Dr. Bhimrao Ambedkar lost Election Story: डाॅ. भीमराव आंबेडकर संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष थे. उनकी देखरेख में ही संविधान का निर्माण हुआ. उनकी अगुवाई में बने संविधान को भारत ने 26 नवंबर 1949 को अंगीकृत किया था. अंगीकृत करने के ठीक 2 महीने बाद 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया. तब भारत एक गणतांत्रिक देश बना. देश में पहले आम चुनाव 1952 में हुए. पहले चुनाव की प्रकिया लगभग 4 महीने चली. इस चुनाव में बाबा साहेब ने किस्मत आजमाई लेकिन उनको हार का मुंह देखना पड़ा. दिलचस्प बात यह है कि इस चुनाव में उन्हें उनके पीए नारायण काजरोलकर ने हराया था. यह हार आजाद भारत के इतिहास की सबसे बड़ी हार थी.
आजादी के बाद पंडित नेहरू की अगुवाई में बनी पहली अंतरिम सरकार में आंबेडकर को विधि और न्याय मंत्री बनाया गया. हालांकि बाद में उनका कई मुद्दों को लेकर कांग्रेस से मतभेद हो गया. इसके बाद उन्होंने 27 सितंबर 1951 को पत्र लिखकर नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद स्वयं द्वारा खड़े किए गए अनुसूचित जाति संघ को मजबूत बनाने के लिए काम करने लगे.
1952 के आम चुनाव में भीमराव अपनी पार्टी अनुसूचित जाति संघ के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरे. उनकी पार्टी ने इस चुनाव में 35 सीटों पर चुनाव लड़ा. हालांकि उनके 2 ही प्रत्याशी जीत दर्ज कर पाए. चुनाव में वे स्वयं भी उतरे लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा. उन्होंने इस चुनाव में मुंबई उत्तर सीट से चुनाव लड़ा. कांग्रेस ने उनके सामने उनके पीए नारायण काजरोलकर को प्रत्याशी बनाया.
दूध का कारोबार करने वाले नारायण काजरोलकर राजनीति में नए-नए थे. पंडित नेहरू की लहर इतनी बड़ी थी कि काजरोलकर चुनाव जीत गए. इस चुनाव में आंबेडकर को 1,23,576 वोट मिले. वे इस चुनाव में चैथे स्थान पर रहे. पहले आम चुनाव में कांग्रेस को कुल 489 सीटों में से 364 सीटों पर जीत मिली. कांग्रेस को इस चुनाव में 45 फीसदी वोट मिले थे.
बता दें कि आंबेडकर का जन्म 1891 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ था. महार जाति में जन्मे आंबेडकर को बचपन से ही छुआछुत का सामना करना पड़ा. केवल 15 साल में ही उनकी शादी 9 साल की रमाबाई से हो गई. 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद भारत सरकार ने मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
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