विश्लेषण

श्री राम का आदर्श और मोदी जी का शासन

इतिहास में तिथियों का व्यापक महत्त्व है। 1857 सुनते ही आपके मन में एक क्रांति की भावना आती है। 15 अगस्त तो कई आए गए, पर 1947 के 15 अगस्त, 1950 के 26 जनवरी, ये बस आम तारीखें नहीं हैं। ये भारत के इतिहास के संक्रांति बिंदु हैं।

2014 में 26 मई को जब प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी जी ने शपथ लिया, तब वह तिथि आम मई महीने की 26 मई नहीं रही। कहना न होगा कि आनेवाली पीढ़ियों के लिए 22 जनवरी 2024 एक तारीख नहीं, भारतीय सांस्कृतिक परिदृश्य को समझने की आधुनिक प्रस्थान बिंदु होगी।

उत्तर में विशाल हिमालय, दक्षिण में विशाल सागर, पूरब में सुंदर वन वजंगल और पश्चिम में विशाल हिंदुकुश तक फैले हमारे देश भारत की सांस्कृतिक यात्रा बेहद दिलचस्प रही है। इस देश के सिर पर मुकुट के समान जम्मू और कश्मीर विराजता है, मां गंगा इसके हृदय की हार बनकर शोभा बढ़ाती है और अथाह सागर इसके पैर पखारते हैं। अनेक संस्कृतियों की अपने गोद में लालन-पालन करती माँ भारती ने अनंत काल से कई सभ्यताओं को जन्म दिया है, और कई संस्कृतियों को अपना दत्तक पुत्र बनाया है।

आजादी के बाद देश में कई सारी घटनाएँ हुईं। सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ, 4 बड़े युद्ध हुए, आपातकाल के काले दिन आए, मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू हुईं और फिर 26 मई 2014 का दिन आया। यदि आप 26 मई 2014 से 22 जनवरी 2024 के कालखंड को एकसाथ देखेंगे तो पाएँगे कि इस बीच बूँद-बूँद से मिलकर एक घड़ा ही नहीं, एक विशाल सागर का निर्माण हुआ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के शपथ ग्रहण के बाद उनके सामने कई चुनौतियाँ थीं। उन्हें देश की राजनीतिक व्यवस्था ने विरासत में एक ऐसा शासनतंत्र और चेतना का ऐसा परिवेश दिया था, जिसमें भारतीयता और भारतबोध की बातें छद्म आधुनिकता के चश्में वालों को बोझ से लगते थे। आप बहुत ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि आजादी के आंदोलन के दिनों में जिस ‘स्व’ की भावना पर बल दिया जा रहा था, आजादी के बाद वह ‘स्व’ विलुप्त कर दिया गया। स्वभाषा, स्वभूषा, स्वराज और स्व-संस्कृति की बातों को हाशिये पर डाल दिया गया। एक बात ध्यान रखिये, अपनी अस्मिता को ताख पर रखकर आज तक किसी देश और किसी सभ्यता ने विकास नहीं किया है। आप पश्चिम के देशों से ही उदाहरण लेना चाहें तो ले सकते हैं। यूरोप ने अपने सांस्कृतिक प्रतीकों को विकास के आधुनिक मानदंडों के साथ आगे बढ़ाया। जो था, उसका जीर्णोद्धार किया और जो नहीं था, काल के गाल में समा गया था, उसका पुनर्निर्माण किया। लेकिन हमारे देश के साथ यह विडंबना रही कि यहाँ भौतिक विकास की दुनियावी बातें होती रहीं, विकास हुआ या नहीं, यह भी चर्चा का विषय है, और वैश्विक संस्कृति में सबसे अधिक बार उल्लेखित भगवान श्री राम अपनी जन्मभूमि पर टेंट में रहे।

आप अपनी सांस्कृतिक विरासतों को पीछे धकेल कर कभी आगे नहीं बढ़ सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने अब तक के शासनकाल में यह सिद्ध किया है कि यदि दृढ़ इच्छाशक्ति और साफ नीयत हो, तो देश अपने सांस्कृतिक प्रतीकों और आर्थिक विकास को समानांतर आगे लेकर आगे बढ़ सकता है। मोदी जी ने जब देश के नेतृत्व की बागडोर संभाली थी, तब भारत दुनिया की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। भ्रष्टाचार चरम पर था। नौकरशाही सुस्त था। वंशवाद ने राजनीति में पैठ बना ली थी और देश तुष्टीकरण की बैलगाड़ी पर चल रहा था।

मोदी जी का जीवन भगवान श्रीराम के जीवन से अत्यंत प्रभावित रहा है। मोदी जी की सामाजिक जीवनयात्रा के तीन चरण हैं। पहले चरण में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में देश के अलग-अलग हिस्सों के भ्रमण करते हैं। अलग-अलग लोगों से मिलते हैं, उनके दुःख को जानते और समझते हैं। वे पूर्वोत्तर के लोगों से भी मिलते हैं और कश्मीर के पंडितों, पीड़ितों की भावनाओं को भी समझने का प्रयास करते हैंऔर दक्षिण भारत के लोगों के बीच भी अपनत्वता बनाते हैं।

भगवान श्रीराम का जीवन इन्हीं मर्यादाओं के साथ शुरू होता है। उन्होंने उत्तर से दक्षिण तक की विशाल यात्रा की और अपने आप को केवल अयोध्या ही नहीं, बल्कि समस्त आर्यावर्त के स्नेह और नेतृत्व के योग्य बनाया। आप सोचकर देखिए। यदि मंथरा की बातों से कैकेयी की बुद्धि नहीं बदलती, महाराज दशरथ अपने सबसे प्रिय पुत्र को वनवास नहीं देते, तो क्या श्री राम समूचे देश के राजा हो पाते? वैसे तो वे ईश्वर के साक्षात अवतार थे, और किसी भी प्राणी का दुःख-दर्द उनसे बचा हुआ नहीं था। पर, श्री राम अपने जीवन के इस संघर्ष से आनेवाली पीढ़ी को यह शिक्षा देते हैं कि समूचे देश का नेतृत्व करने से पहले समूचे देश को समझना जरूरी है। केवट के स्नेह को जानना जरूरी है, ऋषियों के दुःख को समझना जरूरी है, अहिल्या के दर्द को जानना आवश्यक है, शबरी के वात्सल्य को महसूस करना जरूरी है, सुग्रीव सी मित्रता और हनूमान सा सहयोगी ढूँढना जरूरी है। मोदी जी के सामाजिक जीवन का आरंभ भगवान श्री राम के आदर्शों से ही होता है।

भगवान श्रीराम का राक्षसों से कोई निजी बैर नहीं था। वे ऋषियों के यज्ञों की रक्षा करना चाहते थे। पर, जब आप किसी महान कार्य के लिये आगे बढ़ते हैं, तो आपके निजी दुश्मन बढ़ते जाते हैं और आपके निजी जीवन पर प्रहार होते हैं। भगवान श्री राम के साथ यही हुआ और मोदी जी

के साथ भी विपक्ष ने ऐसा ही किया। उन्हें क्या-क्या नहीं कहा गया? मेरे मन में एक प्रश्न बार-बार उठता है कि भगवान श्रीराम जब विपत्ति में पड़े, तो उन्हें वन-वन भटकना क्यों था? अयोध्या खबर भिजवाते, और अयोध्या की विशाल सेना लंका पर आक्रमण कर माता सीता को मुक्त कर लेती। या, उन्होंने सुग्रीव से मित्रता क्यों की? जबकि, वे तो जानते थे कि रावण बाली से डरता है। वे बाली से मित्रता कर माता सीता को पल भर में छुड़वा सकते थे? वास्तव में, माता सीता को मुक्त करना तो उद्देश्य था, लेकिन उस उद्देश्य की प्राप्ति में मर्यादा के मानदंड स्थापित करना असली ध्येय था। सुग्रीव-बाली प्रकरण से भगवान श्री राम ने यह सीखाया कि एक अन्याय पर विजय प्राप्त करने के लिए किसी दूसरे अन्याय का साथ नहीं लेना चाहिए। उन्होंने अयोध्या से सेना न बुलवाकर अपने वनवासी भाइयों पर भरोसा किया।

मोदी जी ने भी अपने शासनकाल में यह दिखाया है कि अन्याय के सामने झुकना नहीं चाहिए और उसे पस्त करने के लिए किसी दूसरे अन्याय का सहारा नहीं लेना चाहिए। मोदी जी को भी अपने पिछड़े भाइयों और वनवासी बंधुओं-भगिनियों पर अटूट विश्वास है। आज मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा के सबसे अधिक पिछड़े समुदायों के मंत्री और सबसे अधिक पिछड़े समुदाय के विधायक हैं। मोदी सरकार के 76 मंत्रियों में से 27 ओबीसीमंत्री हैं, जो रिकॉर्ड 35% है।

मोदी जी के दोनों कार्यकाल को ध्यान से देखें तो उनके दोनों ही कार्यकाल एक दूसरे से चरणवार जुड़े हुए हैं। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में शासनतंत्र को मर्यादित किया। नौकरशाही व्यवस्था को पटरी पर लाकर कामकाज को समयसीमा में बाँधा। राजनीति में स्वच्छता और पारदर्शिता का आदर्श स्थापित किया। आप भगवान श्री राम के जीवनयात्रा को देखेंगे तो पाएँगे कि उनके जीवन का पहला चरण इसी बात को इंगित करता है। भगवान राम ने अपने जीवन के पहले चरण में अयोध्या के आसपास से शुरू कर लंका तक की व्यवस्था को सुरक्षित बनाकर शांत, व्यवस्थित व प्रजा केन्द्रित परिवेश का निर्माण किया।

मोदी जी ने दूसरे कार्यकाल में आर्थिक विकास को नई ऊँचाई दी। भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनी। धारा 370 के निरस्तीकरण से जम्मू और कश्मीर के लोगों के आर्थिक विकास के राह खुले। पूर्वोत्तर में शांति समझौतों का नया सिलसिला शुरू हुआ, वामपंथी उग्रवाद पर नकेल कसने से वनवासी समुदाय आर्थिक विकास की मुख्यधारा से जुड़े, सहकारिता मंत्रालय की स्थापना कर सीमांत किसानों और महिलाओं के सशक्तीकरण के सफल प्रयास हुए और आपराधिक न्याय प्रक्रिया के नए कानूनों के माध्यम से गुलामी के प्रतीकों से देश को आजादी मिली। नया संसद भवन बना, कर्त्तव्य पथ नामकरण हुआ, उज्जैन महाकालोक का निर्माण हुआ, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बना, सोमनाथ मंदिर को स्वर्ण से जड़ा जा रहा है, सड़कें, पुल और रेलवे पटरियों के नए नेटवर्क बने और भारत ने अब तक के सबसे सफल जी-20 सम्मेलन का भव्य आयोजन किया।

भगवान श्रीराम के समय का अयोध्या भी ऐसा ही था। राम राज्य के बारे में कहा गया है –“दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥” यानी रामराज्य में किसी को शरीर की समस्या नहीं होती, सभी स्वस्थ रहते हैं। “अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥” अर्थात –राम राज्य में किसी की छोटी अवस्था में मृत्यु नहीं होती, न किसी को कोई पीड़ा होती है। “नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥” अर्थात -न कोई दरिद्र है, न दुःखी है और न गरीब ही है। न कोई मूर्ख है और न कौशलों से हीन ही है॥

भगवान श्रीराम ने अपने राज्य को विकास और सुशासन के उस उच्च आदर्श पर पहुँचाया कि आने वाली पीढ़ियों के लिए ‘राम राज्य’ विकास और सुशासन के पर्याय बन गए। पर, उन्होंने यह सब अपने विरासतों का तिरस्कार कर नहीं किया। भगवान श्री राम ने रामेश्वरम तीर्थ की स्थापना की थी। उन्होंने गया में पितरों का तर्पण किया था। संकाल जाति में प्रचलित रामकथा में रावण के वध के बाद भगवान राम का संथालनों के यहाँ आकर शिव मंदिर बनाने और सीता सहित पूजा करने की बात है।

माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज भव्य राम मन्दिर का निर्माण हो चुका है। इस मंदिर के इंतज़ार में कितनी ही पीढ़ियाँ खप गईं। आज लाखों आत्माएँ तृप्त हुई होंगी। राम जन्मभूमि आंदोलन में सूनी हुई अनेक गोदों और उजड़े हुए सुहागों को आज गौरव मिला होगा।आज न सिर्फ भगवान श्री राम अयोध्या वापस पधार रहे हैं, बल्कि राम राज्य भी देश में उतर रहा है और हम सब बेहद सौभाग्यशाली हैं कि इस पल के साक्षी हो रहे हैं।

जय श्री राम!

राधेश्याम सिंह यादव, राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य भाजपा ( ओबीसी मोर्चा)

Recent Posts

दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदला, अब बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाना जाएगा

दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदल गया है. शुक्रवार को शहरी विकास…

10 minutes ago

Bihar से दिल्ली लौटते समय PM Modi के विमान में आई तकनीकी खराबी, देवघर एयरपोर्ट पर रुकना पड़ा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को बिहार के जमुई जिले में भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं…

10 minutes ago

श्रीकल्कि धाम के 108 कुण्डीय महायज्ञ में मुस्लिम समुदाय के डॉ. मरघूब त्यागी ने की गर्भगृह में पूजा

Kalki Mahotsav: हाल ही में उत्तर प्रदेश के संभल में कल्कि धाम में आयोजित 108 कुण्डीय…

18 minutes ago

लॉटरी किंग नाम से मशहुर Santiago Martin के कई ठिकानों पर ED की छापेमारी जारी, 5 करोड़ जब्त

लगभग 20 जगहों पर ईडी की यह छापेमारी जारी है. यह छापेमारी मार्टिन, उनके दामाद…

18 minutes ago

PM Modi ने ‘जनजातीय गौरव दिवस’ पर 6,640 करोड़ रुपये की योजनाओं का दिया तोहफा, Bihar में ली खास सेल्फी

बिहार के जमुई जिले में हुए जनजातीय गौरव दिवस समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी…

40 minutes ago

Margashirsha Vrat Festivals: ‘अगहन’ में भूलकर भी ना खाएं ये 1 चीज, जानें मार्गशीर्ष महीने के प्रमुख व्रत-त्योहार

Margashirsha 2024 Vrat Festivals: इस साल मार्गशीर्ष यानी अगहन का महीना 16 नवंबर से शुरू…

55 minutes ago