पुस्तक समीक्षा
शिमला
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शिमला शहर आज के दौर में हिमाचल प्रदेश की राजधानी के तौर पर या फिर खूबसूरत पर्यटन नगरी के नाते प्रसिद्ध है। सन् 1864 से सन् 1947 में भारत की स्वतंत्रता तक शिमला शहर भारत में ब्रिटिश राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी रही। दरअसल, अंग्रेजों को शिमला इंग्लैंड जैसा लगता था। अंग्रेजों ने 80 साल से अधिक समय तक इसी शहर से भारत पर राज किया।
पुस्तक ‘शिमला’ के माध्यम से हिमाचल की बेटी के नाम से प्रसिद्ध लेखिका डॉ. रचना गुप्ता ने हिमाचल राज्य की राजधानी शिमला के 200 साल के समृद्धशाली इतिहास को बड़े ही रोचकपूर्ण ढंग से 27 खंडों में परोसा है। हालांकि शिमला शहर पर अंग्रेजी में तो कई किताबें हैं लेकिन हिंदी में डॉ. रचना गुप्ता की शायद यह पहली किताब होगी।
वायसराय लॉज के निर्माण की भी कहानी
पुस्तक किस्सा गोसाई सी लगती है। जिस तरह से शॉर्ट फॉर्म में स्टोरी टेलिंग से पुस्तक को गढ़ा गया है, सरल लेखन शैली पुस्तक को बहुत ही अधिक रोचक बनाती है। किसी को क्या मालूम कि वायसराय लॉर्ड डफरिन की पत्नी लेडी डफरिन की किस जिद के कारण वायसराय लॉज का निर्माण हुआ, जो अब शिमला का भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान है। इंडो-गौथिक शैली में बनी यह शिमला की पहली भव्य इमारत थी।
इसी तरह शिमला के जाखू में स्थित रोशनी कैसल को पहले रोशनी हाउस कहते थे जिसे अब लोग शीशे वाली कोठी के नाम से जानते हैं। सन् 1838 में इसे कर्नल रोथनी ने बनवाया था। कई लोगों ने खरीदी बेची। लेकिन भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस के गठन के मसीहा सर ए ओ ह्यूम से इस भवन का क्या नाता है?
शिमला का रिज, यहां लहराता ऊंचा और विशाल तिरंगा और सामने गेयटी थिएटर की आभा कुछ अलग ही दिखती है। 25 जनवरी 1971 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया। सर्दियों में बर्फ से ढका टका बेंच शिमला में बहुत ही प्रसिद्ध है। अंग्रेजी शासन काल में गर्मियों में अंग्रेज ठंडी हवा का लुप्त लेने यहां आते थे और बैठने के लिए एक टका शुल्क दिया करते थे।
मॉल रोड भारतीयों के लिए प्रतिबंधित थी लेकिन इसी रोड पर वायसराय लार्ड कर्जन की बेटी आइरिन और पटियाला के महाराजा के प्यार को इज़हार करने वाली एक घटना का ‘शिमला’ पुस्तक में जिक्र है। घटना के बाद माल रोड पर रिज मैदान की इस जगह का नाम स्कैंडल पॉइंट पड़ गया। यही नहीं पुस्तक में ओकओवर हाउस की घटना जिसकी वजह से राजा और महाराजाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लग गया और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी जैसे इतिहास के रहस्यों से पुस्तक पर्दा उठाती है।
इतिहास के पन्नों में शिमला
लोग सोचते होंगे की शिमला टूरिस्ट प्लेस है वहां बर्फ देखेंगे, घूमेंगे फिरेंगे और वापस आ जाएंगे। कई ग्रंथों, महत्वपूर्ण लोगों के इंटरव्यूज और इतिहास के अध्ययन से लिखी किताब है। नई पीढ़ी को नहीं मालूम की इतिहास के पन्नों में शिमला में क्या हुआ? क्योंकि गांधी जी तो शिमला को पसंद ही नहीं करते थे, आजादी की इबारत के महत्वपूर्ण चैप्टर, देश की सीमाएं शिमला में ही तय हुई।
शिमला शहर से मात्र 3 किलोमीटर दूर अनाडेल मैदान को कैप्टन चार्ल्स प्रैट कैनेडी ने अपनी प्रेमिका अनाडेल के नाम पर रखा था और इसकी क्या कहानी है। शायद कम ही लोगों को मालूम हो कि भारत की मशहूर फुटबॉल प्रतियोगिता डूरंड कप सन् 1888 में शिमला से शुरू हुई थी। ओकओवर हाउस, जाखू मंदिर, टाउन हाल, अलर्जली भवन, क्राइस्ट चर्च, मॉल रोड, लोअर बाजार, लक्कड़ बाजार, तिब्बती मार्केट, विक्ट्री टनल चैडविक फॉल्स, द ग्लेन, आइस और स्केटिंग आदि जिन स्थानों को आज लोग देखते हैं उनके इतिहास में जाएं तो कुछ अलग ही है। यह जानने के लिए पुस्तक में काफी कुछ लिखा है।
पुस्तक में शिमला शहर के सफर का हर पन्ना एक नई दास्तान बयां करता है। शहर के जन्म से लेकर यौवन तक की अद्भुत गाथा इतिहास के पन्नों में गहराई के साथ दर्ज है। शिमला, भारत की आजादी की गाथा के साथ ब्रितानी हुकूमत के लंबे दौर का साक्षी रहा है। उस दौर में क्या और कैसे घटा इसे कलमबद्ध करने में डा. रचना गुप्ता ने बहुत ही शिद्दत से अपनी पुस्तक ‘शिमला’ में लेखनी चलाई है। उन्होंने अपना अनुभव निचोड़ते हुए शिमला को कुछ अलग ही चश्मे से देखा है। किताब घूमने सुनने वालों को उत्सुकता जगाएगी क्योंकि शिमला के पर्यटन से लेकर इतिहास तक सब कुछ समेटा गया है।
शिमला की संस्कृति, परंपराएं, किस्से कहानियां, लोक कथाओं, प्रसिद्ध संस्थान, ऐतिहासिक घटनाओं का ‘शिमला’ पुस्तक में बखूबी तरीके से उल्लेख है। यहां हर जगह के पीछे कोई ना कोई इतिहास है। नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित यह किताब लोक संस्कृति और पर्यटन की दृष्टि से पाठकों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
पुस्तक : शिमला
लेखिका : डा. रचना गुप्ता
प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट
मूल्य : ₹425/-
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