, धर्मशालाओं पर कब्जे हो चुके हैं और इनमें प्लाट काटकर ऊँचे दामों पर बेचे जा रहे हैं. कमाने वाले तो कमाकर चले गए. अब अगर कॉरिडोर बना तो पिकनिक करने आने वालों के लिए होटल बनेंगे, दुकानें बनेंगी बड़े-बड़े मॉल बनेंगी. लुटे-पिटे ब्रजवासी तो चटाई पर बैठकर भजन करेंगे. अव्यवस्थाएं पहले भी थीं सभी मंदिरों में, आज भी हैं, आगे भी रहेंगी वो नहीं बदलने वाली. बिहारी जी का कॉरिडोर बनाकर क्या वृन्दावन की सभी समस्याओं का हल हो जायेगा?”

तीर्थ की समस्याओं का हल तभी हो सकता है जबकि हल खोजने वाले अफ़सर और नेता निष्काम भावना से सोचें और काम करें. स्थानीय परंपराओं, धार्मिक मान्यताओं, दार्शनिक विद्वानों, आचार्यों और शास्त्रों को महत्व दें. उनके निर्देशों का पालन करें. पर ऐसा नहीं हो रहा है. तीर्थ स्थलों के विकास के नाम पर मुनाफाखोरी और व्यापार को बढ़ावा दिया जा रहा है. जिसमें दूसरे राज्यों के निवेशकों को पैसा कमाने के ढेरों अवसर दिये जा रहे हैं. तीर्थों में रहने वाले स्थानीय लोगों को इस सारे कारोबार से दूर रखा जा रहा है. सरकार के इसी रवैये का परिणाम है कि आज देवभूमि हिमालय के अस्तित्व को भी खतरा हो गया है. मथुरा के तीर्थ विकास के लिये योगी जी की अध्यक्षता में बनी ‘उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद’ के उपाध्यक्ष शैलजाकांत मिश्रा से गत पाँच वर्षों से मैं बार-बार सोशल मीडिया पर लिख कर पूछ रहा हूँ कि इस परिषद का बिना नियमानुसार गठन किए उन्होंने अरबों रुपये की परियोजनाएँ किसकी सलाह पर बनवा दी? क्योंकि खुद तो इस कार्य का उन्हें कोई अनुभव नहीं है. वे आजतक अपनी परिषद के मुख्य उद्देश्य अनुसार ब्रज का तीर्थाटन मास्टर प्लान क्यों नहीं बना पाए? वे अपनी परियोजनाओं की डीपीआर और आय-व्यय का लेखा-जोखा सार्वजनिक करने से क्यों डरते हैं? ब्रजवासियों और स्थानीय पत्रकारों की आरटीआई का जवाब देने से उनकी परिषद क्यों बचती है?

चिंता की बात यह है कि मय-प्रमाण इन सारे मुद्दों को हम जैसे आम ब्रजवासी ही नहीं खुद आरएसएस और भाजपा के लोग भी समय-समय पर मुख्यमंत्री योगी व संघ प्रमुख के संज्ञान में लाते रहे हैं. पर कहीं कोई सुनवाई नहीं होती. नेतृत्व की इस उपेक्षा व उदासीनता के कारण ही ब्रज जैसे तीर्थों का लगातार विनाश हो रहा है. अब वे तीर्थ न हो कर पर्यटकों के मनोरंजन के स्थल बनते जा रहे हैं. पहले लोग यहाँ श्रद्धा से पूजा, आराधना या दर्शन करने आते थे. अब मौज मस्ती करने और वहाँ की चमक-दमक देखने आते हैं. आस्था की जगह अब हवस ने ले ली है. इस तरह न तो तीर्थों की गरिमा बचेगी और न ही सनातन धर्म.

विनीत नारायण, वरिष्ठ पत्रकार

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