70 वर्षीय महिला ने घरेलू हिंसा कानून के तहत एक प्रावधान को चुनौती दी है। इस कानून के तहत बहु को साझा घर से निकालने पर रोक लगाई गई है। महिला ने तर्क रखा है कि उसकी बहु उसे परेशान करती है बावजूद इसके इस कानून के कारण उसे घर से नहीं निकाला जा सकता। दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका पर केंद्र सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग और बहू को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
वरिष्ठ नागरिक ने कहा कि उसकी बहू द्वारा लगातार घरेलू हिंसा का शिकार होने के बावजूद एक निचली अदालत ने धारा 19(1) घरेलू हिंसा अधिनियम से महिलाओं का संरक्षण के प्रावधान के तहत निवास के अधिकार के आलोक में बेदखली का आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। ।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने सभी पक्षों को मामले में अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। साथ ही अदालत ने मामले में सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन को एमिकस क्यूरी भी नियुक्त किया है। अदालत ने मामले की सुनवाई 18 अप्रैल तय की है।
याचिकाकर्ता की और से पेश वकील प्रीति सिंह ने तर्क दिया कि अधिनियम का उद्देश्य घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा करना है। यह प्रावधान एक पीड़ित महिला के लिए एक बाधा के रूप में कार्य करता है जो किसी अन्य महिला के हाथों पीड़ित है और इसलिए यह असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण है।
अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने अपनी बहू को घर से निकालने के लिए अदालत से निर्देश देने की भी मांग की है। उसने आरोप लगाया कि बहू द्वारा उसे और उसके 76 वर्षीय पति को धमकाने के अलावा परेशान, आर्थिक रूप से शोषण व आतंकित किया जा रहा है। इसके बावजूद मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने उनकी मुवक्किला को किसी भी प्रकार से राहत प्रदान करने से इनकार कर दिया।
याचिका में कहा गया है अपराधी के लिंग के आधार पर प्रावधान एक अनुचित वर्गीकरण बनाता है और इस तरह समान रूप से पीड़ित महिला को बिना किसी समझदार अंतर के राहत से वंचित करता है, जिससे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता है।
दलील में कहा गया कि इस तरह का प्रावधान अपमानजनक रिश्ते में रहने वाली घरेलू संबंध और एक पीड़ित समलैंगिक महिला की दुर्दशा पर विचार करने में विफल है।
याचिका में कहा गया है कि पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम, 2005 की धारा 19 (1) के प्रावधान के आलोक में कोई भी महिला घरेलू हिंसा और पीड़ित व्यक्ति पर किए गए अत्याचारों की परवाह किए बिना साझा घर से निकाले जाने के लिए उत्तरदायी नहीं है।
कोई भी विषमलैंगिक महिला अपने साथी के खिलाफ उसे साझा घर से बेदखल करने के लिए याचिका दायर कर सकती है, लेकिन पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम, 2005 की धारा 19 (1) के प्रावधान के आलोक में एक समलैंगिक महिला को ऐसा अधिकार नहीं दिया गया है।
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