Electoral Bond Issue: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (11 मार्च) को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) के विवरण का खुलासा करने के लिए 30 जून तक की मोहलत देने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी और उसे 12 मार्च (मंगलवार) को व्यावसायिक समय समाप्त होने तक यह विवरण प्रस्तुत करने को कहा है.
इसके अलावा शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को 15 मार्च से पहले अपनी वेबसाइट पर एसबीआई द्वारा प्रदान किए गए विवरण प्रकाशित करने का भी निर्देश दिया है. भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘एसबीआई ने अपने आवेदन में कहा है कि मांगी गई जानकारी आसानी से उपलब्ध है. इस प्रकार 30 जून तक समय बढ़ाने की मांग करने वाला एसबीआई का आवेदन खारिज किया जाता है.’
सीजेआई की अगुवाई में पांच जजों की पीठ ने मामले की सुनवाई की, जिसमें सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे.
एसबीआई की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा था, ‘हम जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं और हमें पूरी प्रक्रिया को पलटना पड़ रहा है. एक बैंक के रूप में हमें बताया गया कि यह गोपनीय (Secret) माना जाता है.’
हरीश साल्वे ने बताया कि चुनावी बॉन्ड का विवरण एकत्र करने और उनका मिलान करने के लिए अधिक समय की आवश्यकता है, क्योंकि जानकारी बैंक की शाखाओं में दो अलग-अलग कक्षों में रखी गई थी. साल्वे ने यह भी कहा कि अगर मिलान प्रक्रिया न करनी हो तो एसबीआई तीन सप्ताह के भीतर इस प्रक्रिया को पूरा कर सकता है.
इस पर पीठ ने कहा कि उसने एसबीआई को चंदा देने वालों और चंदा प्राप्त करने वालों के विवरण का अन्य जानकारी से मिलान करने का निर्देश नहीं दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि एसबीआई को सिर्फ सीलबंद लिफाफा खोलना है, विवरण एकत्र करना है और चुनाव आयोग को इसकी जानकारी दे देनी है.
पीठ ने पूछा कि आखिर एसबीआई को आंकड़े जुटाने में कहां दिक्कत आ रही है. पीठ ने कहा, ‘पिछले 26 दिनों में आपने क्या कदम उठाए हैं? आपके आवेदन में इस बारे में कुछ नहीं बताया गया है.’ इस पर एसबीआई ने कहा कि हमें आंकड़े देने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन थोड़ा वक्त दे दिया जाए.
बीते 15 फरवरी को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था, जिसने गुमनाम राजनीतिक फंडिंग की अनुमति दी थी. अदालत ने इसे ‘असंवैधानिक’ बताया था. शीर्ष अदालत ने कहा था कि गुमनाम चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है. इसके अलावा शीर्ष अदालत ने चुनावी बॉन्ड जारी करने पर भी रोक लगा दी थी.
चुनावी बॉन्ड योजना 2018 की शुरुआत में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाई गई थी. इसके माध्यम से भारत में कंपनियां और व्यक्ति राजनीतिक दलों को गुमनाम दान दे सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को 6 मार्च तक दानकर्ताओं, उनके द्वारा दान की गई राशि और प्राप्तकर्ताओं का विवरण चुनाव को देने के लिए कहा था. साथ ही चुनाव आयोग को 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर जानकारी प्रकाशित करने के लिए कहा गया था.
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-भारत एक्सप्रेस
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