Delhi MCD Results: डेढ़ दशक से निगम में काबिज बीजेपी को सीधे मुकाबले में सत्ता से बाहर करने वाली आम आदमी पार्टी की जीत बीजेपी के लिए बड़े झटके से कम नहीं है. लेकिन इस चुनाव में बीजेपी और “आप” के दिग्गज भी अपना वर्चस्व कायम नहीं रख पाए. विभाजित निगमों में भ्रष्टाचार और घटिया प्रबंधन के आरोपों से घिरी बीजेपी आखिरकार डेढ़ दशक से सत्ता में रहने के बावजूद आठ साल पुरानी आम आदमी पार्टी के हाथों शिकस्त खा बैठी. हालांकि निगम के एकीकरण और परिसीमन के बाद बीजेपी नेतृत्व फिर से सत्ता में वापसी के लिए आश्वस्त नजर आ रहा था.
लेकिन सीधे मुकाबले से मुश्किल में उलझी भाजपा अपना किला बचाने में विफल रही. हालांकि कड़े मुकाबले के बावजूद वह 2017 के मुकाबले अपना मत प्रतिशत तीन फीसदी बढ़ाने में सफल रही. लेकिन कांग्रेस के वोटों में आई करीब दस फीसदी की कमी ने उसे “आप” से सीधा मुकाबला करने के लिए मजबूर कर दिया. नतीजा यह रहा कि विधानसभा जीतने का ख्वाब देख रही भाजपा निगम की सत्ता से भी बाहर हो गई.
देश की राजनीतिक मोर्चाबंदी में भाजपा आज भी सीधे मुकाबले में चुनावी रण जीतने की स्थिति में नजर नहीं आती. दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भी यही फैक्टर भाजपा की हार का कारण बन गया. 2017 में तीसरी बार सत्ता हासिल करने वाली भाजपा ने तब करीब 36 फीसदी वोट हासिल किए थे. जबकि “आप” और कांग्रेस क्रमशः 26 और 21 फीसदी वोट ही हासिल कर पाए थे. इसी त्रिकोणीय मुकाबले ने भाजपा को बढ़त दिलाई और वह 181 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सत्ता में काबिज हो गई.
कांग्रेस विहीन भारत का सपना देखनी वाली भाजपा के लिए कांग्रेस की कमजोरी खुद उसके गले की हड्डी बन गई है. क्योंकि लगातार कमजोर हो रही कांग्रेस इस बार दस फीसदी वोट खोकर महज साढ़े ग्यारह प्रतिशत वोटों में ही सिमट गई. हालांकि 2017 के मुकाबले भाजपा का मत प्रतिशत तीन फीसदी ज्यादा रहा, मगर “आप” को मिले वोटों की संख्या पांच साल में 16 फीसदी ज्यादा हो चुकी है. टीम केजरीवाल की इसी बढ़त ने भाजपा का डेढ दशक पुराना किला ध्वस्त कर दिया.
“आप” ने दिल्ली में विधानसभा के बाद निगम में भी झाड़ू चलाकर इतिहास लिख दिया है. लेकिन उसके दिग्गज अपने ही किलों में परास्त नजर आए. तिहाड़ में बंद उसके स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन आने निर्वाचन क्षेत्र शकूरपुर की तीनों सीट गंवा बैठे. यही हाल परिवहन मंत्री कैलाश गहलौत के निर्वाचन क्षेत्र नजफगढ़ में हुआ. यहां चार में से तीन सीटो पर भाजपा तो एक पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की. जबकि उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के निर्वाचन क्षेत्र पटपड़गंज में भी भाजपा ने चार में से तीन सीटो पर अपना परचम फहरा दिया.
पर्यावरण मंत्री गोपाल राय के निर्वाचन क्षेत्र बाबरपुर में भी चार में से दो सीटो पर बीजेपी और एक सीट पर कांग्रेस ने जीत हासिल कर ली. “आप” प्रवक्ता आतिशी के निर्वाचन क्षेत्र कालकाजी में तीनों सीटो पर भाजपा ने जीत हासिल कर ली तो ओखला से “आप” के चर्चित विधायक अमानतुल्ला खान के निर्वाचन क्षेत्र की पांच में से दो सीटो पर भाजपा तो दो सीट पर कांग्रेस जीत गई.
हैरानी की बात यह है कि दिल्ली की राजनीति में भाजपा के दी सबसे बड़े दिग्गज भी कोई जलवा नहीं दिखा पाए. दिल्ली भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता अपने ग्रह क्षेत्र पटेल नगर में हाल ही में मंत्री बने “आप” विधायक राजकुमार आनंद के हाथों बुरी शिकस्त खा बैठ. दिल्ली नगर निगम में कमल खिलाने का दावा कर रहे गुप्ता इस क्षेत्र की चार में एक भी सीट नहीं जीता पाए. कुछ ऐसा ही हाल दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और बदरपुर से भाजपा विधायक रामबीर सिंह विधूड़ी के निर्वाचन क्षेत्र में हुआ. यहां भाजपा को पांच में से महज एक ही सीट पर सफलता मिली. बाकी सीटो पर उसे करारी हार का सामना करना पड़ा.
“आप” की आंधी के बावजूद 2015 और 2020 में भाजपा के टिकट पर जीतने वाले बिजेंद्र गुप्ता इस बार भी अपना जलवा कायम रखने में सफल हुए. उनके निर्वाचन क्षेत्र की तीनों सीटो पर भाजपा ने जीत हासिल की है. करावल नगर से भाजपा विधायक मोहन सिंह बिष्ट भी पांच में से चार सीटो पर भाजपा उम्मीदवारों को जिताने में सफल रहे. इसी तरह लक्ष्मी नगर से अभय वर्मा और रोहताश नगर में जितेन्द्र महाजन भी पार्टी प्रत्याशियों को चार में से तीन-तीन सीट जिताने में सफल रहे.
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