दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को एक महिला एवं उसके नाबालिग बेटों को 11 लाख 44 हजार नौ सौ आठ रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया है. साथ ही मुआवजे के लिए याचिका दाखिल करने की तिथि 11 जनवरी, 2001 से राशि जारी करने तक छह फीसदी प्रति वर्ष की दर से ब्याज देने को कहा है. महिला की पति की मौत 24 साल पहले उनके डीडीए फ्लैट का बालकनी गिरने की वजह से हुई थी.
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने लापरवाही के लिए डीडीए की खिंचाई की और कहा कि फ्लैट के बुनियादी ढांचे की आवंटन के बाद उसका स्थायित्व और लंबे समय तक बनाए रखना उसका दायित्व है. उन्होंने कहा कि डीडीए का बालकनी की गुणवत्ता, मजबूती और जीवनकाल के लिए बनाए रखने के लिए जवाबदेह है.
विशेषज्ञ की जानकारी की आवश्यकता के बिना भी यह स्पष्ट है कि यह मुद्दा केवल रिसाव या नमी से कहीं अधिक है. एक सामान्य व्यक्ति से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह अपनी बालकनी का संरचनात्मक दोष देख सके. झिलमिल डीडीए फ्लैट्स रेजिडेंट्स एसोसिएशन ने कई बार डीडीए को खराब निर्माण व घटिया सामग्री के उपयोग के बारे में सचेत किया था. लेकिन उसका अनदेखा किया गया. ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह बताए कि मृतक या उसके परिवार के सदस्यों ने जानबूझकर कोई ऐसा काम किया हो जिससे रिसाव या नमी हो. वे दैनिक जीवन में बालकनी का सामान्य रूप से उपयोग करते हैं.
कोर्ट ने कहा कि डीडीए की लापरवाही बालकनी गिरने का कारण है. शिकायत मिलने के बाद निर्माण दोष को दूर किया जाना चाहिए था. आवासीय फ्लैटों के आवंटन के बाद संरचनात्मक दोषों के लिए डीडीए जवाबदेह है. इसलिए वह याचिकाकर्ताओं को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी है. कोर्ट ने यह निर्देश मृतक की पत्नी व उसके दो नाबालिग बेटों की याचिका पर फैसला सुनाते हुए दिया.
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याचिकाकर्ताओं को वर्ष 1986-88 के दौरान झिलमिल कॉलोनी में 816 फ्लैटों के बहुमंजिला परिसर में एक फ्लैट दिया गया था. फ्लैट की बालकनी ढ़हने के बाद उन्होंने निर्माण में शामिल अधिकारियों और ठेकेदारों पर जिम्मेदारी तय करने के लिए सीबीआई जांच की मांग की थी. मामले के अनुसार 20 जुलाई, 2000 को दूसरे तल के अपार्टमेंट की बालकनी ढह गई थी, जिससे याचिकाकर्ता के पति गिर गए थे और चोटों की वजह से बाद में उनकी मृत्यु हो गई थी.
-भारत एक्सप्रेस
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