दिल्ली परिवहन विभाग ने NGT के आदेश पर तैयार मोटर वाहन स्क्रैपिंग पॉलिसी के तहत जारी लाइसेंस मनमाने तरीके से रद्द कर दिए हैं. क्योंकि इन सभी की स्क्रैपिंग यूनिट दिल्ली से बाहर हैं. दावा किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा पुराने वाहनों का निस्तारण करने वाली नई पॉलिसी के कारण ऐसा करना पड़ा. क्योंकि इस पॉलिसी के तहत किसी राज्य में पंजीकृत स्क्रैप लाइसेंस डीलर को उसी राज्य में स्क्रैपिंग यूनिट स्थापित करनी होगी. मगर हकीकत यह है कि केंद्र की नई पॉलिसी में ऐसी कोई शर्त ही नहीं है. ऐसे में परिवहन विभाग की कार्यशैली संदेह के घेरे में आ गई है.
दिल्ली में 24 अगस्त 2018 को NGT के आदेश पर दिल्ली में पुराने मोटर वाहनों की स्क्रैपिंग की पालिसी तैयार की गई थी. इसके तहत कुल आठ कंपनियों को वाहनों की स्क्रैपिंग का लाइसेंस मिला हुआ था. पॉलिसी में भी स्पष्ट था कि लाइसेंस धारक NCR एरिया में भी यूनिट लगा सकता है. चूंकि दिल्ली में यूनिट लगाने के लिए प्रदूषण संबंधी अनापत्ति प्रमाणपत्र मिलने में बहुत अड़चनें थी तो इन सभी कंपनियों ने अपनी यूनिट दिल्ली में नहीं लगाई.
मगर परिवहन विभाग ने 18 जनवरी को केंद्र सरकार के नए दिशा-निर्देशों देकर सभी आठ लाइसेंस रद्द कर दिए. कारण बताया गया है कि अब स्क्रैपिंग का लाइसेंस लेने वाली कंपनी को यूनिट भी उसी राज्य में लगानी होगी. लेकिन केंद्र के दिशा निर्देशों में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा है. बल्कि मार्च 2022 में अधिसूचित Motor Vehicles (Registration and Functions of Vehicle Scrapping Facility Amendment) Rules, 2022 की धारा 8 (X) में तो उल्लेख किया गया है कि स्क्रैप यूनिट किसी भी राज्य में पंजीकृत वाहन को स्क्रैप कर सकती है.
विभागीय सूत्रों की माने तो एक विशेष आयुक्त ने यह पूरी कारस्तानी की है. उसने 26 जनवरी के बाद उत्तर प्रदेश के कुछ स्क्रैप डीलरों के साथ मिलकर उन्हें दिल्ली में मौजूद पुराने वाहन उठाकर ले जाने के लिए अधिकृत करने की कोशिश भी की थी. लेकिन कानूनी विवाद बढ़ने की आशंका के कारण उस पर अमल नहीं हो पाया. उधर परिवहन के तुगलकी फरमान के खिलाफ एक लाइसेंस धारक कंपनी पाइनव्यू टेक्नोलॉजी ने उच्च न्यायालय में अपील भी दायर कर दी. जिसके बाद न्यायालय ने परिवहन विभाग को आठ हफ्ते के भीतर कंपनी का प्रतिवेदन निपटाने तब तक कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने का आदेश दिया है. यही वजह है कि वह कंपनी अभी भी पुराने वाहन स्क्रैप करने के लिए उन्हें जब्त कर रही है.
परिवहन विभाग के ही एक अधिकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने जो पालिसी बनाई है उसमे वाहन मालिकों को अपनी इच्छा से वाहन स्क्रैप कराना है. जबकि दिल्ली में यह पालिसी वायु प्रदूषण पर रोकथाम के लिए NGT के आदेश के आधार पर बनाई गई थी. इसके बाद परिवहन विभाग और यातायात पुलिस के अतिरिक्त दिल्ली नगर निगम, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद और दिल्ली छावनी बोर्ड को भी पुराने वाहन जब्त करने का अधिकार दिया गया था. यह सभी विभाग जब्त वाहनों को स्क्रैपिंग यूनिट को सौंपते है. यदि विभाग को इस मामले में कोई कदम उठाना था तो NGT को जानकारी देकर अनुमति लेनी चाहिए थी.
परिवहन विभाग दावा कर रहा है कि वह नए सिरे से स्क्रैपिंग यूनिट के लाइसेंस के लिए आवेदन आमंत्रित करेगा. मगर सवाल यह है कि दिल्ली में स्क्रैपिंग यूनिट कैसे लग पाएंगी ? परिवहन विभाग ने स्क्रैपिंग यूनिट के लिए न्यूनतम एक हजार वर्ग गज भूमि का अनिवार्य प्रावधान रखा है. लेकिन वास्तव में स्क्रैपिंग यूनिट के लिए न्यूनतम सात से दस हजार गज भूखंड की जरुरत होती है. सबसे बड़ी बात है कि यह यूनिट दिल्ली में केवल मौजूदा 24 कंफर्मिंग औद्योगिक क्षेत्रों में स्थापित हो सकती है और दिल्ली के इन क्षेत्रों में फ़िलहाल डेढ़-दो एकड़ के भूखंड उपलब्ध ही नहीं हैं.
दरअसल 2018 तक प्रदूषण संबंधी मापदंडों के तहत स्क्रैपिंग यूनिट को रेड श्रेणी में शामिल किया गया था. जिसे बाद में ऑरेंज कर दिया गया. सूत्रों के अनुसार परिवहन विभाग ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) से नोटिफाइड क्षेत्रों में स्क्रैपिंग यूनिट लगाने की अनुमति देने का दबाव डाला था. लेकिन NGT की तलवार को ध्यान में रखते हुए DPCC ने इसकी अनुमति देने से इंकार कर दिया।
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