साल 2015 में एक फिल्म आई थी- ‘मांझी: द माउंटेन मैन’. नवाजुद्दीन सिद्दीकी स्टारर फिल्म की कहानी बिहार की एक ऐसी शख्सियत से जुड़ी है, जिसका जुनून और जज्बा किसी पहाड़ सा अडिग था. हालांकि ये अलग बात है कि उनका ये जुनून और जज्बा असल जिंदगी में ही एक पहाड़ पर भारी पड़ गया.
इस शख्सियत का नाम दशरथ मांझी था. दशरथ मांझी की कहानी प्यार की ऐसी दास्तान है, जो सदियों में एक बार घटित होती है. ऐसी घटना कहा घटती है कि एक व्यक्ति अपनी पत्नी के प्यार में पहाड़ का सीना चीरकर उस पर रास्ता बना दे. दशरथ माझी की ये मार्मिक कहानी अदम्य साहस और ताकत का उदाहरण है, जो सदियों तक प्रेरणा देती रहेगी.
उनकी कहानी मुगल बादशाह शाहजहां को भी कड़ी टक्कर देती है, जिसने पत्नी मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया है. दशरथ मांझी 22 साल तक हथौड़ा थामे जब पहाड़ पर प्रहार कर रहे थे तो किसी ने उन्हें ‘पागल’ कहा, कोई उन्हें ‘सनकी’ बोलता था तो कुछ ने उन्हें ‘दीवाने’ की तरह देखता था. हालांकि इन बातों ने उनके हौसले को कभी डिगने नहीं दिया. उन्होंने कभी इन बातों की परवाह नहीं की.
दरअसल ये पहाड़ उनकी पत्नी की मौत का कारण बना था. दशरथ मांझी बिहार के गया जिले के गहलौर गांव के रहने वाले थे. गरीबी में उनका जीवन बीता. पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाने के कारण उन्हें ‘माउंटेन मैन’ भी कहा जाता है. इस रास्ते के बन जाने से गहलौर से वजीरगंज सहित कई गांवों की दूरी 40 किलोमीटर तक कम गई. इसे मोहब्बत का प्रतीक भी कहा जाता है.
उनके ‘माउंटेन मैन’ बनने की कहानी शुरू होती है एक हादसे से. कहा जाता है कि दशरथ मांझी की पत्नी फगुनिया हर दिन की तरह एक दिन उनके लिए खाना और पानी लेकर पहाड़ के रास्ते जा रही थीं. पहाड़ के दूसरी छोर पर दशरथ मांझी लकड़ी काट रहे थे. इस दौरान उनकी पत्नी का पैर फिसला और सिर से पानी का मटका गिरकर फूट गया. उनके पैर में चोट भी लग गई. गरीब मांझी सीमित संसाधन जुटाकर जैसे-तैसे अस्पताल की ओर चल निकले, लेकिन फगुनिया की रास्ते में ही मौत हो गई. अस्पताल 55 किलोमीटर दूर था. पत्नी फगुनिया की मौत से दशरथ मांझी को असहनीय सदमा पहुंचा था.
पत्नी की मौत के बाद दशरथ मांझी गहलोर घाटी का पहाड़ काटने इसलिए निकल पड़े, क्योंकि अस्पताल की दूरी 55 किलोमीटर इसलिए हो गई थी, क्योंकि रास्ते में ये पहाड़ होने की वजह से घूमकर जाना पड़ता था. पत्नी की मौत ने उन्हें झकझोर कर रख दिया.
उन्होंने सोचा कि अगर पहाड़ों के बीच रास्ता होता तो अस्पताल तक पहुंचने के लिए महज 15 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती और फगुनिया बच सकती थी. गरीब और अनपढ़ होने के बावजूद दशरथ मांझी अपने धुन के पक्के थे और पत्नी की मौत ने उन्हें एक ऐसा मजबूत इरादा दे दिया कि उन्होंने पहाड़ अपने हाथों से काटकर रास्ता निकाल दिया.
हालांकि पहाड़ काटने का उनका ये काम 22 वर्षों तक चला. साल 1960 से लेकर 1982 तक दशरथ इस पहाड़ को पागलों की तरह बिना किसी की मदद के छेनी और हथौड़ी से काटते रहे थे. 22 सालों के उनके अथक प्रयास ने 25 फीट ऊंचे, 30 फीट चौड़े और 360 फीट लंबे पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया. एक ऐसा रास्ता जिसने गांव को सीधे अस्पताल से जोड़ दिया, जिसकी दूरी घटकर 55 से 15 किलोमीटर हो गई है.
दशरथ मांझी की कहानी बिहार में ही कहीं दबकर रह जाती अगर उनकी जिंदगी पर ‘मांझी: द माउंटेन मैन’ नाम की फिल्म नहीं बनती. 2015 में रिलीज हुई इस फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने उनका किरदार निभाया था और फगुनिया के रोल में राधिका आप्टे नजर आई थीं. फिल्म का निर्देशन केतन मेहता ने किया था. बहरहाल 2007 में दशरथ मांझी को पित्ताशय के कैंसर का पता चला और उन्हें नई दिल्ली स्थित एम्स में भर्ती कराया गया. 17 अगस्त 2007 को उनका निधन हो गया था.
-भारत एक्सप्रेस
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