दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर बर्खास्तगी का आदेश अवैध है तो कर्मचारी पिछले वेतन का हकदार है और ऐसे मामलों में काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत लागू नहीं होता. अदालत ने विद्या भवन गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल की शिक्षक को बर्खास्तगी के दौरान का वेतन देने का निर्देश देते हुए यह टिप्पणी की.
जस्टिस तुषार राव गेडेला ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि अगर किसी कर्मचारी को इस आधार पर बहाल करने का आदेश दिया जाता है कि सक्षम प्राधिकारी ने प्रासंगिक वैधानिक प्रावधानों या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध कोई कार्रवाई की है तो कर्मचारी पूर्ण बकाया वेतन का दावा करने का हकदार है.
न्यायालय ने पाया कि न्यायाधिकरण ने सेवा से बर्खास्तगी को स्पष्ट रूप से अवैध पाया है. इसके अलावा न्यायाधिकरण ने माना कि याचिकाकर्ता उस आदेश की तिथि से पूर्ण वेतन की हकदार है और वह सभी परिणामी लाभों की भी हकदार होगी.
न्यायालय ने माना कि शिक्षा उपनिदेशक द्वारा लागू किया गया काम नहीं तो वेतन नहीं, का सिद्धांत निर्धारित अनुपात के मद्देनजर लागू नहीं था. काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत कई मामलों में लागू होता है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने दिए फैसले में इस सिद्धांत का अपवाद बनाया है.
अदालत ने उन मामलों में अंतर किया गया है, जहां बर्खास्तगी के आदेश को अवैध माना गया है और साथ ही यह पाया गया है कि बर्खास्त कर्मचारी ने सेवाओं में बने रहने की अपनी इच्छा व्यक्त की थी लेकिन प्राधिकरण द्वारा किसी न किसी कारण से उसे वंचित कर दिया गया था. ऐसे मामलों में कर्मचारियों को पिछले वेतन का हकदार माना गया है.
अदालत ने स्कूल को याचिकाकर्ता को 31 जनवरी 2016 से 28 जुलाई 2017 की अवधि के लिए पिछले वेतन का भुगतान करने का आदेश दिया. याची मनीषा शर्मा को 2008 में विद्या भवन गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल द्वारा प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (अंग्रेजी) (टीजीटी) के रूप में प्रोबेशन पर नियुक्त किया गया था. 2009 में उनकी नियुक्ति की पुष्टि की गई.
2014 में उपनिदेशक के पास एक कथित झूठी शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि जब याचिकाकर्ता को शुरू में नियुक्त किया गया था तो उसके पास आवश्यक योग्यता नहीं थी. जांच शुरू की गई और 31 अक्टूबर 2016 के आदेश द्वारा सक्षम प्राधिकारी ने माना कि याचिकाकर्ता के पास टीजीटी के पद के लिए आवश्यक योग्यता नहीं है और याचिकाकर्ता की सेवाओं को बर्खास्त करने का आदेश पारित किया गया.
याचिकाकर्ता ने दिल्ली स्कूल ट्रिब्यूनल के समक्ष एक वैधानिक अपील दायर की. ट्रिब्यूनल ने याचिकाकर्ता की बर्खास्तगी के आदेश को अवैध माना और आदेश की तारीख से पूरे वेतन के साथ उसे बहाल करने का निर्देश दिया. स्कूल ने ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की गई, जिसे खारिज कर दिया गया.
बहाली आदेश में पिछले वेतन के संबंध में कोई आदेश नहीं था. याचिकाकर्ता ने पिछला वेतन न दिए जाने के लिए अवमानना याचिका दायर की, लेकिन अवमानना याचिका पर सुनवाई से पहले शिक्षा निदेशक द्वारा 18 सितंबर 2019 को एक आदेश पारित किया गया, जिसमें याचिकाकर्ता को इस आधार पर पिछला वेतन देने से फिर से इनकार कर दिया गया कि याचिकाकर्ता ने निपटान अवधि के दौरान काम नहीं किया और बिना काम के वेतन नहीं मिलने के सिद्धांत पर कोई पिछला वेतन देय नहीं था.
-भारत एक्सप्रेस
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