Supreme Court on West Bengal Governor: पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 361 के तहत राज्यपाल को उनके कार्यकाल के दौरान आपराधिक कार्यवाही से मिली छूट की समीक्षा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है.
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को इस मामले में सहयोग करने को कहा है. महिला ने अपनी याचिका में पश्चिम बंगाल पुलिस से जांच के आदेश देने की मांग की है.
साथ ही कोर्ट से आग्रह किया है कि वो आर्टिकल 361 के तहत राज्यपाल को आपराधिक कार्यवाही से छूट को लेकर दिशानिर्देश तय करें. कोर्ट ये स्पष्ट करें कि क्या यौन उत्पीड़न के मामले में ऐसी छूट दी जा सकती है, इसको लेकर साफ दिशानिर्देश होने चाहिए ताकि ऐसे पीड़ितों के साथ नाइंसाफी न हो.
महिला ने संविधान के अनुच्छेद 361के तहत राज्यपाल को आपराधिक मामलों में दी गई छूट को चुनौती दी है. याचिका में सवाल किया गया है कि राज्यपाल को दी गई संवैधानिक छूट उनके जीवन के मौलिक अधिकार पर कैसे रोक लग सकती है.
बता दें कि बोस ने जांच के लिए आई राज्य पुलिस को सहयोग देने से साफ इंकार कर दिया है. राज्यपाल के अपने खिलाफ जांच को गैर कानूनी के साथ-साथ संविधान के खिलाफ बताया है. हालांकि कानून के जानकार की माने तो यौन शोषण हो या कोई अन्य आरोपी इसकी तुरंत जांच होनी चाहिए, लेकिन राज्यपाल के खिलाफ न तो कोई मुकदमा चल सकता है और ना ही सजा हो सकती है. हालांकि आर्टिकल 361 में प्रावधान है कि बेहद जरूरी होने पर ही राज्य प्रमुख का बयान लिया जा सकता है, लेकिन इसका ध्यान रखना जरूरी है कि राज्यपाल के गरिमा को ठेस ना पहुचे.
बता दें कि राजभवन में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाली महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि बोस ने राजभवन में दो बार उसके साथ छेड़छाड़ की है. जिसके बाद राज्यपाल के तरफ से कहा गया कि चुनावी माहौल में राजनैतिक फायदा उठाने के लिए यह आरोप लगाया गया है. लिहाजा ममता बनर्जी और उनकी पुलिस को कोई सहयोग नही करेंगे. पुलिस ने इस मामले की जांच के लिए 8 सदस्यीय एक कमेटी का गठन किया है.
-भारत एक्सप्रेस
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