UP Politics: जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव-2024 पास आता जा रहा है. गठबंधन को लेकर चर्चा भी तेज हो रही है. तो वहीं राजनीतिक दल खुद को मजूबत करने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं और तैयारी को लेकर कमर कस रहे हैं. इसी बीच राजनीतिक काना-फूसी के बीच बात निकल कर सामने आ रही है कि रालोद प्रमुख जयंत चौधरी भी भाजपा के मोहपाश में फंस गए हैं और उनके एनडीए खेमे में शामिल होने की सम्भावना जताई जा रही है. राजनीतिक पंडित कहते हैं कि अगर ऐसा होता है तो छोटे चौधरी को बड़ी सियासी छलांग तो मिलेगी ही साथ ही पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में कमल और भी मजबूत होगा.
मीडिया सूत्रों की मानें तो छोटे चौधरी यूपी वेस्ट में कुछ न कुछ खिचड़ी पका रहे हैं. इसीलिए वह भाजपा सरकार के खिलाफ पटना में होने वाली गठबंधन एकता की बैठक के लिए नहीं गए और न ही कोई विपरीत टिप्पणी की तो वहीं मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री रामदास आठवले और राज्य सरकार के मंत्री डा. संजय निषाद पहले ही इस बारे में भविष्यवाणी कर चुके हैं और कह चुके हैं कि चौधरी एनडीए में जाएंगे. अगर राजनीतिक जानकारों की मानें तो दावा है कि नई दिल्ली में इस गठबंधन की पिच तैयार हो चुकी है और अब बस खुलकर बयान देने की जरूरत है. मालूम हो कि पश्चिम उप्र की राजनीति में जाट फैक्टर काफी अहम है और इसे साधने के लिए हर राजनीतिक दल छोटे चौधरी का साथ चाहता है.
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बता दें कि हाल ही में नई दिल्ली में भाजपा के शीर्ष नेता से जयंत की दो घंटे लंबी मुलाकात की खबर सामने आई थी. इसी के बाद से पाला बदलने की अटकलें तेज हो गई हैं. तो वहीं तीन दिन पहले सावन में जयंत ने बागपत के पुरा महादेव मंदिर में जलाभिषेक किया और इस मंदिर को आस्था की सबसे बड़ी ताकत बताया था. इसी के साथ भाजपा पर किए गए सवालों पर उन्होंने कुछ भी नहीं बोला था. हालांकि इस मौके पर उन्होंने हल्के-फुल्के मूड में लोगों से यह भी पूछा कि ‘क्या आप चाहते हैं कि मैं नया सूट सिलवा लूं’. उनकी इस बात को मोदी कैबिनेट से जुड़ने की सम्भावना से जोड़कर देखा जा रहा है. हालांकि इस सम्बंध में उन्होंने सफाई देते हुए कहा था कि,‘वो चवन्नी नहीं जो पलट जाएंगे’, लेकिन बता दें कि राजनीति में ऐसे बयानों को राजनीति में ऐसे बयानों को ज्यादा कारगर नहीं माना जाता है.
राजनीतिक पंडितों की मानें तो अगर जयंत चौधरी एनडीए खेमे में शामिल होते हैं तो वो गठबंधन का अहम जाट चेहरा होंगे. उनको टीम मोदी में जगह मिल सकती है. तो वहीं बीजेपी को पश्चिम उप्र से लेकर पड़ोसी राज्यों हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में जाट एवं किसान वोटों का लाभ मिल सकता है. हालांकि राजनीति में ये भी चर्चा है कि, जयंत अपने नए गठबंधन में दलित नेता चंद्रशेखर आजाद रावण को भी साथ रखेंगे.
बता दें कि उत्तर प्रदेश में मोदी लहर लगातार जारी है और इसी लहर में 2014, 2017 एवं 2019 लोकसभा चुनाव में रालोद मुखिया अजित सिंह एवं जयन्त को शिकस्त का सामना करना पड़ा फिर भी जाट वोटरों में उनके प्रति आकर्षण बना रहा और फिर मोदी और योगी की करिश्माई जोड़ी के बीच वर्ष 2018 में हुए कैराना लोकसभा उपचुनाव एवं 2023 खतौली विधानसभा उपचुनाव में रालोद ने भाजपा को हरा दिया और ये स्पष्ट कर दिया कि अभी उनका जलवा कायम है.
बता दें कि 2022 विधानसभा चुनाव में जयन्त चौधरी ने सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ गठबंधन किया था. नतीजतन पश्चिम यूपी में आठ सीटें जीत ली. जयंत राज्यसभा सदस्य हैं तो वहीं उनकी पार्टी रालोद के पास यूपी में आठ व राजस्थान में एक विधायक है, लेकिन पंचायत चुनावों के बाद से अखिलेश और जयंत में दरार देखने को मिल रही है. इसका पहला सबूत तो नीतीश कुमार की अगुआई में पटना में भाजपा के खिलाफ हुई बैठक में वो शामिल होने नहीं पहुंचे, जहां अखिलेश मौजूद थे तो वहीं अखिलेश यादव के जन्म दिन पर जयंत का कोई ट्वीट भी देखने को नहीं मिला. हालांकि पिछले दिनों उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया लेकिन फिर भी वह कांग्रेस पर पूरी तरह से भरोसा नहीं कर पा रहे हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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