Varun Gandhi: उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से भाजपा के सांसद वरुण गांधी ने चुनावी चंदे और चुनाव प्रचार के दौरान होने वाले खर्चों को लेकर निशाना साधा है. वरुण गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा है कि चुनावी चंदे पर नियंत्रण जरूरी है! 2009 के आम चुनावों में 2 अरब डॉलर खर्च हुए थे, और 2019 तक यह आँकड़ा 8.5 अरब डॉलर पार कर चुका है. महँगा होता चुनाव न सिर्फ गरीब को लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव से दूर करता है बल्कि उसकी निष्पक्षता भी प्रभावित करता है.
उन्होंने अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल के जरिए अपना लेख शेयर किया है. समाचार पत्र में लिखे संपादकीय के जरिए वरुण गांधी ने चुनावों के दौरान होने वाले खर्चों को लेकर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि भारत में हर विधायक अपने करिअर की शुरुआत झूठे रिटर्न फाइलिंग से करता है. राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की निजी चंदे पर निर्भरता कम करने के लिए सरकारी फंडिंग की दिशा में ठोस और ईमानदार पहल समय की मांग है.
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उन्होंने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (ADR) का जिक्र करते हुए लिखा है कि इसके अनुसार 2021-22 में देश की राष्ट्रीय दलों की आय का 60 फीसदी अज्ञात स्नोतों से आया और वह राशि 2172 करोड़ रुपए से अधिक है. वित्तीय वर्ष 2004-05 और 2021-22 के बीच राजनीतिक दलों द्वारा17,249 करोड़ रुपए अज्ञात स्नोतों से जुटाए गए. इसमें कहीं दो राय नहीं कि चुनिंदा सुधारों के बावजूद दशकों से देश में चुनावी खर्च में पारदर्शिता की कमी रही है.
वरुण गांधी ने इस लेख में कहा है, “जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (1951), धारा 29 (सी) के मुताबिक राजनीतिक दलों के कोषाध्यक्षों को 20 हजार रुपए से अधिक के किसी भी योगदान के दस्तावेज चुनाव आयोग से साझा करना होता है.” आगे उन्होंने कहा कि, ” 1968 में इंदिरा गांधी की पहल पर राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट चंदे पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन 1985 में इसे फिर से वैध कर दिया गया. 1979 तक राजनीतिक दलों को आय और सम्पत्ति करों से भी छूट हासिल थी. हालांकि वे वार्षिक रिटर्न दाखिल करते थे व 10 हजार से अधिक के दान और दान दाताओं की पहचान का खुलासा करते थे.”
उन्होंने ये भी लिखा है, “कहना नहीं होगा कि इस मामले में बाद में संशोधनों ने निगमों और राजनीतिक दलों की गोपनीयता को सामान्य नागरिकों के सूचना के अधिकार पर प्राथमिकता दी है. जाहिर है कि इससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की हमारी क्षमता प्रभावित हुई है. राजनीतिक दलों को अब आयकर विभाग और चुनाव आयोग को वार्षिक आय-व्यय का विवरण देना तो जरूरी है लेकिन वे अपने धन के स्त्रोतों का विस्तृत विवरण देने के लिए बाध्य नहीं हैं.”
इस लेख में उन्होंने अमेरिका का जिक्र करते हुए लिखा है, “वहां पर चुनाव अभियान के खर्च के लिए दलों और उम्मीदवारों को वित्तीय मदद की परिभाषित सीमाएं हैं, जबकि चुनाव अभियान का खर्च ऐसी किसी भी सीमा से मुक्त है.” वरुण ने अपने इस लेख में इटली, नीदरलैंड का जिक्र करते हुए यहां के चुनाव अभियान में होने वाले खर्चों का जिक्र किया है. इसी के साथ सुझाव भी दिया है कि किस तरह से भारत की राजनीतिक दल इससे बच सकते हैं. इस लेख में उन्होंने ये भी खुलासा किया है कि भारत में चुनावों की विदेशी फंडिंग भी जारी है.
-भारत एक्सप्रेस
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