Delhi High Court: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के खिलाफ निचली अदालत द्वारा की गई टिप्पणी को दिल्ली हाई कोर्ट ने हटा दिया है. जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने पाया कि ईडी के जांच अधिकारी और प्रवर्तन निदेशालय के काम काज के बारे में निचली अदालत की टिप्पणी अनुचित थी. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस बात पर जोर देने की कोई आवश्यकता नहीं है कि सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ निचली अदालत द्वारा की गई प्रतिकूल टिप्पणियों के उनके आधिकारिक रेकॉर्ड और उनके करियर पर गंभीर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है.
ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी द्वारा अभियोजन शिकायत पर संज्ञान लेने का निर्णय लेते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित 5 अक्टूबर और 19 अक्टूबर के आदेशों को चुनौती दी थी. 5 अक्टूबर को दिए गए पहले आदेश में ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि मामले में मुख्य आरोपी का पता न चल पाए, इसके लिए पर्याप्त बलपूर्वक कदम उठाने के लिए ईडी की जांच धोखाधड़ी को दर्शाती है. ईडी ने बताया था कि यह व्यक्ति फरार है और कई समन के बावजूद वे उसका पता नहीं लगा पाए.
ट्रायल कोर्ट ने कहा कि उक्त आरोपी के खिलाफ बलपूर्वक कदम उठाने के लिए पर्याप्त समय था. ईडी के निदेशक को विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए निचली अदालत ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि गिरफ्तारी और जांच एजेंसी का एक मात्र विशेषाधिकार है. लेकिन, जिस तरह से इसे संचालित किया जाता है, उसमें निष्पक्षता झलकनी चाहिए, न कि मनमानी या मनमौजी रवैया. 19 अक्टूबर को दिए गए दूसरे आदेश में ट्रायल कोर्ट ने रिपोर्ट दाखिल न करने के लिए ईडी को फटकार लगाई. यह सब ईडी की छबि को खराब करता है. ईडी की ओर से इस तरह की उदासीन रवैया बिल्कुल अस्वीकार है. इस अदालत की टिप्पणियों के प्रति पूरी तरह से उदासीनता दिखा रहा है. आज आईओ की अनुपस्थिति इसका पर्याप्त सबूत है.
ईडी की ओर से पेश वकील जोहेब हुसैन ने कहा कि ट्रायल कोर्ट की टिप्पणियां निराधार और गलत थी. उन्होंने बताया कि ईडी ने न केवल फरार व्यक्ति को कईमौकों पर समन जारी किए थे, बल्कि उक्त आरोपी विभिन्न उपलब्ध पतों का भौतिक सत्यापन भी किया था. उन्होंने कहा कि जांच अधिकारी ने आरोपी के खिलाफ लुक-आउट-सर्कुलर खोलने के लिए आव्रजन ब्यूरो को आवश्यक सूचना भी जारी की. उन्होंने आगे बताया कि ईडी के निदेशक की तीन दिन प्रतिदिन की जांच में कोई भूमिका नहीं है और इसलिए कोई कारण नहीं है कि ट्रायल कोर्ट की उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता हो. दिल्ली हाई कोर्ट ईडी की इस दलील से सहमत था कि उसे किसी फरार आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने के लिए उसकी उपस्थिति का इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है.
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