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सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का मुद्दा: परिवार के सदस्यों को जज बनाने की प्रक्रिया पर मंथन, क्या ‘नेपोटिज्म’ को मिला बढ़ावा?

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम वर्तमान में इस बात पर विचार कर रहा है कि क्या यह उचित है कि किसी मौजूदा या पूर्व संवैधानिक न्यायालय के जज के परिवार के सदस्य को हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया जाए. यह मुद्दा ऐसे समय पर उठाया गया है जब लोगों में यह धारणा मजबूत हो रही है कि उच्च न्यायपालिका में जज बनने की प्रक्रिया में ऐसे व्यक्तियों को प्राथमिकता दी जाती है जिनके परिजन पहले से ही न्यायपालिका में उच्च पदों पर हैं. इस कारण से यह प्रस्ताव चर्चा का विषय बन गया है कि क्या इन वकीलों को जज बनाने के लिए प्राथमिकता देना सही है.

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का निर्णय

कॉलेजियम के कुछ जजों ने सुझाव दिया है कि ऐसे वकीलों के नाम को आगे बढ़ाया जाए जिनके परिवार में पहले से जज नहीं हैं. उनका मानना है कि इससे न्यायपालिका में समानता बनी रहेगी और किसी विशेष परिवार से जुड़े लोगों को अधिक अवसर नहीं मिलेंगे. वहीं कुछ अन्य जजों का यह भी कहना है कि इस फैसले से ऐसे वकील बाहर हो सकते हैं जो जज बनने के लिए पूरी तरह से योग्य हैं, लेकिन उनके परिवार में पहले से कोई न्यायधीश नहीं है.

कॉलेजियम में इस प्रस्ताव पर मंथन जारी है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस ए एस ओका शामिल हैं.

भाई-भतीजावाद और ‘अंकल कल्चर’

यह मामला उस व्यापक बहस से भी जुड़ा है जो समय-समय पर उठती रही है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में भाई-भतीजावाद की समस्या है. इसे न्यायपालिका में ‘अंकल कल्चर’ कहा जाता है, जिसमें उन व्यक्तियों को जज बनने का अधिक अवसर मिलता है जिनके परिवार के सदस्य पहले से ही न्यायपालिका में उच्च पदों पर होते हैं.

कॉलेजियम सिस्टम का महत्व और एनजेएसी

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम प्रणाली के तहत जजों की नियुक्ति करता है, जिसमें हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति भी कॉलेजियम की सलाह पर होती है. 2014 में नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन (एनजेएसी) एक्ट को पारित किया गया था, जिसके तहत सरकार को न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति पर अधिक अधिकार दिया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को इसे रद्द कर दिया था, जिससे कॉलेजियम प्रणाली बहाल हो गई.

इसके बाद से सुप्रीम कोर्ट ने जजों के चयन की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की कोशिश की है, हालांकि अभी भी कई मुद्दे सामने आ रहे हैं, जिन पर कॉलेजियम विचार कर रहा है.

गोपाल कृष्ण

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