जेलों में सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि कैदी सुधार और कानूनी सहायता के लिए विशेष ध्यान देने की जरूरत है. कोर्ट ने सिर्फ कैदी ही नहीं, बल्कि पीड़ितों के लिए भी दिशा निर्देश जारी किया है. यह फैसला जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के. वी विश्वनाथन और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने यह फैसला दिया है.
कोर्ट ने सुधार गृहों, जेलों और जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा पर भी चिंता जाहिर की है. कोर्ट द्वारा जारी दिशा निर्देशों में कानूनी सहायता की जानकारी, जिसमे हेल्पलाइन नंबर शामिल हो, बस स्टेशनों, पुलिस स्टेशनों, रेलवे स्टेशनों और यहां तक कि हाई कोर्ट के मामले में दस्तावेजों के कवर पर भी प्रमुखता से प्रदर्शित की जानी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने जेलों और सुधारगृहो का नियमित निरीक्षण सुनिश्चित करने की सिफारिशें की है. ताकि कैदियों की स्थिति में सुधार हो सके और उन्हें समाज में पुनः एकीकृत किया जा सके. ये उपाय कैदियों के सुधारात्मक रास्ते पर लाने के उद्देश्य से है. वही सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार के सुधारात्मक प्रयासों की सराहना की है. कोर्ट ने यह दिशा निर्देश मानवाधिकार कार्यकर्ता सुहास चकमा की ओर से दायर याचिका पर दिशा निर्देश जारी किया है.
बता दें कि एक अन्य याचिका पर सुप्रीम कोर्ट इससे पहले अपने फैसले में देश भर की जेलों में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 479 को लागू करने का आदेश दिया था. इसके तहत विचाराधीन कैदियों को लाभ मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पहली बार अपराध करने वाले कैदियों ने अगर एक तिहाई सजा पूरी कर ली है तो उन्हें बॉन्ड पर रिहा कर दिया जाए. भारतीय न्याय संहिता की यह धारा विचाराधीन कैदियों को अधिकतम जेल में रखने के बारे में प्रावधान करती है.
बेंच ने जेलों के सुपरिटेंडेंट से कहा था कि पहली बार के अपराधियों को लेकर वे धारा 479 के तहत काम करना शुरू करें. अगर कैदियों ने एक तिहाई सजा काट ली है तो महीने के भीतर इस दायरे में आने वाले कैदियों को छोड़ा जाए और इसकी रिपोर्ट राज्य या केंद्र सरकार के संबंधित विभाग को दिया जाए. देश भर में एक जुलाई 2024 से नए कानून लागू हुए है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि बीएनएसएस की धारा 479 के तहत जमानत के प्रावधान 1 जुलाई से पहले गिरफ्तार लोगों पर भी लागू माने जाएगा.
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-भारत एक्सप्रेस
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