सांसदी बहाल होने के बाद पहली बार राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड का दौरा करने पहुंचे. संसद सदस्यता वापस मिलने के बाद राहुल गांधी पहली बार अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड की जनता से रूबरू हो रहे हैं इसके सियासी मायने समझने जैसे हैं. दक्षिण की राजनीति में जहां बीजेपी अपनी ताकत बढ़ाने का प्रयास कर रही है वहीं कांग्रेस ने भी अपना पूरा जोर दक्षिण में ही लगा दिया है. विपक्षी एकजुटता के जितने भी बड़े चेहरे हैं वो उत्तर भारत के अपने अपने राज्यों में काफी मजबूत हैं. कांग्रेस यहां सीटों पर समझौता करती दिखाई देगी, चाहे बंगाल-बिहार हो या महाराष्ट्र पंजाब. अब कांग्रेस का ध्यान बीजेपी से सीधी टक्कर वाले राज्यों के साथ ही दक्षिण के राज्यों पर है.
मोदी सरनेम मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद राहुल को लोकसभा सदस्यता वापस मिली और कांग्रेस इस सदस्यता जाने से वापस मिलने तक के इस पूरे प्रकरण को सहानुभूति के तौर पर भुनाने का प्रयास कर रही है. भारत जोड़ो यात्रा की शुरूआत भी इसी सोच के साथ दक्षिण से की गई थी. ये सोच सही भी साबित हुई क्योंकि न सिर्फ भारत जोड़ो यात्रा को सफलता मिली बल्कि इसका आंशिक असर कर्नाटक-हिमाचल जैसे चुनावों में भी दिखा. आपके जेहन में गुजरात भी आ सकता है लेकिन वहां आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का आपस में लड़ना बीजेपी की ऐतिहासिक जीत का एक बड़ा फैक्टर दिखाई पड़ता है. यानी जहां कमजोर हो वहां मिलकर लड़ो और जहां बीजेपी मजबूत नहीं वहां अपनी जमीन को और मजबूत करो, यही कांग्रेस की स्पष्ट रणनीति दिखाई पड़ती है.
राहुल गांधी केरल और दक्षिण के अन्य राज्यों में लोकप्रिय भी दिखाई पड़ते हैं. इसकी बानगी आपने उनकी यात्रा में उमड़ी भीड़ के तौर पर देखी और जब वो वायनाड के लिए निकले तो कोयंबटूर हवाई अड्डे पर उनकी मौजूदगी से बने माहौल से भी दिखी. राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड के दो दिवसीय दौरे पर हैं लेकिन ये संदेश पूरे दक्षिण में देने का प्रयास किया जा रहा है कि राहुल अब वो नहीं रहे जो 2019 में थे. सतत हार के बाद हताशा उन पर हावी हुई थी लेकिन उनका अंदाज और तेवर अब बहुत बदले दिखाई पड़ते हैं. बीजेपी का उनपर लगातार हमलावर रहना भी ये दिखाता है कि उन्हें हल्के में नहीं लिया जा रहा है.
दूसरी तरफ पीएम मोदी की लोकप्रियता उत्तर भारत में तो बरकरार दिखती ही हैं, वो लगातार दक्षिण को साधने के प्रयास भी कर रहे हैं. उनके दक्षिण की किसी सीट से चुनाव लड़ने के भी चर्चे सुनाई पड़ते हैं. इसमें बहुत आश्चर्य इसलिए भी नहीं हैं क्योंकि बीजेपी के लिए 2019 का प्रदर्शन दोहराना इतना आसान नहीं है. मंदिर, धारा 370 और यूसीसी पर बहस जैसे मुद्दों को सफलता के तौर पर रखा गया है. अब चुनौती रहती है नए मुद्दों की और साथ ही एंटी इनकंबेंसी से निपटने की भी. ये तो साफ है कि सरकार के 10 साल होने के बाद कांग्रेस की कमियों के बजाय बीजेपी को अपनी उपलब्धियों और पूरे किए गए वादों पर ज्यादा केंद्रित रहना होगा.
नई संसद में सेंगोल का आना हो या पीएम की वेशभूषा पर दक्षिण की छाप ये सभी बीजेपी के भी दक्षिण में जमीन मजबूत करने के प्रयास दिखते हैं. इसकी आवश्यकता ही इसलिए पड़ी है क्योंकि अब सिर्फ उत्तर भारत की सीटों से काम नहीं चलेगा. यदि सचमुच विपक्षी एकजुटता का मंच इंडिया 300 सीटों पर भी एक उम्मीदवार उतारने पर राजी हो जाता है तो ये मुकाबला बहुत दिलचस्प हो सकता है. वहीं दक्षिण में यदि अपेक्षित सफलता नहीं मिलती है तब भी सत्ताधारी दल की चुनौतियां बड़ सकती है.
वायनाड की इस यात्रा को राहुल और कांग्रेस के पावर शो की तरह देखा जा रहा है. राहुल को मिली सजा का मुद्दा कांग्रेस के काम आ सकता है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अधिकतम सजा पर जो सवाल खड़े करते हुए राहुल की दोषसिद्धि पर जो रोक लगाई उसने इस पूरे मामले को कांग्रेस के नरेटिव की तरफ मोड़ दिया. कांग्रेस कहती रही कि जानबूझकर सजा को ज्यादा रखा गया क्योंकि असली मकसद राहुल को चुनाव लड़ने से रोकना था. लिहाजा अब कांग्रेस न सिर्फ दक्षिण बल्कि अन्य राज्यों में भी इसे भुनाएगी.
7 अगस्त को राहुल गांधी की सदस्यता बहाल बहाल हुई थी. मोदी सरनेम पर टिप्पणी के बाद राहुल की मुश्किल बढ़ी लेकिन उनके तेवर और तल्ख हो गए हैं जो सदन में उनके भाषण के दौरान भी देखने सुनने को मिली. वो पीएम के खिलाफ कड़े शब्दों का फिर इस्तेमाल करते दिखाई दिए. स्पष्ट है आने वाले दिनों में वार पलटवार और तीखे होने वाले हैं.
राहुल का वायनाड दौरा महज शक्ति प्रदर्शन न होकर कार्यकर्ता में जोश भरने का एक प्रयास भी है. यही वजह है कि केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष वीटी सिद्दीकी ने कहा, “हम उनके लिए गर्मजोशी से स्वागत की व्यवस्था करने जा रहे हैं और तैयारियां शुरू हो चुकी हैं.” जिला कांग्रेस कमेटी की बैठक में भी वो शामिल होंगे. सांसदी के साथ ही बंगला वापसी को भी कांग्रेस भुनाने जा रही है. राहुल गांधी को 12 तुगलक लेन बंगला भी फिर से आवंटित किया गया है. राहुल गांधी को दिल्ली में एक सांसद के रूप में बंगला आवंटित करने के लिए एस्टेट कार्यालय से आधिकारिक पुष्टि मिल गई है. इसे भी आगामी दिनों में चुनावी मुद्दा बनाया जा सकता है. कुल मिलाकर आने वाले दिनों चुनावी घमासान जबरदस्त तरीके से देखने को मिलेगा और आगामी पांच राज्यों में दोनों ही पार्टियों का प्रदर्शन बहुत महत्वपूर्ण रहने वाला है.
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