लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर एनडीए लगातार अपना कुनबा बढ़ाने में जुटा हुआ है. इसी कड़ी में पंजाब में बीजेपी और अकाली दल के बीच गठबंधन को लेकर पिछले कुछ महीनों से बातचीत चल रही थी. जिसपर अब काले बादल मंडरा रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि बीजेपी और अकाली दल के बीच गठबंधन की बातचीत अंजाम तक नहीं पहुंच पाई.
पंजाब में आम आदमी पार्टी के इंडिया अलायंस के साथ चुनाव न लड़ने के ऐलान के बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है. सूत्रों की मानें तो अकाली दल द्वारा किसान आंदोलन, सिख बंदियों की रिहाई के मामले को लेकर बीजेपी पर दबाव बनाया जा रहा था. वहीं दूसरी ओर पंजाब बीजेपी के नेता भी इस गठबंधन के पक्ष में नहीं थे. जिसको लेकर अंतिम दौर में गठबंधन पर सहमति नहीं बन पाई.
बता दें कि केंद्र सरकार जब किसानों के लिए तीन नए कृषि कानून लेकर आई थी, तो उसके विरोध में अकाली दल ने एनडीए से अपना रिश्ता तोड़ लिया था. एनडीए के साथ गठबंधन खत्म करने के बाद अकाली दल ने बीएसपी के साथ अलायंस किया था और उसी के साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था.
दोनों दलों के बीच चल रही गठबंधन को लेकर बातचीत में सहमति न बन पाने को लेकर सूत्रों का कहना है कि बीजेपी पंजाब में अकाली दल से 13 सीटों में से 6 सीटें मांग रही है, जबकि अकाली दल इतनी सीटें देने को तैयार नहीं है. इससे पहले जब अकाली दल एनडीए के साथ था तो 10 सीटों पर चुनाव लड़ता रहा है.
दरअसल, पंजाब में इस अकाली दल और बीएसपी के बीच गठबंधन है. माना जा रहा है कि अकाली दल इसस गठबंधन को तोड़ने के मूड में नहीं है, क्योंकि पंजाब में बीसएपी का अच्छा खासा सियासी प्रभाव है. दूसरी ओर अकाली दल के साथ सुखदेव सिंह ढींढसा का गुट भी आने की तैयारी कर रहा है. जिसको लेकर बातचीत चल रही है. उधर अकाली दल के नेताओं का आरोप है कि बीजेपी उनके नेताओं को तोड़कर उसे कमजोर करना चाहती है. यही वजह है कि जालंधर लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी ने चरणजीत सिंह अटवाल के बेटे इंदर सिंह अटवाल को टिकट देकर मैदान में उतारा था.
-भारत एक्सप्रेस
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