Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कोई विदेशी नागरिक संविधान के अनुच्छेद 19(1)(e)के तहत भारत में रहने या बसने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता. जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस मनोज जैन की खंडपीठ ने कहा कि विदेशियों या संदिग्ध विदेशी के मौलिक अधिकार केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत घोषित जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार तक ही सीमित हैं. पीठ ने कहा हम यह भी नोट कर सकते हैं कि विदेशी नागरिक यह दावा नहीं कर सकते कि उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ई) के अनुसार भारत में निवास करने और बसने का अधिकार है.
पीठ ने नूरेनबर्ग बनाम प्रेसीडेंसी जेल, कोलकाता के हंस मुलर मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1955 के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि विदेशियों को निष्कासित करने की भारत सरकार की शक्ति पूर्ण और असीमित है और इसमें कोई कमी नहीं है. संविधान में इस तरह के विवेक को सीमित करने वाला प्रावधान है. अदालत ने अज़ल चकमा नाम के एक संदिग्ध बांग्लादेशी नागरिक के परिवार द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया है. इस बांग्लादेशी परिवार को पिछले साल अक्टूबर में दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पकड़ा गया था.
यह आरोप लगाया गया था कि उसने पहले बांग्लादेशी पासपोर्ट पर भारत की यात्रा की थी, लेकिन बाद में धोखाधड़ी से भारतीय दस्तावेज (पासपोर्ट सहित) प्राप्त कर लिए. बाद में भारतीय अधिकारियों ने पासपोर्ट रद्द कर दिया.अदालत को बताया गया कि चकमा की गतिविधियों को 1946 के विदेशी अधिनियम की धारा 3 (2) (ई) के साथ 1948 के विदेशी नागरिक आदेश की धारा 11 (2) के साथ पठित के तहत प्रतिबंधित किया गया है. पीठ को सूचित किया गया कि बांग्लादेश के उच्चायोग ने चकमा की स्वदेश वापसी के लिए पहले ही यात्रा परमिट दस्तावेज जारी कर दिए हैं और जैसे ही अधिकारियों को बांग्लादेश के दूतावास से उनके लिए पुष्टिकृत हवाई टिकट मिल जाएगा, उन्हें निर्वासित कर दिया जाएगा.
बताते चलें कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(e) के अनुसार, भारत के प्रत्येक नागरिक को ‘भारत में किसी भी भाग में निवास करने और बसने का अधिकार है. ‘ इस प्रावधान का उद्देश्य देश भर के भीतर या किसी विशिष्ट हिस्से में आंतरिक बाधाओं को दूर करना है. यह अधिकार अनुच्छेद 19 के खंड (5) में उल्लिखित उचित प्रतिबंधों के अधीन भी है.
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