Mukhtar Ansari death: लोकसभा चुनाव-2024 (Lok Sabha Elections-2024) शुरू होने वाले हैं. इससे ठीक कुछ दिन पहले ही मुख्तार अंसारी की मौत और उनके जनाजे में बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय का उमड़ना, ये बात साफ करता है कि इस बार के चुनाव में इसका असर देखने को जरूर मिलेगा. हालांकि इसको लेकर राजनीतिक जानकार भी यही मानते हैं. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मुख्तार की मौत को लेकर सहानुभूति वोट बैंक को भुनाने के लिए राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने हिसाब से जुट गई हैं और गुणा-गणित लगा रही हैं.
पहले-पहल तो सहानुभूति वोट बैंक को आकर्षित करने के लिए कई राजनीतिक दल मऊ से पूर्व विधायक व बाहुबली मुख्तार अंसारी की मौत को लेकर लगातार बयानबाजी कर रहे हैं. ये तो सभी जानते हैं कि पूर्वांचल से लेकर प्रदेश के तमाम जिलों में मुख्तार परिवार की पकड़ रही है. सिर्फ मुसलमान ही नहीं बल्कि हिंदू आबादी का एक वर्ग भी मुख्तार का समर्थक रहा है. इस पूरे घटनाक्रम से पूर्वांचल अधिक प्रभावित दिख रहा है. ऐसे में सपा के साथ ही कांग्रेस व अन्य राजनीतिक दल भी इसको भुनाने में जुट गए हैं और मुख्तार की मौत से सत्तारूढ़ दल के खिलाफ जो आक्रोश मुख्तार के समर्थकों में पैदा हुआ है, उसे बयानबाजी के द्वारा लगातार हवा दे रहे हैं.
पूर्वांचल में मुख्तार की मौत से सहानुभूति के जरिए सियासी जमीं को उर्वर बनाने के लिए सपा ही नहीं वो भी दल शामिल हैं, जो कभी मुख्तार को पसंद नहीं करते थे लेकिन चुनावी माहौल देखकर वो भी इसे भुनाने में जुट गई हैं. मुख्तार की मौत के तुरंत बाद ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव का बयान सामने आया था और बिना मुख्तार का नाम लिए ही उन्होंने जेल में मौत को लेकर सवाल खड़ा किया था. उन्होंने कहा था कि हर हाल में किसी के जीवन की रक्षा करना सरकार का दायित्व होता है. तो दूसरी ओर सपा के ही राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल सिंह यादव ने मुख्तार का नाम भी लिया और पूरे सम्मान के साथ पूर्व विधायक व श्री लगाते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि भी दी थी. यानी जहां अखिलेश ने नाम से लेने से गुरेज किया था तो वहीं शिवपाल ने नाम लेकर पत्ते खोल दिए.
तो वहीं एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने मुख्तार को जेल के अंदर मारने और जांच कराने की मांग तक कर दी थी. तो वहीं कांग्रेस महासचिव अनिल यादव ने मुख्तार की मौत को सांस्थानिक हत्या तक कहते हुए बड़ा आरोप लगाया था. तो वहीं योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री और सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने भी मुख्तार अंसारी को गरीबों का मसीहा कहते हुए बयान दिया था जबकि वह एनडीए गठबंधन में शामिल हो चुके हैं. तो वहीं नई पार्टी का गठन कर चुके स्वामी प्रसाद मौर्य ने मुख्तार के घर जाकर शोक संवेदना तक व्यक्त करने की बात कही थी. इन सभी नेताओं के बयान के बाद से ही यूपी की सियासत को एक अलग ही दिशा मिलती दिखाई दे रही है. ध्रुवीकरण की वजह से इसके नुकसान की भी आशंका कम नहीं है.
भले ही मुख्तार और उनके परिवार की राजनीतिक पकड़ लोगों को केवल गाजीपुर, मऊ औऱ आजमगढ़ सहित पूर्वांचल के कुछ जिलों तक ही दिखाई देती हो लेकिन जानकार कहते हैं कि यह परिवार पूरे प्रदेश के तमाम जिलों से किसी न किसी तरह से पुरानी पकड़ रखे है. मुख्तार के दादा कांग्रेस के अध्यक्ष थे और पिता कम्युनिट के नेता तो वहीं मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी ने सियासी पारी की शुरुआत कम्युनिस्ट पार्टी से की और मुसलमानों के साथ ही उन्होंने पिछड़े, दलितों के लिए भी काम किया.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो मुख्तार की मौत के बाद अंसारी परिवार को लेकर भी लोगों में सहानुभूति बढ़ गई है, जिसका फायदा आने वाले चुनाव में भी मिलना तय माना जा रहा है. बसपा सांसद अफजाल अंसारी को इस बार सपा ने गाजीपुर से टिकट दिया है. तो वहीं यूपी की सियासी नब्ज पर पकड़ रखने वाले जानकार कहते हैं कि सपा के एमवाई और बसपा की सोशल इंजीनियरिंग से पहले ही इस परिवार ने नब्ज को पकड़ा और अपनी सोशल इंजीनियरिंग के जरिए जनता के बीच पैठ बनाई थी. इसका असर गाजीपुर में साफ दिखता है क्योंकि यहां पर सिर्फ 10 फीसदी मुस्लिम आबादी होने के बाद भी अफजाल पहले विधायक और फिर सांसद बने तो वहीं मऊ में मुख्तार के साथ ही यही हाल रहा. तो वहीं न्यायिक हिरासत में मुख्तार की मौत होने के कारण भी कहीं न कहीं लोग यही मान रहे हैं कि मुख्तार के साथ अन्याय हुआ है तो वहीं परिवार भी बार-बार यही कह रहा है और लगातार जहर देने की बात पर जोर दे रहा है. मुख्तार की मौत के बाद भी लगातार तमाम खबरें सामने आ रही हैं. फिलहाल इसका फायदा किस-किस राजनीतिक दल को मिलता है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन वर्तमान में ये साफ दिखाई दे रहा है कि मुस्लिम समाज के बीच भाजपा सरकार के खिलाफ संदेश गया है, जिसका असर आगामी चुनाव में दिखाई पड़ सकता है.
-भारत एक्सप्रेस
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