दिल्ली हाइकोर्ट ने माना कि सरकारी सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को अपने प्राचार्य, शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति का पूर्ण अधिकार है। न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने हाल ही में कहा कि इस उद्देश्य के लिए सरकार से किसी पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है और सरकार के शिक्षा विभाग (डीओई) द्वारा विनियमन की सीमा प्राचार्यों और शिक्षकों की योग्यता और अनुभव निर्धारित करने तक सीमित है। न्यायालय ने कहा जब तक नियुक्त किए जाने वाले प्रधानाचार्य और शिक्षकों के पास निर्धारित योग्यता और अनुभव है, तब तक याचिकाकर्ता [भाषाई अल्पसंख्यक संस्थान] के अपने द्वारा संचालित विद्यालयों में रिक्तियों को भरने के लिए नियुक्तियां करने के अधिकार पर कोई प्रतिबंध नहीं हो सकता है.
अदालत ने जोर देकर कहा
अदालत ने जोर देकर कहा कि राज्य द्वारा अल्पसंख्यक संस्थान को सहायता प्रदान करने से इस कानूनी स्थिति में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं आता है। न्यायालय ने रेखांकित किया अधिकतम स्तर पर, राज्य अपने द्वारा दी जाने वाली सहायता के उचित उपयोग को विनियमित कर सकता है। वह अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान को शिक्षकों या प्रधानाचार्यों की नियुक्ति के मामले में अपने निर्देशों के अधीन नहीं कर सकता है, इस बहाने कि उसने संस्थान को सहायता प्रदान की है।
याचिका में शिक्षा विभाग द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी
अदालत ने दिल्ली तमिल शिक्षा संघ (डीटीईए) द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश दिया। याचिका में शिक्षा विभाग द्वारा पारित उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें सीधी भर्ती के माध्यम से अपने विद्यालयों में 52 रिक्त पदों को भरने के उसके प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया था। शिक्षा विभाग ने कहा कि विद्यालयों में कोई प्रबंध समिति नहीं है। डीटीईए ने न्यायालय को बताया कि तमिल भाषा और तमिल लोगों की संस्कृति और लोकाचार को बढ़ावा देने और प्रचारित करने के लिए 1923 में इसकी स्थापना की गई थी। न्यायालय को बताया गया कि डीटीईए 6,879 छात्रों के साथ सात भाषाई अल्पसंख्यक विद्यालय चलाता है। अदालत ने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता संघ शिक्षा विभाग की पूर्व स्वीकृति के बिना अपने द्वारा संचालित विद्यालयों में प्रधानाचार्यों और शिक्षकों के रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ करने का हकदार है। साथ ही अदालत ने डीटीईए के प्रस्ताव को खारिज करने वाले शिक्षा विभाग के आदेश को खारिज कर दिया।
-भारत एक्सप्रेस
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