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कौन थे वरिष्ठ वकील इकबाल छागला जिन्होंने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाई थी आवाज

भारत के प्रमुख वकीलों में से एक इकबाल एम. छागला का रविवार (12 जनवरी) को मुंबई में 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया. वह कुछ दिनों से अस्वस्थ थे. उनका अंतिम संस्कार सोमवार को वर्ली श्मशान घाट में संपन्न हुआ. छागला अपने कानूनी कौशल के साथ-साथ बॉम्बे बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यकाल के लिए भी जाने जाते थे. 1990 के दशक में उन्होंने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई थी.

प्रारंभिक जीवन

इकबाल छागला का जन्म 1939 में मुंबई में हुआ था. वे प्रसिद्ध न्यायाधीश एम. सी. छागला के पुत्र थे. इकबाल छागला ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से इतिहास और कानून में ग्रैजुएशन किया. इसके बाद वे बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत प्रैक्टिस करने के लिए भारत लौटे. 1970 के दशक की बात है जब केवल 39 वर्ष की उम्र में उन्हें सीनियर एडवोकेट का दर्जा दिया गया. बाद में उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बनने का प्रस्ताव दिया गया. हालांकि, उन्होंने इसे स्वीकार करने के बजाय वकालत जारी रखने का फैसला किया. अगर वो यह प्रस्ताव स्वीकार कर लेते, तो शायद भारत के चीफ़ जस्टिस के पद तक पदोन्नत हो सकते थे.

1990 से 1999 के बीच, छागला ने देश के सबसे प्रतिष्ठित वकीलों के संगठनों में से एक बॉम्बे बार एसोसिएशन (BBA) के अध्यक्ष के रूप में तीन कार्यकाल पूरे किए. इसके अलावा, उन्होंने बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी समिति के सदस्य और दिल्ली स्थित नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (NLSA) के सदस्य के रूप में भी सेवाएं दीं. उनके बेटे, जस्टिस रियाज छागला, वर्तमान में बॉम्बे हाई कोर्ट के जज हैं.

भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाई आवाज

1990 के दशक में, जब छागला BBA के अध्यक्ष थे, तब उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाते हुए उनके इस्तीफे की मांग की. इन पांच न्यायाधीशों में से कुछ ने इस्तीफा दिया और कुछ का तबादला कर दिया गया. 1995 में एक बार फिर, उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया, जिसके बाद मुख्य न्यायाधीश को इस्तीफा देना पड़ा.

2020 में, इकबाल छागला ने द इंडियन एक्सप्रेस के लिए एक लेख में इसका खुलासा किया. उन्होंने लिखा, “1990 में, मुझ पर यह जिम्मेदारी आई कि मैं बॉम्बे हाई कोर्ट के पांच मौजूदा न्यायाधीशों के खिलाफ प्रस्ताव पेश करूं, उनकी सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाते हुए और उनके इस्तीफे की मांग करते हुए. मेरे दोस्तों ने मुझे चेतावनी दी थी कि यह स्पष्ट रूप से आपराधिक अवमानना का मामला बन सकता है और उस समय के कानून के अनुसार, औचित्य कोई बचाव नहीं था. मेरा एकमात्र उद्देश्य यह था कि भविष्य की पीढ़ियों के प्रति हमारी जिम्मेदारी है कि हम चुपचाप न बैठें, खासकर जब न्याय के स्रोत को दूषित किया जा रहा हो. प्रस्ताव पास हुए, हालांकि इस पर खूब गरमागरम बहस हुई. एक न्यायाधीश ने इस्तीफा दे दिया, दो का स्थानांतरण किया गया और दो को आगे कोई न्यायिक कार्य नहीं दिया गया.”

छागला ने आगे लिखा कि पांच साल बाद उन्हें एक और प्रस्ताव पेश करना पड़ा, इस बार बॉम्बे हाई कोर्ट के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ, भ्रष्टाचार के आधार पर उनके इस्तीफे की मांग करते हुए. उन्होंने लिखा कि इसके बाद उस न्यायाधीश को इस्तीफा देना पड़ा.

कानूनी पेशे में प्रमुख योगदान

छागला ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी महत्वपूर्ण मामलों में याचिकाएं दायर कीं. उन्होंने उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के मनमाने तबादलों के खिलाफ आवाज उठाई. उनके नेतृत्व में, बॉम्बे बार एसोसिएशन ने कई साहसिक कदम उठाए, जो न्याय के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाते हैं.

1992-93 के मुंबई दंगों के बाद, जब जस्टिस श्रीकृष्ण आयोग की स्थापना हुई, तो छागला ने एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में इस आयोग को सत्य की खोज में मदद करने का नेतृत्व किया. वरिष्ठ अधिवक्ता यूसुफ मुच्छला के अनुसार, “उन्होंने दंगों के पीड़ितों के लिए हलफनामे दाखिल कराए और यह सुनिश्चित किया कि एसोसिएशन उनके लिए न्याय की लड़ाई लड़ सके. यह उनकी धर्मनिरपेक्षता और संविधान के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है.”

बॉम्बे बार के प्रमुख विधि विशेषज्ञों में से एक, छागला सिविल मुकदमों और कंपनी कानून के मामलों में सबसे अधिक मांगे जाने वाले वकीलों में से थे. उन्होंने बॉम्बे बार एसोसिएशन के सदस्य के रूप में लगभग 60 वर्ष पूरे किए और कई हाई-प्रोफाइल मामलों में बॉम्बे हाई कोर्ट के एक प्रतिष्ठित वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में पेश हुए. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थताओं में भी भाग लिया और विदेशी न्यायालयों में चल रहे मामलों पर परामर्श दिया.

-भारत एक्सप्रेस

Prashant Rai

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