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UP Politics: नाराज जयंत चौधरी थामेंगे एनडीए का हाथ! अखिलेश के इस दावे ने बढ़ाई सियासी हलचल, जानें कहां फंसा है पेंच

Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति में जमकर जयंत चौधरी के भाजपा गठबंधन में शामिल होने को लेकर घमासान मचा हुआ है. तो वहीं तमाम दावों के बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव का बयान सामने आ रहा है, जिसमें अखिलेश जयंत चौधरी को सुलझा हुआ और पढ़ा-लिखा बता रहे हैं और कह रहे हैं कि वह राजनीति को अच्छे से समझते हैं. जबकि सूत्रों का कहना है कि रालोद ने भाजपा से कैराना, अमरोहा, बागपत, मथुरा व मुजफ्फरनगर सीट मांगी थी और भाजपा इनमें से कैराना, अमरोहा और बागपत सीट देने के लिए तैयार है. बस मथुरा व मुजफ्फरनगर की सीट को लेकर पेच फंसा हुआ है तो वहीं इंडिया गठबंधन के तहत अखिलेश ने रालोद को 7 सीटें दी हैं, जबकि रालोद ने 8 सीटें मांगी हैं. इन्हीं सबको लेकर चर्चा तेज है कि जयंत जल्द ही भाजपा का हाथ थामने वाले हैं तो वहीं भाजपा पश्चिमी यूपी में मुस्लिम बहुल सीटों के लिए रालोद को साधने के लिए हर सम्भव कोशिश कर रही है. इसीलिए माना जा रहा है कि जयंत भाजपा की जरूरत बन गए हैं.

इन्हीं चर्चा के बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव का बयान सामने आया है. मीडिया से बात करते हुए अखिलेश ने कहा है कि “रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी बहुत सुलझे हुए इंसान हैं. वो बहुत पढ़े लिखे हैं. वे राजनीति को समझते हैं. मुझे उम्मीद है कि किसानों की लड़ाई के लिए जो संघर्ष चल रहा है, वे उसे कमज़ोर नहीं होने देंगे. तो वहीं इससे पहले शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि जयंत चौधरी हमारे साथ हैं. वो कहीं नहीं जा रहे हैं. भाजपा के लोग अफवाह उड़ा रहे हैं. तो दूसरी ओर यूपी की राजनीति में इस बात को लेकर चर्चा जोरों पर है कि राष्ट्रीय लोकदल (RLD) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) एक साथ आने के लिए तेजी से बात कर रहे हैं और अखिलेश द्वारा शेयर की गई सीटों पर वह नाराज हैं.

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इसलिए नाराज हैं जयंत

माना जा रहा है कि अखिलेश का प्रस्ताव है कि सात सीट रालोद ले लेकिन उसमें से चार सीट पर RLD के सिंबल पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी लड़ेंगे. इसी को लेकर जयंत पर जाटों और कार्यकर्ताओं द्वारा कांग्रेस से गठबंधन तोड़ने का भारी दबाव है. सूत्रों की मानें तो एनडीए में आने पर दो सीटो पर आरएलडी को चुनाव लड़ाया जा सकता है, जो कि बागपत और मथुरा की सीटें हैं. ये दोनों सीटें आरएलडी को दी जा सकती हैं. एक राज्यसभा की सीट भी RLD को दी जा सकती है. बता दें कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा और उसका खाता नहीं खुला. उस चुनाव में सपा और रालोद का गठबंधन था. फिर साल 2022 विधानसभा चुनाव में भी सपा और रालोद ने एक साथ चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में RLD 33 सीटों पर लड़ी और 9 सीटों पर ही विजय हासिल की थी.

जानें क्या है पश्चिमी यूपी की सियासी गणित

बता दें कि यूपी में पश्चिम को साधने के लिए हर राजनीतिक दल अपनी-अपनी जुगत हमेशा से भिड़ाता रहा है. अगर पश्चिमी यूपी के सियासी गणित की बात करें तो यहां 27 लोकसभा सीटें हैं, जिसमें से भाजपा ने 19, सपा ने 4 और बसपा ने 4 सीटों पर विजय हासिल की थी, लेकिन रालोद की किसी भी सीट पर जीत नहीं हुई थी. यहां तक कि जयंत को पश्चिमी यूपी के जाट समाज का भी साथ नहीं मिला था. इतना ही नहीं 2014 के चुनाव में भी जयंत को निराशा ही मिली थी और एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी. अगर सूत्रों की मानें तो जयंत चौधरी गठबंधन के लिए भाजपा से बात कर रहे हैं और दावा किया जा रहा है कि उन्होंने जो चार सीटें भाजपा से मांगी हैं, उसमे से तीन देने के लिए भाजपा तैयार भी है. इसी के साथ ये भी कहा जा रहा है कि जब भी आरएलडी और भाजपा के बीच बातचीत औपचारिक होगी, आरएलडी INDIA गठबंधन छोड़ सकती है.

पहले भी कर चुके हैं भाजपा नेताओं से मुलाकात

बता दें कि जयंत चौधरी पहले भी भाजपा के कुछ शीर्ष नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं. तभी से कयास लगाया जा रहा था कि रालोद सपा का साथ छोड़ सकती है. हालांकि इस पर कभी भी जयंत की ओर से कोई अधिकारिक बयान सामने नहीं आया है तो वहीं बताया जा रहा है कि पार्टी कैडर इस आरोप से नाराज है कि सपा कैराना और मुजफ्फरनगर से आरएलडी के सिंबल पर अपने उम्मीदवार उतारना चाहती है.

पश्चिमी यूपी में इतनी है जाट आबादी

बता दें कि पश्चिम यूपी में मुस्लिम और जाट आबादी को साधने के लिए हर राजनीतिक दल अपनी-अपनी गणित लगाते रहते हैं. बता दें कि यहां पर करीब 18 प्रतिशत जाट आबादी है, जो सीधे चुनाव पर असर डालती है. यानी पश्चिमी यूपी के जाट समुदाय का ये एकमुश्त वोट किसी भी दल की हार-जीत तय करने में अहम रोल निभाता है. 2019 के चुनाव में जाटलैंड की सात सीटों पर बीजेपी को हार मिली थी. बीजेपी को मुजफ्फरनगर, मेरठ समेत तीन सीटों पर काफी कम अंतर से जीत मिली थी. ऐसे में माना जा रहा है कि अगर आरएलडी एनडीए के साथ आ जाती है तो फिर भाजपा की जीत की राह आसान हो जाएगी. वहीं नीतीश और ममता के इंडिया गठबंधन से बाहर जाने के बाद माना जा रहा है कि जयंत भी अगर भाजपा का हाथ थामते हैं तो कांग्रेस और सपा के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है. कुछ आरएलडी सूत्रों का कहना है कि उन्हें भी सपा के साथ गठबंधन में अच्छे प्रदर्शन की बहुत उम्मीद नहीं है.

-भारत एक्सप्रेस

Archana Sharma

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