प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 12 दिसंबर को सुनवाई करेगा. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ सुनवाई करेगी. केंद्र सरकार ने नोटिस के तीन साल और 8 महीने बाद भी अब तक जवाब दाखिल नही किया है.
2020 से यह मामला कोर्ट में लंबित है. यह याचिका विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी, अश्विनी कुमार उपाध्याय, करुणेश कुमार शुक्ला और अनिल त्रिपाठी ने दायर की है.
याचिका में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को रद्द करने की मांग की गई है. वही मुश्लिम पक्ष जमीयत उलेमा ए हिंद की ओर से दायर याचिका में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के स्पोर्ट में दायर की गई है. दूसरी ओर ज्ञानवापी मस्जिद मैनेजमेंट कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर कर कहा है कि याचिकाकर्ता द्वारा प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने की मांग के परिणाम गंभीर और दूरगामी होंगे.
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि वह इस तरह के कई मामलों में दाखिल सूट में पक्षकार है और एक हितधारक है. उनकी ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि कई मुकदमे दायर किए गए हैं, जो 1991 अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत निषेध के बावजूद मस्जिद को हटाने का दावा करते है और उन तमाम मामलों में वह पक्षकार है.
एक्ट की धारा -3 के मुताबिक किसी भी पूजा स्थल को किसी अन्य पूजा स्थल में परिवर्तित करने पर प्रतिबंध लगाता है. वहीं धारा-4 कहता है कि 15 अगस्त 1947 को पूजा स्थल का जो धार्मिक स्वरूप जैसा था, वैसा ही बना रहेगा. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 पीवी नरसिम्हा राव की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार 1991 में लेकर आई थी.
इस कानून के जरिए किसी भी धार्मिक स्थल की प्रकृति यानी वह मस्जिद है मंदिर या फिर चर्च-गुरुद्वारा, यह निर्धारित करने को लेकर नियम बनाए गए है. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 तब लाया गया था, जब राम मंदिर आंदोलन चल रहा था. इस एक्ट में प्रावधान किया गया है कि राम मंदिर के अलावा अन्य सभी धर्म स्थलों में 15 अगस्त 1947 की स्थिति बहाल रखी जाए. यानी इस दिन यदि कोई स्थान मस्जिद था तो वह मस्जिद रहेगा. कानून में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी धार्मिक स्थल का स्वरूप बदलने की कोशिश करेगा तो उसकी 3 वर्ष तक का कारावास हो सकता है.
-भारत एक्सप्रेस
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