Shiv Sena Row: महाराष्ट्र में शिवसेना की लड़ाई अभी थमी नहीं है. उद्धव और शिंदे गुट दोनों की ओर से दी गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ सुनवाई करेगा. वहीं शिंदे गुट के विधायकों की अयोग्यता का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. आज इस मामले पर भी कोर्ट फैसला सुना सकता है.
ना पार्टी का नाम साथ रहा ना ही निशान. चुनाव आयोग के एक फैसले ने उद्धव के अरमानों पर एक झटके में पानी फेर दिया. जिस पार्टी की विरासत को आगे ले जाने का संकल्प उद्धव ने लिया था वो चुनाव आयोग के निर्णय से कहीं दूर छूट गया. उद्धव इसी बात से सबसे ज्यादा परेशान हैं. शिवसेना नाम भले ही शिंदे गुट के पास चला गया है, लेकिन अब इसी को लेकर महाराष्ट्र की राजनीति का पारा हाई है. शिवसेना की जंग सुप्रीम कोर्ट की दहलीज में है.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट को राहत दी थी. संविधानिक पीठ ने शिंदे खेमे को असली शिवसेना मानने वाले निर्वाचन आयोग के फैसले पर रोक लगाने से इनकार किया. हालांकि ये भी कहा- दूसरे पक्ष को सुने बिना फैसला नहीं लिया जा सकता. अदालत ने उद्धव गुट की याचिका पर दोनों पक्षों से जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया. पिछली सुनवाई में उद्धव गुट की तरफ से कपिल सिब्बल ने सुप्रीम अदालत में कई दलीलें पेश कीं. आज इसी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने जा रही है.
इसके साथ ही विधायकों की अयोग्यता का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में 8 महीने से पेंडिंग है. पिछली बार जब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई थी तो कोर्ट ने उद्धव गुट के वकील सिब्बल से पूछा था- इस केस को किस दिशा में ले जा सकते हैं तो इसके बाद सिब्बल ने कहा था- डिप्टी स्पीकर को फैसला लेने देना चाहिए. नहीं तो कोर्ट ही इस बात का फैसला कर दे.
पिछले साल जून के महीने में शिंदे ने अपने साथ 35 विधायकों के होने का दावा किया. इसको लेकर बाकायदा लेटर जारी किया गया था. वहीं डिप्टी स्पीकर ने 16 बागी विधायकों को सदस्यता रद्द करने का नोटिस भेजा. बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. जहां से सुप्रीम कोर्ट ने बागी विधायकों को राहत दे दी. 28 जून को राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए कहा.
सुप्रीम कोर्ट ने भी फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इंकार कर दिया और उसी के बाद उद्धव को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी. 30 जून को शिंदे बीजेपी के समर्थन से महाराष्ट्र के नए सीएम बने. वहीं, 3 जुलाई को विधानसभा के नए स्पीकर ने शिंदे गुट को सदन में मान्यता दे दी और शिंदे ने विश्वास मत भी हासिल कर लिया. सरकार बनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी भी दिखाई थी.
तभी से मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित चल रहा है. सिब्बल ने तब के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि राज्यपाल के आमंत्रण पर अगर सुप्रीम कोर्ट रोक लगाती तो हालात अलग होते. सिब्बल जजों के सामने ये भी दलील दे चुके हैं कि राज्यपाल को किसी पार्टी के बागी विधायकों को मान्यता और उनकी कार्रवाई को वैध बनाने के लिए कानून में अधिकार नहीं था.
सिब्बल ने ये भी कहा था कि अगर कोर्ट अब भी चुप रहा तो भविष्य में चुनी हुई सरकार इसी तरह गिरेंगी. सिब्बल कोर्ट में ये दलील भी दे चुके हैं कि शिंदे गुट में जाने वाले विधायक संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्यता से तभी बच सकते हैं, अगर वो अलग हुए गुट का किसी दूसरी पार्टी में विलय कर देते हैं.
जाहिर है महाराष्ट्र का सियासी तूफान अभी थमा नहीं है. ऐसे में उद्धव और एकनाथ शिंदे गुट दोनों अदालत से राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं.
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