UP Politics: यूपी में सपा जातिवार जनगणना के मामले पर सदन (विधान मंडल) से लेकर सड़क तक आंदोलन कर रही है. वहीं, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) समेत अन्य विपक्षी दल तथा सत्ता पक्ष के सहयोगी दल इस मांग से सहमत होते हुए भी सपा को ही कठघरे में खड़ा करते नजर आ रहे हैं. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ जातियों के धुव्रीकरण की एक कोशिश है.
लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर संजय गुप्ता ने कहा कि, ‘‘लोकसभा चुनाव आ रहा है और भाजपा एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए इसे तूल देकर जाति के नाम पर भावनाओं को उभारा जा रहा है.’’ इस विषय पर विपक्षी दलों के एकजुट न होने के सवाल पर प्रोफेसर गुप्ता ने कहा, ‘‘जब तक विचारधारा के स्तर पर एकजुटता नहीं होगी, तब तक राजनीतिक स्वार्थ टकराते रहेंगे और यह मुद्दा एक असफल प्रयोग साबित होगा, इसका कोई नतीजा नहीं निकलेगा.’’
पड़ोसी राज्य बिहार में सात जनवरी से जाति आधारित जनगणना की प्रक्रिया शुरू होने पर उत्तर प्रदेश में भी मुख्य विपक्षी पार्टी सपा इस मामले को लेकर सक्रिय हो गयी. एक तरफ सपा ने जाति आधारित जनगणना के लिए विधानसभा में जोरदार मांग की तो वहीं अपनी इस मांग पर बल देने के लिए पहले चरण में राज्य में 24 फरवरी से पांच मार्च तक प्रखंड (ब्लॉक) स्तर पर संगोष्ठी करके अन्य पिछड़ा वर्ग सहित सभी जातियों को जागरूक करने के लिए सपा नेता दौरा कर रहे हैं.
विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा में भाग लेते हुए अखिलेश यादव ने बृहस्पतिवार को कहा था, ‘‘हमने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि अगर सपा के नेतृत्व में सरकार बनी तो तीन माह में जातीय जनगणना होगी. हमारी फिर मांग है कि जातीय जनगणना होनी चाहिए.’’
इससे पहले विधानसभा में प्रश्न काल के दौरान सपा सदस्य डॉक्टर संग्राम यादव ने सरकार से पूछा कि क्या वह बिहार सरकार की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी जातिवार जनगणना करायेगी. सरकार की ओर से इनकार करने पर सपा सदस्यों ने जमकर हंगामा किया और 35 मिनट तक विधानसभा स्थगित रही.
इस बीच, बृहस्पतिवार को बसपा अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने एक बयान जारी कर कहा कि जातिगत जनगणना की वकालत करने वाली सपा के लिए यह बेहतर होता कि इस कार्य को पार्टी अपनी सरकार में ही पूरा करा लेती. मायावती ने सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में एक साथ जातिवार जनगणना की मांग दोहराई है.
सत्तारूढ़ भाजपा के सहयोगी अपना दल (एस) के कार्यकारी अध्यक्ष और राज्य सरकार में प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशीष सिंह पटेल, निषाद पार्टी के नेता एवं राज्य के मत्स्य मंत्री डॉक्टर संजय निषाद और विपक्षी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने अलग-अलग बयानों में जातिवार जनगणना का समर्थन किया है, लेकिन इन सभी नेताओं ने सपा को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि आखिर चार बार सत्ता में रहने के बावजूद सपा ने जातीय जनगणना क्यों नहीं कराई.
हालांकि, अखिलेश यादव ने शुक्रवार को नोएडा में पत्रकारों से कहा, ‘‘इस पर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री क्या कहते हैं, यह सबसे बड़ा सवाल है, छुटभैये नेताओं से इस समस्या का समाधान नहीं होगा.’’ सपा के नेतृत्व में चार बार सरकार बनने पर भी जातीय जनगणना नहीं कराये जाने के आरोप पर यादव ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘आपको याद होगा लोकसभा में उस समय नेताजी (मुलायम सिंह यादव) शरद यादव जी, लालू प्रसाद यादव जी और दक्षिण भारत के नेता कांग्रेस के पास गये थे कि जातीय जनगणना हो.’’
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि जातीय जनगणना की मांग करने से पहले जो सत्ता में रहते हुए जातीय न्याय नहीं कर सका उसे यह मांग करने का नैतिक अधिकार नहीं है. मौर्य ने कहा, ‘‘मैं जातीय जनगणना के समर्थन में हूं लेकिन अखिलेश यादव को इस पर बोलने का अधिकार नहीं है.’’
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भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी लौटन राम निषाद ने बताया कि बिना जातीय जनगणना कराये अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को न्याय नहीं मिलेगा. निषाद ने कहा कि अखिलेश यादव द्वारा जातिवार जनगणना कराए जाने की मांग बिल्कुल जायज है.
-भारत एक्सप्रेस
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