Delhi High Court: दिल्ली हाइकोर्ट ने 4 साल के LLB कोर्स के लिए “कानूनी शिक्षा आयोग” गठित करने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है. यह याचिका बीजेपी नेता व वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की थी. दिल्ली हाइकोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कोर्स डिजाइन करना अदालत का अधिकार क्षेत्र में नही आता है. अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा था कि कोर्ट केंद्र सरकार को आदेश दे कि कानूनी शिक्षा आयोग गठित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
याचिका में कहा गया था कि बीटेक जैसे चार वर्षीय बैचलर ऑफ लॉ पाठ्यक्रम की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए सेवानिवृत्त न्यायधीशों, कानून प्रोफेसरो और वकीलों को शामिल करते हुए चिकित्सा शिक्षा आयोग के समान एक एलईसी गठित करने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया था कि नई शिक्षा नीति 2020 चार साल के स्नातक पाठ्यक्रमों को बढ़ावा देती है, लेकिन बीसीआई ने आज तक न तो पांच साल के बीए-एलएलबी की समीक्षा की है और न ही चार साल के बी लॉ की शुरुआत की है.
आईआईटी के माध्यम से बीटेक करने में 4 साल की अनावश्यक शिक्षा लगती है और वह भी इंजीनियरिंग के एक निदिष्ट क्षेत्र में, जबकि एनएलयू और विभिन्न अन्य संबद्ध कॉलेजों के माध्यम से बीए-एलएलबी या बीबीए-एलएलबी में कला का ज्ञान प्रदान करने में एक छात्र के अनमोल जीवन के 5 साल लग जाते हैं. याचिका में यह भी कहा गया है कि पांच साल के पाठ्यक्रम की वार्षिक फीस चार साल के पाठ्यक्रम की तुलना में अधिक है. याचिका में कहा गया कि पूर्व कानून मंत्री दिवंगत राम जेठमलानी ने 17 साल की उम्र में और दिग्गज दिवंगत वकील फली नरीमन ने 21 साल की उम्र में वकालत शुरू की थी.
बता दें कि इससे पहले अश्विनी कुमार उपाध्यय ने इसकी मांग को लेकर याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था. उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था कि 12 वी क्लास के बाद 5 साल की अवधि वाले 3 साल की लॉ डिग्री कोर्ट करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. सीजेआई ने याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि 5 साल का समय भी कम ही है.
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