भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में संसद एक ऐसा मंच है, जहां सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच वैचारिक मतभेद खुलकर सामने आते हैं. हालांकि, कई बार ये मतभेद संसद की कार्यवाही को बाधित भी करते हैं. हाल ही में, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा बुलाई गई फ्लोर लीडर्स की बैठक में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सहमति बनी, जिससे संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने का रास्ता साफ हुआ है.
पिछले कुछ दिनों से संसद में गतिरोध का प्रमुख कारण अडानी समूह से जुड़े मुद्दे पर विपक्ष, खासकर कांग्रेस, की आक्रामकता थी. इंडिया गठबंधन में शामिल अन्य दल, जैसे टीएमसी और सपा का कांग्रेस को ज्यादा साथ नहीं मिला है
टीएमसी और सपा दलों के मुताबिक अडानी के अलावा अन्य ज्वलंत मुद्दों, जैसे
पर भी चर्चा की मांग की. लेकिन कांग्रेस का केवल अडानी मामले पर जोर देना, इन सहयोगी दलों के साथ मतभेद को बढ़ा रहा था.
सरकार की रणनीति: सरकार ने इस मौके का लाभ उठाते हुए टीएमसी और सपा के मुद्दों पर चर्चा के लिए सहमति दी. इससे विपक्षी गठबंधन में विभाजन को और स्पष्ट किया गया.
भारत के संविधान को अपनाए हुए 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर, सरकार और विपक्ष के बीच इस पर चर्चा की सहमति एक सकारात्मक संकेत है.
लोकसभा: 13-14 दिसंबर
राज्यसभा: 16-17 दिसंबर
संविधान पर चर्चा के इस प्रस्ताव को मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने स्वीकार किया. इसके तहत कांग्रेस को संसद में अडानी मुद्दे के साथ-साथ अन्य विषयों को उठाने की छूट होगी. वहीं, सरकार इस चर्चा के दौरान बैकफुट पर न दिखने की रणनीति अपनाएगी.
-भारत एक्सप्रेस
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