दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी में शुद्ध दूध की आपूर्ति करने एवं मवेशियों को दिए जाने वाले नकली हार्मोन के इस्तेमाल को रोकने में विफल रहने पर दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी), दिल्ली पुलिस और भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को फटकार लगाई है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन एवं न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने कहा कि सरकारी अधिकारियों ने राजधानी में चल रही डेयरियों की स्वच्छता एवं सफाई से संबंधित दिशा-निर्देशों को पालन सुनिश्चित कराने के लिए कुछ नहीं किया है.
पीठ ने इसके बाद मुख्य सचिव से सभी डेयरियों के पास अनिवार्य लाइसेंस होने एवं मवेशियों के कचरे न खाने की योजना के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है. उस रिपोर्ट में सरकार से गाजीपुर और भलस्वा के लैंडफिल साइटों के पास की डेयरियों से निकलने वाले दूध को दूषित न होने से बचाने के लिए उठाए जाने वाले कदम एवं ऑक्सीटोसिन के स्त्रोत का पता लगाने के लिए उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी देने को कहा है.
इसके अलावा सरकार से मदनपुर खादर डेयरी को लेकर दिशा-निर्देश जारी करने को कहा है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वहां वैधानिक ढांचे का अनुपालन हो रहा है या नहीं. इसके बाद उसे पायलट परियोजना के रूप में माने जाने की बात कही है. पीठ ने इसके बाद उसने एफएसएसएआई को लैंडफिल साइटों के पास के डेयरियों के दूध और अन्य उत्पादों की जांच बढ़ाने का आदेश दिया है. उसने इस मामले की सुनवाई 27 मई के लिए स्थगित कर दी.
पीठ ने सरकार के मुख्य सचिव से कहा कि उन्हें डेयरियों का दौरा करने के लिए कुछ समय निकालना चाहिए. इससे उनकोफीडबैक मिलेगा. उसने कहा कि अधिकारी जमीनी स्तर पर नहीं जा रहे हैं और उन्हें पता ही नहीं है कि क्या हो रहा है. मुझे यह भी नहीं पता कि इन क्षेत्रों में उनके प्रवेश की अनुमति है या नहीं. कृपया इन स्थानों का दौरा करें. एक बार जब आप स्पष्ट संदेश भेज देंगे, तो आपके अधिकारी खुद ही दौरा करना शुरू कर देंगे.
पीठ ने डेयरी कॉलोनियों में रखे गए मवेशियों की संख्या के बारे में सटीक आंकड़े देने में सरकार की विफलता पर भी नाराजगी व्यक्त की. उसने कहा कि दिल्ली सरकार के आंकड़े बताते हैं कि नौ डेयरी कॉलोनियों में लगभग 30 हजार मवेशी हैं, जबकि केंद्र सरकार के पशुपालन विभाग की एक रिपोर्ट से पता चला है कि यह संख्या तीन लाख से अधिक है. पीठ ने टिप्पणी की कि वह यह बर्दाश्त नहीं करेगा कि मवेशी लैंडफिल साइटों के पास खतरनाक कचरा खाएं और उनका दूध बच्चों को पिलाया जाए या मिठाई और चॉकलेट बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाए.
आज प्रशासन ने आंखें मूंद ली हैं, जैसे कि डेयरियां मौजूद ही नहीं है. पीठ ने कहा कि मवेशियों को दूसरी मंजिल पर ले जाया जाता है और उसे नीचे नहीं लाया जाता है. इस तरह की क्रूरता का कल्पना कीजिए. यह भी कल्पना कीजिए कि वे कितने कचरे और मलमूत्र के बीच रहते हैं. ऑक्सीटोसिन एक प्रतिबंधित दवा है, लेकिन यह इन डेयरी कॉलोनियों में बड़े पैमाने पर पाई जाती है. कृपया अपने अधिकारियों से पूछें कि उन्होंने क्या किया है? इन अधिकारियों को वेतन क्यों मिल रहा है? जिम्मेदारी तय करने की जरूरत है.
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