न्यायिक न्यायाधिकरण (Judicial Tribunal) ने स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत लगाए गए प्रतिबंध को जारी रखा है. न्यायाधिकरण ने कहा कि संगठन ने इस्लाम के लिए ‘जिहाद’ के अपने उद्देश्य को नहीं छोड़ा है और यह भारत में इस्लामी शासन की स्थापना के लिए काम करना जारी रखेगा.
स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया पर केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगाया था. इस साल की शुरुआत में केंद्र ने सिमी पर प्रतिबंध को पांच साल को बढ़ाने का फैसला किया था.
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव की सदस्यता वाले न्यायाधिकरण का गठन गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत किया गया था, जब केंद्र ने 29 जनवरी 2024 को सिमी पर प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ाने का फैसला किया था. न्यायाधिकरण का गठन 16 फरवरी को यह निर्णय करने के लिए किया गया था कि सिमी को गैरकानूनी संगठन घोषित करने के लिए पर्याप्त कारण हैं या नहीं.
एक आधिकारिक अधिसूचना में कहा गया है कि 24 जुलाई को न्यायिक न्यायाधिकरण ने यूएपीए की धारा 4 की उपधारा (3) की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सिमी पर प्रतिबंध की घोषणा की पुष्टि की और एक आदेश पारित किया.
इस साल जनवरी में प्रतिबंध बढ़ाने को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा था कि सिमी आतंकवाद को बढ़ावा देने, शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने में शामिल है. इससे भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और अखंडता को खतरा है.
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इस संबंध में जारी अधिसूचना में कहा गया है कि सिमी का घोषित उद्देश्य इस्लाम के लिए ‘जिहाद’ (धार्मिक युद्ध), राष्ट्रवाद का विनाश और इस्लामी शासन की स्थापना, इस्लाम के प्रचार में छात्रों और युवाओं का उपयोग करना और ‘जिहाद’ के लिए समर्थन प्राप्त करना है.
इसमें कहा गया है कि सिमी ‘इस्लामी इंकलाब’ के माध्यम से ‘शरीयत’ आधारित इस्लामी शासन के गठन पर भी जोर देती है और यह राष्ट्र, संविधान या धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था में विश्वास नहीं करती है तथा मूर्ति पूजा को पाप मानती है और इसे समाप्त करना इसका पवित्र कर्तव्य है.
सिमी पर प्रतिबंध बढ़ाते हुए सरकार ने कहा था कि यह समूह आतंकवाद को बढ़ावा देने तथा देश में शांति एवं सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने में संलिप्त रहा है. आंध्र प्रदेश, गुजरात, झारखंड, केरल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश जैसे 10 राज्य सरकारों ने यूएपीए के प्रावधानों के तहत सिमी को ‘गैरकानूनी संगठन’ घोषित करने की सिफारिश की है.
सिमी को पहली बार 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान गैरकानूनी घोषित किया गया था और तब से इस पर प्रतिबंध समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा है.
सिमी की स्थापना 25 अप्रैल, 1977 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में युवाओं और छात्रों के एक अग्रणी संगठन के रूप में की गई थी, जो जमात-ए-इस्लामी-हिंद (जेईआईएच) में आस्था रखता था. हालांकि, संगठन ने 1993 में एक प्रस्ताव के माध्यम से खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया.
-भारत एक्सप्रेस
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