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दिल्ली के रिज इलाके में पेड़ों की कटाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट सख्त, DDA के अधिकारियों को जारी किया अवमानना का नोटिस

दिल्ली के रिज इलाके में पेड़ों की कटाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने डीडीए को आड़े हाथों लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने DDA के अधिकारियों को भी अवमानना का नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा-डीडीए उपाध्यक्ष के हलफनामे से ऐसा प्रतीत होता है कि सारा दोष उन अधिकारियों पर मढ़ दिया गया है। जिन्होंने कहा है कि वे ठेकेदारों को अदालत की अनुमति के बिना पेड़ काटने का निर्देश देने के लिए जिम्मेदार थे। इसलिए सुप्रीम कोर्ट उन DDA अधिकारियों को अवमानना ​​नोटिस जारी करता है।

 सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बिना न हो पेड़ों की कटाई 

सुप्रीम कोर्ट ने DDA को दिया निर्देश दिया कि वर्तमान और भविष्य में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बिना पेड़ों की कटाई नही होगी। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि पेड़ों की कटाई के मूल्यवान पेड़ नष्ट हो गए और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है। कोर्ट ने कहा कि इसे हल्के में नही ले रहा है। कोर्ट ने कहा कि यदि अधिकारी अपने वैधानिक और संवैधानिक कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहे हैं, तो अदालत को सभी अधिकारियों को स्पष्ट संकेत देना होगा कि पर्यावरण को इस तरह से नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता है।

कोर्ट ने DDA के उपाध्यक्ष को निर्देश दिया है कि 3 फरवरी को LG की साइट विजिट का रिकॉर्ड उपलब्ध कराये। कोर्ट ने कहा कि DDA के कार्यकारी अभियंता द्वारा ठेकेदार को भेजे गए ईमेल में कहा गया था कि LG ने साइट विजिट के बाद पेड़ों को हटाने का निर्देश दिया था। कोर्ट द्वारा डीडीए उपाध्यक्ष की ओर से पेश वकील से स्पष्टीकरण मांगे जाने पर उनका कहना है कि एलजी का दौरा दूसरी साइट पर था। जस्टिस अभय एस ओका की बेंच ने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक DDA को पेड़ काटने का अधिकार था, लेकिन क्या इसमें कोई प्रावधान था कि वह सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना पेड़ नहीं काट सकते?

ये निर्देश किसने जारी किए?

जस्टिस अभय एस ओका की बेंच ने DDA से कहा कि इसलिए यह LG ही थे, जिन्होंने आपको पेड़ों को काटने का निर्देश दिया था, हमने हर दस्तावेजों को पढ़ा है, अपने अधिकारी से पूछा कि ये निर्देश किसने जारी किए? LG या आपका अधिकारी? सुप्रीम कोर्ट ने DDA पर सख्ती दिखते हुए कहा कि हम एक बहुत ही गंभीर मुद्दे पर सुनवाई कर रहे हैं, 1100 पेड़ आप इसे बहुत ही सामान्य रूप से ले रहे हैं? अपने अधिकारी से पूछा कि ये निर्देश किसने जारी किए, क्या वह अध्यक्ष हैं? तो फिर हम उसे पार्टी बना रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि 1100 पेड़ों को काटने का कोई निर्देश नहीं है, यह झाड़ियों के बारे में है और अब आप तीन निचले अधिकारियों को दोषी ठहरा रहे हैं।

सच तो ये है कि LG ने निर्देश दिए थे

वही DDA के वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि उपाध्यक्ष को इसकी जानकारी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इसको रिकॉर्ड पर लेंगे कि DDA के उपाध्यक्ष को इस बात की जानकारी नहीं है कि निर्देश किसने जारी किए। कोर्ट ने फिर पूछा कि क्या यह LG की ओर से नहीं किया गया है?। हमें सीधे बताए, जाहिर है ऐसा LG के दौरे के बाद किया गया है,सच तो ये है कि LG ने निर्देश दिए थे। AG ने कहा कि किसी को इन पर स्पष्टीकरण देना होगा। अधिकारियों ने सिर्फ एलजी के निर्देशों पर काम किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तो फिर कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किसने किया? सुप्रीम कोर्ट ने DDA से कहा कि आपके दस्तावेज के मुताबिक LG के निर्देश पर पेड़ों को काटा गया।

LG को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पूछे ये सवाल

जस्टिस अभय एस ओका ने DDA से पूछा। कोर्ट ने कहा कि हमें तथ्यात्मक रूप से बताएं कि क्या यह सही है कि LG ने 3 फरवरी को साइट का दौरा किया था? DDA वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि हां, LG ने दौरा किया था। DDA के वकील ने कहा कि रिकॉर्ड नहीं किया गया, जरूर पता करूंगा। वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि हम एक संवैधानिक प्राधिकरण के बारे में बात कर रहे हैं, हमें पहले 3 सवालों के जवाब ढूंढने चाहिए। इसपर जस्टिस अभय एस ओका ने कहा कि हम आपको यहां बताना चाहेंगे कि उपराज्यपाल DDA के अध्यक्ष भी हैं।

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जेठमलानी ने कहा कि क्या कानूनी विभाग से किसी ने LG को बताया कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश पेड़ों की रक्षा कर रहा है? जस्टिस ओका ने कहा कि हम सच्चाई का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं और हम डीडीए से बेहतर सहायता की उम्मीद करते हैं। हम सिर्फ यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि पेड़ों को काटने के लिए ठेकेदार को किसने निर्देश दिया?

जस्टिस अभय एस ओका ने भारतीय वन सेवा की रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा-हमें यह जानकर दुख हुआ कि किस तरह के मूल्यवान पेड़ काटे गए हैं। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने डीडीए के उपाध्यक्ष को अवमानना का नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। कोर्ट ने डीडीए के उपाध्यक्ष से पूछा था कि पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने वाले उसके आदेशों का जानबूझकर उल्लंघन करने के लिए उन पर अदालत की आपराधिक अवमानना ​​का मुकदमा क्यों न चलाया जाए।

गोपाल कृष्ण

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