आपने माफियाओं को मकान या ज़मीन क़ब्ज़ा करते देखा या सुना होगा, मगर आज जो हम आपको बतायेंगे उसे देखकर आप हैरान हो जाएँगे, क्योंकि मामला ही कुछ ऐसा है. ये प्रकरण किसी प्राइवेट संस्था या दबंगों से नहीं बल्कि एक ऐसी सरकारी संस्था से जुड़ा है जो लोगों का घर बसाने और चलाने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता रहा है. मगर यहां पूरा मामला ही एक बैंक के कथित कब्जे का है. हम बात कर रहे हैं बहराइच के एक सरकारी बैंक यानी इंडियन बैंक की शाखा की, जिस पर आरोप है कि उसके अधिकारियों और कर्मचारियों ने एक बुजुर्ग के मकान पर कब्जा कर रखा है.
कब्जे की ये कहानी शुरू होती है सितंबर 2001 से. जब मकान स्वामी किरण सिंह से इंडियन बैंक ने तय शुदा रक़म के मकान किराए पर लिया और बैंक खोलकर रूटीन वर्क शुरू कर दिया. वहीं मकान मालिक ये सोचकर खुश होता रहा कि उसके जीवन यापन का एक अच्छा साधन मिल गया. और उसके परिवार को अब पैसे की कोई कमी नहीं होगी. लेकिन उसे क्या पता था की जिस इन्डियन बैंक को लेकर उसके ज़ेहन में एक पॉजिटिव ख़याल रहता था उसे वहीं से इतना बड़ा धोखा मिल जाएगा. दो या तीन महीने किराया देने के बाद से बैंक ने बेसमेंट का किराया देना ही बंद कर दिया.
जब भी मकान मालिक किराए की बात करता इंडियन बैंक के अधिकारी उसे नया सब्ज़ बाग दिखा देते. कभी रिज़र्व बैंक के नाम पर तो कभी मुद्रा कोष के नाम पर मकान मालिक की भावनाओं से साथ खेलते रहे और जानबूझकर परेशान करते रहे. बार बार प्रयास करने के बावजूद मकान मालिक को चक्कर पर चक्कर कटवाते रहे. आरोप है कि बैंक मकान मालिक के हक़ को लगातार मारता रहा. आरोप है कि बैंक के अधिकारियों ने मकान मालिक को किराया तो नहीं दिया, मगर उल्टे कर्ज़ के जाल में ऐसा उलझा दिया कि मकान मालिक को अपना घर तक बेचना पड़ा. वो घर से बेघर हो गया. ख़ुद का मकान होने के बावजूद किराए पर रहने को मज़बूर होना पड़ा मगर बैंक कर्मियों को शर्म नहीं आई.
बैंक बुजुर्ग मकान मालिक को लगातार ठेंगा दिखाता रहा. थक हार कर उन्होंने एग्रीमेंट खत्म होने के बाद बैंक को मकान ख़ाली करने को कहा. मगर बैंक के अधिकारी उनकी मकान पर कुंडली मार कर बैठ गए. मकान मालिक ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिस बैंक को वो किराए पर मकान दे रहा है वो उनकी ही मकान पर कथित तौर पर कब्ज़ा कर लेगा. दिसंबर 2022 में एग्रीमेंट खत्म होने से लेकर अब तक अपना मकान ख़ाली कराने को लेकर दर -दर की ठोकरें खा रहा है. कभी बहराइच तो कभी लखनऊ तो कभी दिल्ली के चक्कर लगा रहा है मगर बैंक मकान छोड़ने को तैयार नहीं है. नीचे से लेकर ऊपर तक हर जगह मकान मालिक अपनी गुहार लगाता रहा मगर हालात ढाक के तीन पात ही रहे.
मकान मालिक ने जबरन कब्जा हटाने के लिए ,एजीएम रवींद्र सिंह,रीजनल मैनेजर डीपी मिश्रा, जनरल मैनेजर श्रवण कुमार, जनरल मैनेजर लखनऊ पंकज त्रिपाठी, एक्जीकेटिव डायरेक्टर इमरान सिद्दीकी, बैंक के तत्कालीन सीएमडी राकेश सेठी को लेटर लिखकर और मिलकर गुहार लगाई मगर मगरूर अधिकारी केवल आश्वासन देते रहे.
बैंक की कथित दादागिरी और बेहद ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैये ने मकान मालिक को बुरी तरह तोड़ दिया है. आंखों में नमी और चेहरे पर चिंता की लकीरें बताती हैं कि ये किस हद तक परेशान हैं. बैंक अधिकारियों से अब इनको उम्मीद नहीं है. थक हार कर अब मकान मालिक ने इंडियन बैंक के सीएमडी को, राज्यमंत्री भगवत करार को,वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन को, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को
पत्र लिखकर अपने मकान को बैंक के कथित जबरन क़ब्ज़े से मुक्त कराने की गुहार लगाई है. इस पूरे मामले पर भारत एक्सप्रेस की टीम ने बैंक प्रशासन से बात कर उनका पक्ष जानना चाहा, मगर बैंक का कोई भी अधिकारी कैमरे के सामने आने को तैयार ही नहीं हुआ. इंसाफ़ की आस में बुजुर्ग मकान मालिक बैंक अधिकारियों के चक्कर काट काट रहा है मगर बैंक अधिकारी सुनने को तैयार नहीं हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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