कहावत है कि अगर ज़िंदगी में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो शारीरिक चुनौतियां भी आड़े नहीं आतीं. जी हां, यकीन ना हो तो IAS रमेश घोलप से मिलिए. रमेश घोलप पोलियो की बीमारी से पीड़ित थे. बचपन संघर्षों में बीता. पिता रमेश गाड़ियों का पंचर जोड़ते थे. लेकिन उनकी कामयाबी में ना शारीरिक चुनौती बाधा बनी ना गरीबी.
रमेश की कहानी उन लोगों के लिए मिसाल है जो रास्ते की रुकावटों से घबरा जाते हैं. रमेश घोलप का ताल्लुक माहाराष्ट्र के सोलापुर जिले में स्थित महागांव से है. उनके पिता गोरख घोलप गाड़ियों का पंक्चर बनाते थे. बचपन में रमेश के बाएं पैर में पोलियो हो गया था, जिसकी वजह से उन्हें काफी दिक्कत होती थी. रमेश के पिता को शराब की आदत थी. इसी वजह से उनका पूरा परिवार सड़क पर आ चुका था. रमेश की मां विमल देवी सड़कों पर घूम कर चूड़ियां बेचती थीं. रमेश कभी अपनी मां तो कभी पिता के कामों में हाथ बंटाते थे. उनकी मां को सामूहिक ऋण योजना के तहत गाय खरीदने के लिए 18 हजार रुपये ऋण के तौर पर मिले थे. जिस से उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की थी.
रमेश घोलप ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद (UPSC) की तैयारी में जुट गए थे. UPSC के दूसरे अटेंप्ट में उन्हें सफलता मिल गई . साल 2011 की यूपीएससी परीक्षा में उनको 287वीं रैंक आई थी. उसी साल रमेश स्टेट सर्विस परीक्षा में राज्य टॉपर भी बने थे. इस समय आईएएस रमेश घोलप झारखंड कैडर में अपनी सेवा दे रहे हैं. फिलहाल वह झारखंड में स्थित गढ़वा के जिलाधिकारी हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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