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ABVP ने पूरे किये 75 साल, कई प्रमुख आंदोलनों में भी रही है भूमिका

भारत के सबसे बड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (ABVP) की स्थापना के 75 वर्ष पूरे हो गये हैं. आरएसएस (RSS) स्वयंसेवक बलराज मधोक की पहल पर 9 जुलाई 1948 में स्थापित एबीवीपी को औपचारिक रूप से 9 जुलाई 1949 को पंजीकृत किया गया. एबीवीपी ने अपनी गतिविधियां शुरू करते हुए पहला सम्मेलन अंबाला में आयोजित किया. प्रोफेसर ओम प्रकाश बहल एबीवीपी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष और केशव देव वर्मा पहले राष्ट्रीय महासचिव बने. वर्तमान समय में डॉ• राजशरण शाही एबीवीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यज्ञयुल्क शुक्ला राष्ट्रीय महासचिव हैं. बॉम्बे यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर यशवंतराव केलकर 1958 में इसके मुख्य ऑर्गेनाइजर बने, केलकर को ही इस संगठन को खड़ा करने के पीछे का मुख्य चेहरा बताया जाता है.

स्थापना काल ही एबीवीपी छात्रों से जुड़े मुद्दों पर मुखर रहता है और राष्ट्रीय एकता के मुद्दों पर भी कार्य करते नज़र आता है. विद्यार्थी परिषद् के अनुसार, छात्रशक्ति ही राष्ट्रशक्ति होती है. विद्यार्थी परिषद् का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय पुनर्निर्माण है.

ABVP की जब ताकत बढ़ी

सन् 1974 में एबीवीपी के 790 कॉलेजों के परिसरों में 1 लाख 60 हजार सदस्य थे और उसने छात्र चुनावों के माध्यम से दिल्ली विश्वविद्यालय सहित कई प्रमुख विश्वविद्यालयों पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का झण्डा बुलंद कर दिया था. वामपंथी विचारधारा से उलट दक्षिणपंथी विचारधारा का प्रचार – प्रसार इसका मुख्य मकसद रहा.

1983 के दिल्ली यूनिवर्सिटी के चुनाव में एबीवीपी ने पहली बार वहां परचम लहराया. नब्बे के दशक आते-आते एबीवीपी के 1100 ब्रांच बन चुके थे और देशभर में इसके करीब ढाई लाख सदस्य थे. 1990 के दशक के दौरान बाबरी मस्जिद विध्वंस और पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा अपनाए गए आर्थिक उदारीकरण के परिणामस्वरूप विद्यार्थी परिषद् को अधिक समर्थन प्राप्त हुआ. 2003 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के सत्ता में आने के बाद भी छात्रों का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़ने का क्रम जारी रहा और 2016 तक इसकी सदस्यता तीन गुना होकर 3.175 मिलियन हो गई थी.

प्रमुख आंदोलनों में भी रही है महत्वपूर्ण भूमिका

लोकतंत्र की रक्षा हेतु आपातकाल के विरोध में अभाविप के हजारों कार्यकर्ताओं ने सत्याग्रह में भाग लिया. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के 650 कार्यकर्ता MISA के तहत और 4500 से अधिक कार्यकर्ता अन्य कानूनों के तहत जेलों में बंद रहे.

असम बचाओ आंदोलन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. राजघाट, दिल्ली से गुवाहाटी, असम तक असम ज्योति यात्रा और 2 अक्तूबर 1983 को गुवाहाटी में सत्याग्रह विद्यार्थी परिषद् द्वारा किया गया था.

1990 में आतंकियों द्वारा तिरंगे का अपमान और कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा न फहराने की गीदड़ भभकी के जवाब में एबीवीपी ने ‘जहां हुआ तिरंगे का अपमान, वहीं करेंगे तिरंगे का सम्मान’ नारे के साथ देशभर से 10,000 विद्यार्थियों के साथ ‘चलो कश्मीर’ मार्च किया था.

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने छात्र-हित से लेकर भारत के व्यापक हित से सम्बद्ध समस्याओं की ओर बार-बार ध्यान दिलाया है. बांग्लादेशी अवैध घुसपैठ और कश्मीर से धारा 370 को हटाने के लिए विद्यार्थी परिषद् समय-समय पर आन्दोलन चलाता रहा. बांग्लादेश को तीन बीघा भूमि देने के विरुद्ध परिषद् ने ऐतिहासिक सत्याग्रह किया था. रक्तदान के अलावा प्राकृतिक आपदा के समय भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता अगली पंक्ति में खड़े होकर मदद करते दिखते हैं. बता दें कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् और भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ही अलग-अलग शाखाएं हैं. एबीवीपी के कार्यकर्ताओं को भारतीय जनता पार्टी की राजनीति का भविष्य कहा जाता रहा है.

-भारत एक्सप्रेस

Divyendu Rai

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