-अवनीश कुमार
Dudhwa Tiger Reserve Lakhimpur Kheri: उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के दुधवा टाइगर रिजर्व में चार बाघों की मौत की जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी गई है. जांच रिपोर्ट में मौत के कारण के साथ सुझाव भी दिया गया है, जिससे आगे इस तरह की घटना न हो सके. जांच टीम ने सुझाव दिया कि दुधवा टाइगर रिजर्व में फारेस्ट गार्ड और फॉरेस्टर की संख्या कम है जिसे बढ़ाने की जरूरत है. इसी के साथ बाघों के संरक्षण के लिए मिलने वाले फंड भी समय से जारी किये जाने का सुझाव दिया गया है. रिपोर्ट में ये भी सुझाव दिया गया है कि फिल्ड स्टाफ की संख्या बढ़ेगी तो गश्त तेज किया जा सकेगा.
रिपोर्ट के अनुसार घटना में दो बाघों की मौत को आपसी संघर्ष बताया गया है, जबकि दो अन्य बाघों की मौत का कारण शरीर में संक्रमण फैलने से बताया गया है. बता दें कि बीते अप्रैल से जून के बीच दुधवा और आस-पास के क्षेत्र में चार बाघ मृत मिले थे, जिससे हड़कम्प मच गया था. इस पूरे मामले को मुख्यमंत्री ने खुद ही संज्ञान लेकर जांच की जिम्मेदारी वन मंत्री को सौंपी थी. बाघों की मौत पर मुख्यमंत्री ने नाराजगी दिखाई थी और वन राज्य मंत्री डॉ अरुण कुमार सक्सेना और वरिष्ठ अधिकारियों को तत्काल मौके पर जाकर घटना के कारणों का पता लगाने का निर्देश दिया था.
सीएम योगी के निर्देश पर ही मामले की जांच के लिए भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी और वन निगम के पूर्व एमडी संजय सिंह की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी. समिति के सदस्य अवकाश प्राप्त मुख्य वन संरक्षक आरके सिंह, लखनऊ प्राणि उद्यान के उप निदेशक डा. उत्कर्ष शुक्ला और गोरखपुर प्राणि उद्यान के चिकित्सक डा. योगेश प्रताप सिंह थे. समिति ने दुधवा जाकर जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी है. बाघों की मौत के बाद लापरवाही पर दुधवा के डायरेक्टर, डिप्टी डायरेक्टर और खीरी के प्रभागीय वन अधिकारी सहित कई अधिकारियों और कर्मचारियों को हटाया गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक 21 अप्रैल को हुई बाघ की मौत की वजह सेप्टिक शॉक रही, जबकि 31 मई को जो बाघ मृत पाया गया था, उसकी मौत आपसी संघर्ष के कारण हुई थी. तीन जून को बाघ की मृत्यु एक्यूट ब्रान्काइटिस के कारण हुई थी. वहीं नौ जून को हुई बाघ की मौत भी आपसी संघर्ष का नतीजा थी. जांच समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि टाइगर रिजर्व या ऐलिफेंट रिजर्व के लिए प्रोजेक्ट टाइगर व प्रोजेक्ट ऐलीफेंट के अलावा कैंपा परियोजना से आर्थिक सहयोग मिलता है, लेकिन इनसे प्राप्त हुई धनराशि समय से जारी नहीं हो पाती है. इससे भी वन्यजीवों के संरक्षण में व्यावहारिक कठिनाइयां आ रही हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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