Caste Census: बिहार में नीतीश सरकार की तरफ से कराए गए जातीय सर्वे का विरोध करते हुए केंद्र सरकार ने अब फिर से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. जिसमें उसने पैरा-5 को हटा दिया है और कहा है कि पैरा-5 गलती से शामिल हो गया था. पैरा-5 में केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि जनगणना या फिर इसके जैसी कोई भी कार्रवाई सिर्फ केंद्र सरकार ही कर सकती है. वही इसके लिए अधिकृत है.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो पहले हलफनामा दाखिल किया था उसमें कहा ता कि जनगणना एक वैधानिक प्रक्रिया है जो जनगणना अधिनियम 1948 के तहत शासित होती है. केंद्र सरकार ने कहा था कि जनगणना अधिनियम 1948 के अंतर्गत सिर्फ केंद्र सरकार को ही पूरी जनगणना कराने का अधिकार है, लेकिन अब नए हलफनामे में जनगणना जैसी कोई अन्य प्रक्रिया शब्द को हटा दिया गया है.
अब कानून के जानकारों का कहना है कि राज्य सरकारों के पास अधिकार होता है कि वे अपने राज्यों में किसी भी तरह का सर्वे करा सकती हैं. किसी अभी सर्वे या आंकड़े जुटाने के लिए कमेटी और आयोग गठित कर सकती हैं. इसी अधिकार के तहत बिहार सरकार ने जातीय सर्वे कराया है. दूसरी तरफ उत्तराखंड में भी कॉमन सिविल कोड के लिए कमेटी बनाकर सर्वेक्षण कराया गया. वहीं बिहार सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि सरकार जातीय जनगणना नहीं करा रही है, बल्कि जातिगत सर्वे कराया जा रहा है.
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बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया था कि जातीय सर्वे का कार्य 6 अगस्त को पूरा हो चुका है. इसकी पूरी जानकारी वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई है. सरकार ने ये भी कहा था कि सर्वे का डेटा सार्वजनिक नहीं किया जाएगा. राइट टू प्राइवेसी की दलील देने वाले वकील से जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा था कि सरकार कह रही है किसी भी व्यक्ति से ली गई जानकारी को पब्लिक डोमेन में नहीं लाया जाएगा. सिर्फ सामूहिक आंकड़े पेश किए जाएंगे.
बता दें कि पटना हाई कोर्ट ने नीतीश सरकार की तरफ से कराए जा रहे जातीय सर्वे को वैध और कानूनी रूप से सही बताया था. उसके बाद तीन महीने ये प्रक्रिया रुक हुई थी. बाद में इसे शुरू किया गया था. जातीय जनगणना को कराने का फैसला पिछले साल नीतीश सरकार की कैबिनेट ने लिया था.
-भारत एक्सप्रेस
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