न्यायपालिका जगत के गलियारों में जस्टिस दिनेश कुमार सिंह (Justice DK Singh) के ट्रांसफर की काफी चर्चा है. कॉलेजियम ने जस्टिस दिनेश कुमार सिंह का तबादला इलाहाबाद से केरल हाई कोर्ट (Kerala High Court) में करने की सिफारिश की है. कॉलेजियम के इस फैसले को लेकर न्यायविदों में चर्चा और आम लोगों के बीच हैरानी देखी जा रही है. दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में बतौर जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की पहचान एक आला दर्जे के न्यायाधीश के तौर पर रही है. कोर्ट से दिए गए इनके फैसलों ने कई माइलस्टोन सेट किए हैं. इनमें कई माफियाओं के खिलाफ ऐसे फैसले हैं, जो अपने आप में कालजयी हैं.
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने तीन हाई कोर्ट के जजों के ट्रांसफर की सिफारिश की है. इनमें जस्टिस दिनेश कुमार सिंह को इलाहाबाद से केरल हाई कोर्ट, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस मनोज बजाज को इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) और दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस गौरांग कंठ को कलकत्ता हाई कोर्ट भेजने की सिफारिश की है.
तीन जजों और खास तौर पर न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह के ट्रांसफर की सिफारिश से कानून जगत के लोगों को काफी हैरानी हो रही है. लिहाजा, यह मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है. लोगों को हैरानी इस बात से है कि जिस न्यायालय में लोग इंसाफ के लिए अपनी जूतियां रगड़ते दम तोड़ देते हैं, उसी न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने ताबड़तोड़ इंसाफ दिलाए. उनके तेजी से इंसाफ करने का सिला ट्रांसफर में मिले, यह लोगों को डाइजेस्ट नहीं हो रहा.
जस्टिस दिनेश कुमार सिंह के फैसलों में कानून के सिद्धांत के साथ-साथ समाज के दुरगामी परिणामों की विवेचना और परिस्थितियों के प्रति संवेदना विशेष तौर पर शामिल रही है. आईआईटी में पढ़ने वाली एक लड़की जब फीस नहीं दे पाने के चलते कोर्ट का दरवाजा खटखटाई, तो जस्टिस सिंह ने न सिर्फ उसे कोर्ट से न्याय दिलाया, बल्कि अपनी जेब से उसकी फीस भी भरी.
जस्टिस दिनेश कुमार सिंह अपने तेज-तर्रार अंदाज के लिए शुरू से जाने जाते हैं. वकालत से लोगों को न्याय की दहलीज तक ले जाने वाले जस्टिस सिंह ने न्यायमूर्ति बनने के बाद भी अपना जज्बा जारी रखा. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एलएलबी और दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलएम करने के बाद 1993 में वकील के रूप में खुद का रजिस्ट्रेशन कराया. 1997 तक जस्टिस सिंह ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की. इसके बाद 1998 में वकील के रूप में ही सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू कर दी. साल 2017 में इन्हें अडिशनल जज के रूप में नियुक्ति मिली. इसके बाद 2019 में इन्होंने परमानेंट जज के रूप में शपथ ली.
जस्टिस दिनेश कुमार सिंह के ट्रांसफर की सिफारिश पर चर्चा के लिए कॉलेजियम की कार्यशैली काफी हद जिम्मेदार है. अप्रैल, 2023 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज चेलमेश्वर ने कॉलेजियम की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए थे. केरल हाई कोर्ट के एक कार्यक्रम में पूर्व जज चेलमेश्वर ने कॉलेजियम पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए कहा था, “कुछ आरोप कॉलेजियम के सामने आते हैं, लेकिन उनको लेकर आमतौर पर कुछ नहीं किया जाता. अगर आरोप हैं, तो कार्रवाई शायद हो जाए. कुछ जज इतने आलसी होते हैं और फैसला लिखने में सालों लगा देते हैं. कुछ जज अयोग्य हैं.”
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम अपनी सिफारिशों को केंद्र सरकार के कानून मंत्रालय को भेजता है. कानून मंत्रालय सहमत होने के बाद इस पर नोटिफिकेशन जारी करता है. अगर केंद्र सरकार कॉलेजियम की सिफारिश से सहमत नहीं होता है, तो वह इसे दोबारा पुनर्विचार के लिए वापस कर सकता है. इस मामले में अब गेंद केंद्र के पाले में है. देखना होगा कि न्याय के आदर्श मापदंडों को स्थापित करने वाले दिनेश कुमार सिंह के साथ क्या सलूक किया जाता है.
-भारत एक्सप्रेस
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